Russia Ukraine Crisis: यूरोपीय संघ ने तेल की सीमा तय करते हुए जो नियम बनाए हैं, उसके अनुसार इस संघ में शामिल देश अब समुद्र के रास्ते निर्यात किए जाने वाले रूसी तेल की क़ीमत 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक नहीं देंगे. रूसी तेल की क़ीमतों पर ये सीमा पांच दिसंबर या फिर इसके तुरंत बाद लागू हो जाएगी.
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Russia Ukraine Conflict: आखिरकार लंबी जद्दोजहद के बाद यूरोपीय संघ (EU) और जी-7 ने तेल की कीमतों पर सीमा लगाने वाला प्रस्ताव मंजूर कर ही दिया. इसकी पुष्टि अमेरिका की वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने भी ट्वीट करके की. उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इससे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आय पर असर पड़ेगा और ‘बर्बर युद्ध को जारी रखने के लिए मिल रहे राजस्व के स्रोत सीमित होंगे.’ वहीं, दूसरी तरफ रूस ने इस फ़ैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि ‘इस तरह तेल की क़ीमत पर सीमा लगा कर यूरोपीय संघ अपनी उर्जा सुरक्षा को ख़ुद ख़तरे में डाल रहा है.’
क्या कहा- अमेरिकी वित्त मंत्री ने
अमेरिका की वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने कहा कि ‘तेल की कीमतों पर सीमा लगने से कम और मध्यम आय वाले उन मुल्कों को ख़ास फायदा होगा जो तेल और गैस की और अनाज की बढ़ती क़ीमतों की परेशानी झेल रहे हैं.’ इसके अलावा उन्होंने इस फैसले को रूस और यूक्रेन युद्ध से भी जोड़ा. उन्होंने कहा, ‘रूस की इकॉनमी पहले ही काफी बैठ चुकी है. अब तेल की क़ीमतों पर लगी सीमा से उनके राजस्व के स्रोत पर और असर पड़ेगा.’
ऐसे समझें पूरे नियम को
यूरोपीय संघ ने तेल की सीमा तय करते हुए जो नियम बनाए हैं, उसके अनुसार इस संघ में शामिल देश अब समुद्र के रास्ते निर्यात किए जाने वाले रूसी तेल की क़ीमत 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक नहीं देंगे. रूसी तेल की क़ीमतों पर ये सीमा पांच दिसंबर या फिर इसके तुरंत बाद लागू हो जाएगी. यह कोशिश रूस के आय के स्रोत को खत्म करने के लिए की गई है. दरअसल, तमाम आर्थिक पाबंदियों के बावजूद रूस तेल के जरिये अच्छी कमाई कर रहा था.
रूस ने कहा, इसके गंभीर परिणाम होंगे
वही, रूस ने इस फैसले के बाद मोर्चा खोल दिया है. उसने इसकी आलोचना करने के साथ ही इसके परिणाम भुगतने की भी धमकी दी है. रूस का कहना है कि जो देश तेल की क़ीमत पर लगाई गई सीमा के हिसाब से तेल खरीदना चाहते हैं, उन्हें वह तेल नहीं बेचेगा. रूस ने कहा है कि इस तरह तेल की क़ीमत पर सीमा लगा कर यूरोपीय संघ अपनी उर्जा सुरक्षा को ख़ुद ख़तरे में डाल रहा है. बता दें कि पुतिन पहले भी तेल पर इस तरह की समा लगाने को लेकर कह चुके हैं कि इसके गंभीर परिणाम होंगे.
सख्ती के बाद भी ऐसे बचा रहेगा रूस
इंटरनेशनल एनर्जी असोसिएशन के अनुसार, युद्ध शुरू होने से पहले, वर्ष 2021 में रूस आधे से ज्यादा तेल निर्यात यूरोप में ही करता था. उसका सबसे बड़ा आयातक क्रमशः जर्मनी, नीदरलैंड्स और पोलैंड था. पर यूक्रेन पर हमले के बाद से यूरोपीय संघ के देश रूस से मिलने वाले तेल और गैस पर निर्भरता कम करने पर लग गए. अमेरिका ने जहां रूसी कच्चे तेल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया तो ब्रिटेन की साल के अंत तक रूसी तेल पर निर्भरता ख़त्म करने की प्लानिंग है. यह सारी कवायद रूस की इनकम को रोकने की है. पर माना जा रहा है कि इस फैसले का असर रूस पर तब तक नहीं पड़ेगा जब तक भारत और चीन रूस से तेल खरीद रहे हैं. मौजूदा समय में भारत और चीन ही रूसी तेल के सबसे बड़े खरीदार हैं.
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