भरत चक्रवर्ती की कथा, जो इस महामारी में लूट मचा रहे लोगों के लिए चेतावनी है

भरत चक्रवर्ती की इच्छा हुई कि विशाल ऊंचे पर्वत पर अपने हस्ताक्षर किए जाएं. विद्वानों से भी इस बात पर सहमति हो गई. सबने कहा-भरत चक्रवर्ती को तो ऐसा करना ही चाहिए. उनके पहले किसी और चक्रवर्ती को तो जाना ही नहीं गया. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 13, 2021, 01:29 PM IST
  • स्वर्ग के पर्वत पर नाम लिखने पहुंचे भरत चक्रवर्ती
  • पहले ही कई असंख्य नामों से भरा पड़ा था पर्वत
भरत चक्रवर्ती की कथा, जो इस महामारी में लूट मचा रहे लोगों के लिए चेतावनी है

नई दिल्लीः जैन धर्म में एक कथा आती है. सम्राट भरत ने वीरता पूर्वक शासन किया और सारी पृथ्वी जीत ली. वह चक्रवर्ती हो गए और उन्हें संसार भर में भरत चक्रवर्ती के नाम से जाना गया. फिर भी उनके मन में एक टीस रह गई थी. अपना नाम हर दिशा में फैला देने की. प्राचीन जंबूद्वीप में वृषभांचल पर्वत था, जिसकी ऊंचाई स्वर्ग तक थी. 

भरत चक्रवर्ती की यह हुई इच्छा
भरत चक्रवर्ती की इच्छा हुई कि इस विशाल ऊंचे पर्वत पर अपने हस्ताक्षर किए जाएं. विद्वानों से भी इस बात पर सहमति हो गई. सबने कहा-भरत चक्रवर्ती को तो ऐसा करना ही चाहिए. उनके पहले किसी और चक्रवर्ती को तो जाना ही नहीं गया. 

वृषभांचल पर्वत की ओर चले भरत 
भरत चक्रवर्ती दल-बल और सेना समेत स्वर्ग की ओर बढ़े. इस अभियान को दौरान उन्हें और भी विजय मिली. उनका चक्रवर्ती होना और अधिक स्पष्ट हो गया.

इस तरह भरत स्वर्ग के द्वार पर पहुंचे. आगे तीन द्वार के बाद वृषभांचल पर्वत का सबसे ऊंचा शिखर था. स्वर्ग के द्वार पर पहरेदार ने परिचय पूछा- कौन है, किसकी सेना है? यहां क्यों आया है? 

स्वर्ग प्रहरी ने दिया सुझाव
चक्रवर्ती के चारणों ने कई विशेषण लगाते हुए और अंत में भरत चक्रवर्ती के नाम से संबोधित करते हुए अपने महाराज का परिचय दिया. इस पर द्वारपाल पीछे हट गया और उसने महान भरत को अंदर जाने के लिए मार्ग दे दिया. लेकिन प्रहरी ने भरत चक्रवर्ती के कान में कहा कि महानुभाव, अच्छा होगा कि आप अकेले ही भीतर जाएं. इन सबको भीतर न ले जाएं. इन सबको भीतर ले जाने पर कहीं आपको पछताना न पड़े. गए. इनको आप बाहर ही छोड़ें और अकेले चलकर ही हस्ताक्षर कर आएं. 

पर्वत पर पहले ही थे कई हस्ताक्षर
मैं जो कह रहा हूं बाद में आप इस बात को समझेंगे. न जाने उसकी बात में कैसा असर था कि सम्राट ने प्रहरी की बात मान ली. वह अकेला ही भीतर गया. सामने विराट पर्वत था जैसे कि जिसके ओर-छोर ही न हों, आकाश को छूता हुआ उसका शिखर था. सम्राट अभी पर्वत को निहार ही रहे थे कि वह पहरेदार कहने लगा, आप जगह खोज लें कहीं अगर हस्ताक्षर लिखने को जगह बची हो.

जहां तक मैं जानता हूं पहाड़ पूरा भरा हुआ है. हस्ताक्षर करने को कोई जगह नहीं. बहुत से चक्रवर्ती अतीत में हस्ताक्षर कर चुके हैं.

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राजा के हस्ताक्षर के लिए जगह ही नहीं थी
सम्राट यह सुनकर हैरान हो गया. उसने सोचा था,  उस विराट पर्वत पर शायद मैं ही अकेला हस्ताक्षर करने जा रहा हूं. अधिक से अधिक होंगे एक या दो और हस्ताक्षर.  लेकिन वह विराट पर्वत तो तिल-तिल सिर्फ हस्ताक्षरों से भरा है. रत्ती भर कहीं कोई जगह नहीं, सब जगह हस्ताक्षर हो गए हैं. सम्राट कहने लगा, यह क्या है? फिर अर्थ भी क्या है यहां हस्ताक्षर करने का? कौन पढ़ता होगा इन्हें?

प्रहरी ने कहा-किसी का भी नाम मिटा दें
प्रहरी ने कहा- जो लिखता है वही पढ़ता है और कोई भी नहीं पढ़ता. अपने हस्ताक्षर आदमी खुद ही पढ़ता है. किसको समय है कि वह दूसरे का हस्ताक्षर पढ़े. जो आदमी अपने हस्ताक्षर करने को आतुर होता है वह आदमी दूसरे के हस्ताक्षर को मिटा देने को आतुर होता है. आप भी कोई नाम मिटा दें और पत्थर पर अपना लिख दें. राजा यह सुनकर निराश हो गया. 

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राजा को हुई ग्लानि
विजय यात्रा करके, इतनी हिंसाएं करके, इतनी हत्याएं करके, इतना दुख और पीड़ा झेल कर जीवन नष्ट करके इसलिए आया था कि पर्वत पर हस्ताक्षर करेगा! वहां जगह ही नहीं है. दूसरे का नाम मिटाना होगा. उसे इस तरह उदास देखकर पहरेदार ने कहा- चिंता न करें महाराज. मैं हजारों वर्षों से प्रहरी हूं, मेरे पहले मेरे पिता पहरेदार थे. उनसे पहले भी उनके पिता.

हम पीढ़ियों से यह करते आ रहे हैं. जन्मों-जन्मों से हमने यह कहानी सुनी है कि अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि खाली जगह किसी को भी मिली हो. हमेशा हस्ताक्षर मिटा कर ही नये हस्ताक्षर करने पड़े हैं. 

भरत को जीवन का मर्म समझ आ गया
ये जो हस्ताक्षर दिखाई पड़ रहे हैं ये भी किन्हीं के मिटाए हुए हस्ताक्षरों के ऊपर किए गए हैं. आप भी कोई भी नाम मिटा दें और अपना हस्ताक्षर कर दें. भरत राजा ने  प्रहरी को धन्यवाद दिया कि तुमने मेरे पीछे आई भीड़ को रोक कर अच्छा ही किया. भरत चक्रवर्ती बिना नाम लिखे ही लौट आए. उन्हें जीवन का असली मर्म समझ में आ गया था. वह अब राज्य नहीं हृदय जीतने लगे थे. 

आज लूट मचा रहे लोग हो जाएं सतर्क
यह कथा बताती है कि जन्म बिना नाम का, मृत्यु बिना नाम की. जीवन भर जिस नाम के लिए हम इतने जोड़-तोड़ करते हैं वह हमारे जाते ही मिट जाता है. इसके बावजूद, चोरी करके, छल करके, रिश्वत लेकर, झूठ बोलकर न जाने हम कौन सी संपत्ति कौन सा वैभव चाहते हैं. महामारी के इस दौर में कई लोग नकली दवाएं बेच रहे हैं. मजबूरी का फायदा उठाकर लोगों से चार-पांच गुने दाम वसूल रहे हैं. 


अपनी आंखों से रोज मौत देख रहे हैं और फिर भी चेत नहीं रहे हैं. जबकि साथ कुछ नहीं जाएगा और इसी जीवन में न जाने क्या दंड भोगना पडे़गा. इतना ही सोच लें कि महामारी है किसी पर दया नहीं दिखाएगी, कल को खुद उसकी चपेट में आ सकते हैं. इसलिए किसी भी तरह संपदा समेट लेने की कोशिश न करें. न तो आपका नाम रहेगा और न ही संपत्ति. सब खाक हो जाएगा. 

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