नई दिल्लीः Uttarakhand Election Result 2022: उत्तराखंड में मुख्यमंत्री रहते हुए चुनाव नहीं जीत पाने का मिथक इस बार भी कायम रहा. पुष्कर सिंह धामी खटीमा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए. धामी को कांग्रेस के भुवन चंद कापड़ी ने हराया. धामी के चुनाव हारने के बाद एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री क्यों चुनाव हार जाते हैं.
रावत-खंडूड़ी भी हारे थे चुनाव
इससे पहले हरीश रावत और भुवन चंद खंडूड़ी भी चुनाव हार चुके हैं. साल 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान भुवन चंद खंडूड़ी कोटद्वार सीट से चुनाव हार गए थे, जबकि हरीश रावत को 2017 के चुनाव के दौरान किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण सीट से हार का सामना करना पड़ा था. अब पुष्कर सिंह धामी की हार हुई है.
खंडूड़ी के खिलाफ हुआ था भितरघात
भुवन चंद खंडूड़ी ने मुख्यमंत्री रहते हुए 2012 में कोटद्वार सीट से चुनाव लड़ा था. तब उनके नेतृत्व में बीजेपी मैदान में उतरी थी. तब नारा लगाया जा रहा था कि 'खंडूड़ी है जरूरी'. लेकिन हश्र ये हुआ कि न बीजेपी बहुमत हासिल कर पाई और न खंडूड़ी चुनाव जीत सके. चुनाव के बाद बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुशीला बलूनी रो पड़ी थीं और उन्होंने कहा था कि कोटद्वार में बड़े पैमाने पर भितरघात हुआ.
तब कई लोगों ने दबी जुबान में कहा था कि रमेश पोखरियाल निशंक ने खंडूड़ी को निपटाने का काम किया. हालांकि, खंडूड़ी ने सार्वजनिक तौर पर इस तरह की बयानबाजी नहीं की थी, लेकिन उन्होंने कहा था कि वह पार्टी फोरम पर अपनी बात रखेंगे.
रावत के खिलाफ थी जबरदस्त एंटी इनकम्बेंसी
हरीश रावत को 2017 में दो-दो सीटों से हार का सामना करना पड़ा था. यही नहीं उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया था. हरीश रावत के चुनाव हारने की सबसे मुख्य वजह एंटी इनकम्बेंसी थी. स्टिंग ऑपरेशन, खनन और शराब माफिया को मदद पहुंचाने जैसे आरोपों से न सिर्फ तत्कालीन कांग्रेस सरकार बल्कि हरीश रावत की साख को भी गहरा धक्का लगा था. 2017 में राज्य में मोदी लहर भी थी. इस वजह से रावत कोई कमाल नहीं कर पाए.
इसके अलावा मुस्लिम बहुल हरिद्वार ग्रामीण सीट से चुनाव हारने की बड़ी वजह बीएसपी की ओर से मुस्लिम कैंडिडेट को खड़ा करना भी रहा. तब बीएसपी प्रत्याशी ने 18 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे, जबकि हरीश रावत करीब 12 हजार वोटों से हारे थे. राज्य में परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोट बैंक माने जाने वाले मुस्लिम मतदाता तब बंट गए थे.
अपने क्षेत्र के लोगों में विश्वास पैदा नहीं कर पाए धामी
पुष्कर सिंह धामी को हार का सामना करना पड़ा. उन्हें प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भुवन चंद कापड़ी ने हराया. भुवन कापड़ी ने पिछले चुनाव में भी पुष्कर धामी को कड़ी टक्कर दी थी. खटीमा विधानसभा सीट उसी उधम सिंह नगर जिले में आती है, जहां राज्य में किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर था. शुरू से ही आशंका जताई जा रही थी कि किसान धामी के साथ नहीं जा सकते हैं.
धामी के खिलाफ भी हुआ भितरघात?
वहीं, इस सीट पर मुस्लिम और सिख मतदाता भी अच्छी तादाद में हैं, जो धामी के साथ जाते नहीं दिखे. इसके साथ ही युवाओं के बीच लोकप्रियता का भी भुवन कापड़ी को फायदा मिला. मुख्यमंत्री रहते हुए जहां धामी ने बीजेपी का ग्राफ बढ़ाया, लेकिन वह खुद अपनी सीट पर लोगों में विश्वास पैदा नहीं कर सके. वहीं, चुनाव के दौरान चर्चा भी थी कि खटीमा में धामी को भितरघात का सामना करना पड़ सकता है. एक चर्चा यह भी उठी थी कि बीजेपी सरकार के एक मंत्री ने धामी को हराने के लिए भुवन कापड़ी को चंदा दिया था. हालांकि, इन अटकलों के पीछे क्या सच्चाई है इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता.
योगी जैसी लोकप्रियता नहीं
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के चुनाव हार जाने की एक वजह इनकी खुद की लोकप्रियता नहीं होना है. अगर पड़ोसी राज्य यूपी में देखें तो यहां योगी की जबरदस्त लोकप्रियता है. ऐसी लोकप्रियता उत्तराखंड में किसी की भी पूरे राज्य में नहीं है. इसके अलावा मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने क्षेत्र की जनता के लिए 'मील के पत्थर' जैसे काम न कर पाना भी अन्य कारण है. वहीं, मुख्यमंत्री रहते हुए पूरे राज्य में प्रचार करने की जिम्मेदारी के चलते अपने क्षेत्र में अधिक ध्यान न देने की वजह से भी सीएम चुनाव हारे हैं.
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