DRDO की घातक कार्बाइन: एक मिनट में दागेगी 700 गोलियां

ऐसी कार्बाइन जो स्टील से लेकर कवच तक को चीर देगी और दुश्मनों के चीथड़े उड़ा देगी. JVPC नाम की इस कार्बाइन को DRDO ने बनाया है, जिसने सेना का फाइनल टेस्ट पास कर लिया है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 26, 2020, 12:04 PM IST
  • DRDO की कार्बाइन करेगी दुश्मनों का सर्वनाश
  • JVPC गैस ऑपरेटेड 5.56 x 30 एमएम हथियार
DRDO की घातक कार्बाइन: एक मिनट में दागेगी 700 गोलियां

नई दिल्लीः रक्षा क्षेत्र में भारत के हाथ और मजबूत हो गए हैं. DRDO की बनाई अभेद्य मारक क्षमता वाली कार्बाइन ने सभी परीक्षणों को पूरा कर लिया है और सभी मानकों पर खरी उतरी है. भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन (DRDO) रक्षा क्षेत्र में भारत को लगातार सबल बना रहा है.

DRDO की बनाई गई यह कार्बाइन सेना के इस्तेमाल के लिए अब बिल्कुल तैयार है. इस कार्बाइन का पहला मकसद बिना किसी दुर्घटना के टारगेट को निष्क्रिय करना है.

Ministry of Home Affairs ट्रायल्स को पूरा किया
जानकारी के मुताबिक, संगठन ने इसे JVPC यानी जॉइंट वेन्चर प्रोटेक्टिव कार्बाइन नाम दिया है. यह कार्बाइन सबसे पहले पुरानी हो चुकी 9 एमएम कार्बाइन को रिप्लेस करेगी. इसके अलावा सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेस जैसे CRPF और BSF को भी आधुनिक हथियार मुहैया कराएगी.

इस कार्बाइन को DRDO की पुणे लैब और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ने मिलकर बनाया है. सबसे बड़ी बात इस आधुनिक हथियार ने पहले ही Ministry of Home Affairs ट्रायल्स को पूरा कर लिया है.

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यह है कार्बाइन की खासियत
JVPC एक गैस चालित सेमी ऑटोमेटिक हथियार है. कार्बाइन का बैरल राइफल से छोटा होता है. इसे भारतीय सेना जनरल स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट के आधार पर तैयार किया गया था. यह कार्बाइन डीआरडोओ की पुणे स्थित लैब आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (ARDE) में भारतीय सेना के GSQR के आधार पर डिजाइन की गई है.

ये JVPC गैस ऑपरेटेड 5.56 x 30 एमएम हथियार है. JVPC को कभी कभी मॉडर्न सब मशीन कार्बाइन भी कहा जाता है जो हर मिनट 700 राउंड फायर कर सकती है. 

DRDO और OFB ने मिलकर किया तैयार
JVPC को पुणे की DRDO फैसेलिटी और कानपुर की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड Ordnance Factory Board-OFB ने मिलकर तैयार किया है. इस कार्बाइन का निर्माण SAF यानि स्मॉल आर्म्स फैक्टरी कानपुर में किया जाएगा. इसके लिए गोलियां पुणे की एम्यूशन फैक्टरी में तैयार होंगी.

1980 के आखिर में ARDE (Armament Research & Development Establishment) ने 5.56 x 45 mm क्षमता के हथियारों को बनाना शुरू किया था. 

1994 में लॉन्च INSAS
इसे INSAS यानी इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम नाम दिया गया. इस तरह के हथियारों में रायफल और लाइट मशीनगन यानी LMG भी शामिल थी. INSAS पर कई तरह के टेस्ट किए गए. कई तरह के वातावरण में इनको इस्तेमाल किया गया और 1994 में लॉन्च किया गया. 

ऐसे बनी अति आधुनिक कार्बाइन
INSAS तकनीक से बने हथियार में कुछ गंभीर खामियां रहीं लेकिन ये हथियार अभी भी आर्म्ड फोर्सेस द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं. हालांकि सशस्त्र दल कुछ अन्य विदेशी और देसी स्मॉल आर्म्स का इस्तेमाल भी करते हैं. INSAS की तकनीक पुरानी है. INSAS हथियारों में कार्बाइन भी शामिल थी लेकिन इसको विकसित नहीं किया गया था.

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