नई दिल्ली: भारत में महिलाओं की स्थिति तेजी से सुधर रही है. हर साल डॉक्टर बनने वालों में आधी महिलाएं होती हैं. 12 राज्यों में महिला मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. सरकारी और निजी नौकरियों में वह बड़ी जिम्मेदारियां निभा रही हैं. घर परिवार संभालने के साथ बड़े कॉरपोरेट हाउस का मैनेजमेन्ट तक देख रही हैं. लेकिन लंबा सफर तय करना अभी भी बाकी है.
आधुनिक काल में महिलाओं की चुनौतियां बढ़ी हैं
आजादी के बाद से अब तक विशेष तौर पर पिछले 7 सालों में माहौल काफी बदला है. महिलाओं को आगे बढ़ने के मौके ज्यादा मिलने लगे हैं. खेल, राजनीति,कॉरपोरेट या कृषि हर तरफ महिलाओं का दबदबा दिखने लगा है. सरकारी योजनाएं, उज्जवला, सायकिल बांटना, शिक्षा के प्रसार, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रमों से भारतीय महिलाओं का सशक्तिकरण हो रहा है.
लेकिन इसके साथ ही चुनौतियां भी बढ़ गई हैं. क्योंकि पशु प्रवृत्ति के पुरुषों का अहंकार महिलाओं की इस तरक्की को आहत होता है. जिसका परिणाम महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के रुप में सामने आता है. पिछले कुछ समय में इस तरह की घटनाएं बढ़ गई हैं. हैदराबाद में वेटनरी डॉक्टर के साथ हुआ बर्बर सलूक या दिल्ली में निर्भया के साथ बेरहम बर्ताव इसी का उदाहरण हैं.
महिलाओं के राह की सबसे बड़ी बाधा पुरुषवादी सोच का पाशविक रुप है. जो शारीरिक बल को श्रेष्ठता का आधार मानता है. अन्यथा महिलाएं ज्यादातर मामलों में पुरुष से बेहतर ही साबित होती हैं.
लेकिन महिलाओं के पंखों की उड़ान को चंद हैवान रोक नहीं सकते. महिलाओं के खिलाफ उठने वाली पाशविक सोच को रोकने की जिम्मेदारी निस्संदेह हमारे पुरुष समाज की ही है. लेकिन स्थिति ऐसी हमेशा से नहीं थी. एक वक्त था जब इसी भारत भूमि पर महिलाओं को पुरुषों के बराबर मौके मिलते थे.
गैर भारतीय बर्बर कबीलाई मजहबों ने भारतीय महिलाओं को मुश्किल में डाला
भारत में महिलाओं की स्थिति मध्यकाल से खराब होनी शुरु हुई. जिसके बाद 11वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी के बीच भारत में महिलाओं की स्थिति दयनीय होती चली गई. एक तरह से यह महिलाओं के सम्मान, विकास और सशक्तिकरण का अंधकार युग था. मुगल शासन, सामन्ती व्यवस्था, केन्द्रीय सत्ता का विनष्ट होना, इस्लामी आक्रमण और शासकों की विलासितापूर्ण प्रवृत्ति ने महिलाओं को उपभोग की वस्तु बना दिया. जिसकी वजह से बाल विवाह, पर्दा प्रथा, अशिक्षा जैसी कुरीतियों का समाज में प्रवेश हुआ. इसकी वजह से महिलाओं की स्थिति हीन होती चली गई.
महिलाओं के निजी और सामाजिक जीवन को कलुषित कर दिया गया. आज समाज में जो बलात्कार जैसी घृणित वारदातें होती हैं, वह मध्यकाल के इसी अंधकार युग की देन है.
प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति थी बेहद अच्छी
प्राचीन भारत में महिलाओं के पास आज की आधुनिक महिलाओं से ज्यादा आजादी थी. अरून्धती(महर्षि वशिष्ठ की पत्नी), लोपामुद्रा(महर्षि अगस्त्य की पत्नी) अनुसूया(महर्षि अ़त्रि की पत्नी) आदि नारियां ईश्वरीय प्रतिभा की साक्षात स्वरुप थीं.
वेदों में महिलाओं की ऐसी थी स्थिति
प्राचीन भारतीय संस्कृति के दर्पण वेदों में भारतीय महिलाओं की स्थिति का वर्णन इन उदाहरणों से हो जाएगा-
ऋग्वेद १.१६४.४१
ऐसे निर्मल मन वाली स्त्री जिसका मन एक पारदर्शी स्फटिक जैसे परिशुद्ध जल की तरह हो वह एक वेद, दो वेद या चार वेद, आयुर्वेद, धनुर्वेद, गांधर्ववेद, अर्थवेद इत्यादि के साथ ही छ: वेदांगों यथा- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और छंद को प्राप्त करे और इस वैविध्यपूर्ण ज्ञान को अन्यों को भी प्रदान करें.
अथर्ववेद ११.१.१७
ये स्त्रियां शुद्ध, पवित्र और यज्ञीय ( यज्ञ समान पूजनीय ) हैं, ये प्रजा, पशु और अन्न देती हैं. यह स्त्रियां शुद्ध स्वभाव वाली, पवित्र आचरण वाली, पूजनीय, सेवा योग्य, शुभ चरित्र वाली और विद्वत्तापूर्ण हैं. यह समाज को प्रजा, पशु और सुख़ पहुँचाती हैं.
यजुर्वेद २०.९
स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है.
यजुर्वेद १७.४५
स्त्रियों की भी सेना हो. स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें.
यजुर्वेद १०.२६
शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें. जैसे राजा लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों.
अथर्ववेद ११.५.१८
ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है. यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्व देता है. कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें.
प्राचीन काल जैसे अधिकार भारतीय महिलाओं को अब भी नसीब नहीं
सिर्फ यही नहीं प्राचीन भारत में स्त्री को अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने का भी अधिकार था. जो कि आज भी देश के कई हिस्सों में महिलाओं को नहीं हासिल है. उन्हें शिक्षा, शासन, धर्म सभी में समान भागीदारी दी गई थी. महिला चाहे तो हमेशा अकेले जीवन बिता सकती थी. वेदवती, शबरी जैसी कई महिला तपस्विनियों का उल्लेख मिलता है.
महिला ऋषियों और शासकों की भी अच्छी खासी संख्या है. प्राचीन परंपराओं में दुर्गा के सामने सभी देवताओं को शीश नवाए देखा जा सकता है. जिसमें उनके पति महादेव भी होते हैं.
सनातन धर्म दुनिया का इकलौता धर्म है. जिसने ईश्वर को स्त्री रुप(ऋगवेद दशम मंडल नासदीय सूक्त) में स्वीकार किया है. अन्यथा दुनिया की दूसरी संस्कृतियों में ईश्वर को शैतान के बहकावे में आने वाला या नर्क का द्वार बताकर दोयम दर्जे का नागरिक ही बताया गया है.
तो अब ये तय कर लें कि महिलाओं को चक्राकार गति से आगे बढ़कर प्राचीन सनातन संस्कृति के अनुरुप स्वतंत्रता हासिल करना है.
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