महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं झांसी की दिव्यांग सीमा तिवारी

अरे ओ ज़िंदगी पे रोने वाले कुछ खबर भी है... वही है ज़िन्दगी जो ज़िन्दगी आसां नहीं होती..ज़िंदगी पर जीत की कहानी लिखी है झांसी की सीमा तिवारी ने जो डकैतों के हमले के दौरान दोनों पैरों से अपंग हो गईं थीं..  

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Mar 8, 2020, 03:32 AM IST
    • महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं झांसी की सीमा तिवारी
    • महारानी अहिल्याबाई बाई होल्कर अवार्ड विजेता हैं सीमा
    • डकैतों के हमले में गंवाए थे पैर
    • पैर हुए अक्षम लेकिन सीमा नहीं
    • बेरोजगारों को आत्मनिर्भर बनाने का निःशुल्क प्रशिक्षण देती है सीमा
    • 300 से अधिक लोगों को दे चुकी हैं प्रशिक्षण
महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं झांसी की दिव्यांग सीमा तिवारी

नई दिल्ली. इंसान का शरीर उसकी ताकत नहीं होती, उसका दिल होता है जिसमें होती है फौलाद जैसी ताकत जो आसमान में भी सुराख करने की कूबत रखती है. झांसी की रहने वाली सीमा तिवारी भी ऐसी ही एक ज़िंदा कहानी हैं जिन्होंने एक मिसाल बना दिया है अपने आपको.

 

होल्कर अवार्ड विजेता हैं सीमा 

सीमा की ज़िंदगी एक सन्देश है. और यह सन्देश कहता है कि इंसान अगर चाहे तो नामुमकिन को भी मुमकिन बनाया जा सकता है. अब सीमा को कुछ कहना नहीं पड़ता, उनकी कहानी ही जाने कितनी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनती है. सीमा वही महिला है जो डकैतों के हमले के दौरान दोनों पैरों से अपंग हो गई थी. लेकिन उसने पैर तो गंवाए, ज़िंदगी नहीं गंवाई. बिना हार माने वो आगे बढ़ती रही और आज सीमा  महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित तथा प्रशिक्षित करती है.

 

डकैतों के हमले में गंवाए थे पैर 

सीमा तिवारी आज भी उस दिन को याद करते समय दुखी नहीं होतीं जब साल 1996 में ग्वालियर में १८ फरवरी की रात ग्वालियर में सीमा के घर पर डकैतों ने धावा बोल दिया था. डकैतों ने परिवार के लोगों पर हमले शुरू कर दिए. सीमा किसी तरह छिपकर छत पर पहुंच गई और वहां से उसने पुलिस को सूचना देने के लिए छत से छलांग लगा दी. नीचे गिरने के बाद वह बुरी तरह से घायल हो गई लेकिन फिर भी किसी तरह घिसटते हुए पुलिस चौकी पहुंचने में कामयाब रही. इसके बाद पुलिस ऐक्शन में आई और उसने धावा बोल कर मौके से 7 डकैतों को दबोच लिया और इस तरह सीमा ने अपने परिवार की जान बचा ली. 

 

पैर हुए अक्षम लेकिन सीमा नहीं 

डकैतों की घटना ने सीमा के पैरों को तो अक्षम बना दिया लेकिन सीमा को नहीं बना पाई. इस घटना के बाद लगभग 12 साल वह बिस्तर पर रही और बिस्तर पर ही उसने सॉफ्ट टॉयज़ बनाना सीख लिया. उसके बाद वह धीरे-धीरे व्हील चेयर पर चलने लगी. अब कई सालों से सीमा झांसी में रह कर बेरोजगार युवक युवतियों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रशिक्षण देती हैं. अब तक 300 से ज्यादा लड़कियों और महिलाओं को सीमा साॅफ्ट टाॅयज, बैग, खिलौने आदि बनाने की ट्रेनिंग दे चुकी हैं.

 

देती हैं निःशुल्क प्रशिक्षण

इतना ही नहीं सीमा  कई मलिन और दलित बस्तियों में भी शिविर लगाकार ट्रेनिंग देने का काम करती हैं. सीमा हर तरह का प्रशिक्षण निशुल्क देती हैं.  कई सामाजिक संगठनों से भी सम्मानित सीमा की लगन और उसके संघर्ष को उत्तरप्रदेश सरकार ने भी प्रतिष्ठा दी और उसे महारानी अहिल्याबाई बाई होल्कर अवार्ड से पुरस्कृत किया.  

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