लखनऊ: उत्तर प्रदेश में बीते हफ्ते में दो बड़ी घटनाएँ हुईं. खास बात यह थी कि दोनों घटनाओं ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कि अगुवाई वाली उत्तर प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई. हालांकि एक घटना मे मुख्यमंत्री ने खुद मोर्चा संभाला और डैमेज कंट्रोल करने में काफी हद तक सफल भी हुए है. वहीं दूसरी घटना फिलहाल पहली घटना के शोर में दब जरूर गयी है. लेकिन अगर पुख्ता डैमेज कंट्रोल एक्सर्साइज़ अभी से शुरू नहीं की गई तो इसके दूरगामी परिणाम सामने आ सकते हैं.
पहली घटना विधानसभा में हुई
अनुपूरक मांगो को देखते हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा का शीतकालीन सत्र 17 दिसम्बर 2019 से बुलाया गया था. सत्र के दूसरे दिन गाज़ियाबाद ज़िले की लोनी विधान सभा क्षेत्र से बीजेपी विधायक नन्द किशोर गुर्जर ने पीठ से औचित्य का प्रश्न उठाने की अनुमति मांगी. स्पीकर हृदय नारायण दीक्षित ने गुर्जर को इजाजत नहीं दी. जिस पर लोनी के विधायक अपनी ही सीट पर खड़े होकर अपनी बात रखने की मांग करने लगे और देखते ही देखते विपक्ष और पक्ष के कई विधायक गुर्जर के समर्थन में सदन में हँगामा करने लगे. बढ़ते हंगामे को देख कर विधान सभा अध्यक्ष ने लगभग 2 बजे के करीब सदन को दिसम्बर 19 तक के लिए स्थगित कर दिया.
लेकिन मामला यहाँ पर भी शांत नहीं हुआ. गुर्जर के साथ साथ बीजेपी के 6 दर्जन से भी अधिक विधायक विपक्ष के विधायकों के साथ अपनी सीट पर बने रहे और अपने क्षेत्रों में अधिकारियों के द्वारा नजर अंदाज़ किए जाने का हवाला देते रहे.
जब मामला शांत नहीं हुआ तो विधान परिषद में नेता सदन और प्रदेश के दो उप मुख्यमंत्रियों में से एक डॉ दिनेश शर्मा, संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना, गन्ना मंत्री सुरेश राणा और स्वयं विधान सभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने विधायकों से 15 नंबर कमरे में बात करना शुरू किया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस दौरान झारखंड मे चुनाव प्रचार कर रहे थे.
तीन घंटे बीत जाने के बाद जब विधायक 15 नंबर कमरे से बाहर निकले तो बात दूसरे दिन सदन शुरू होने तक के इंतज़ार करने तक बताई गयी.
अधिकारियों ने सरकार का सांसत में डाला
इसके बाद दूसरे दिन गुर्जर को अपनी बात रखने का मौका मिला. अपनी व्यथा बताते हुए गुर्जर ने कहा की अधिकारी योगी सरकार के भ्रष्टाचार माखौल उड़ा रहे हैं और विधायक निधि से भी 18 से 22 प्रतिशत कमीशन ले रहे हैं. उन्होंने इन सभी मामलों की जांच की मांग की.
गुर्जर के आरोपों से सत्ता पक्ष के विधायकों के एक साथ सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आवाज़ उठाने के मामले ने सरकार की इमेज पर बड़ा धब्बा लगाया है और विपक्ष को बैठे बैठाये मुद्दा थमा दिया.
बात शायद और बढ़ती क्योंकि उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने ही सरकार के खिलाफ विधायकों का आवाज़ उठाना न केवल अप्रत्याशित ही नहीं बल्कि शायद पहली ही घटना थी.
CAA पर बवाल बड़ी मुश्किल से संभला
विधानसभा में हंगामे के दूसरे ही दिन लखनऊ सहित अन्य जिलों में NRC और CAA के विरोध में हुए हिंसात्मक प्रदर्शन ने विधायकों की आवाज़ को धीमा कर दिया.
लखनऊ में बलवाईयों के उपद्रव ने उत्तर प्रदेश कि कानून और व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया, वो भी तब जब खुद डीजीपी ओपी सिंह ही कमान अपने हाथों मे लिए हुए थे.
हिंसा भी कुछ इस तरह कि हुई कि कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया, कई जगहों पर पुलिस कर्मियों और मीडिया कर्मियों को निशाना बनाया गया और मीडिया कि ओबी वैन को भी आग के हवाले कर दिया गया.
घटना के बाद रात में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी ज़िले के कप्तान और जिलाधिकारियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सख्त निर्देश दिये और फ़ेल हुए कप्तानों को और अन्य आला अधिकारियों को डांट भी लगाई.
दूसरे दिन हरकत में आई पुलिस ने लखनऊ में बलवाईयों कि धरपकड़ तेज कर दी और नतीजा दूसरे दिन लखनऊ में जुम्मे कि नमाज़ शांति पूर्वक सम्पन्न हो गयी. कई जगहों में अगले एक दो दिन मे शांति और व्यवस्था कायम हो गयी.
इस घटना में जहां योगी ने स्वयं मोर्चा संभालते हुए डैमेज कंट्रोल एक्सर्साइज़ को काफी तेजी से सफलता पूर्वक लागू करा लिया.