चेन्नई. जैसा पाश्चात्य देशों में कभी भारत के लिए कहा जाता था कि भारत सांप और संपेरों का देश है. उनके लिए भी ये खबर पढ़ने योग्य है. भारत अब संपेरों का देश वास्तव में नहीं रह गया है. सांप मगर अभी बचे हैं देश में - कुछ राजनीति की दुनिया में तो कुछ तमिलनाडु मेंस जहां हर साल हज़ारों लोग इन साँपों के शिकार हो कर मौत के मुँह में समा जाते हैं.
सांप के काटने से दस हज़ार मौतें हर साल
लगता है तमिल नाडु सरकार को अपने लोगों की बिलकुल भी फ़िक्र नहीं है वर्ना हर साल होने वाली इन मौतों को रोकने के लिए कोई तो कदम उठाती. एक हालिया सर्वेक्षण से ये अजीबोगरीब बात सामने आई है. इक्कीसवीं सदी के भारत के एक राज्य में कुछ गाँवों के दस हज़ार लोग सांप के डसने से हर साल मरने को मजबूर हैं. यह सर्वेक्षण ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग ने कराया है.
कराया था तीस हज़ार घरों का सर्वेक्षण
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग ने किन कारणों से यह सर्वेक्षण कराया है, ये तो अभी प्रकाश में नहीं आया है लेकिन ये तो तय है कि भारत के तमिलनाडु राज्य की साँपों से जुडी यह जानकारी सात समंदर पार जा पहुंची है और भारत के लोग ही इससे अनजान हैं. इस ब्रिटिश उनिवेर्सिटी ने इस तथ्य के सत्यापन हेतु राज्य के ग्रामीण इलाकों में 30,000 घरों का सर्वेक्षण किया कि सांपों के डसने की कितनी घटनाएं होती हैं, इससे कितनी जन और धन हानि होती है, लोगों के स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, आदि.
सर्वेक्षण के 4 प्रतिशत लोग सर्प दंश के शिकार
यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग के एसोसिएट प्रोफेसर शक्तिवेल वाइयापुरी ने इस संबंध में जानकारी दी. उनके अनुसार सांप के काटने के शिकार मुख्य रूप से खेतिहर मजदूर होते हैं. सर्प दंश के शिकार लोगों में से 79 प्रतिशत लोग खेतों में थे और करीब 72 प्रतिशत लोग उस समय काम में लगे हुए थे. जिन लोगों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया, उनमें से लगभग चार प्रतिशत लोग सांप के काटने के शिकार हुए हैं.
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