Haridwar Mahakumbh 2021: वैष्णव संप्रदाय, जिनके लिए नारायण ही नारायण हैं सबसे ऊपर

वैष्णव परंपरा के तौर पर शुरुआत की स्पष्टता नहीं बताई जा सकती, लेकिन देवर्षि नारद को इसका श्रेय जाता है. वह परम विष्णु भक्त थे और नारायण-नारायण ही रटते थे. उन्होंने ध्रुव-प्रहलाद जैसे बालकों तक को नारायण एकादश अक्षरी मंत्र दिया था. ओंम् नमो भगवते वासुदेवाय.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 10, 2021, 08:06 AM IST
  • पुराणों में भी श्री हरि विष्णु के 24 अवतार बताए हैं. उनके प्रमुख 10 अवतार माने जाते हैं
  • वैष्णवों के चार प्रमुख सम्प्रदाय श्री सम्प्रदाय, हंस सम्प्रदाय, ब्रह्म सम्प्रदाय और रूद्र सम्प्रदाय हैं.
Haridwar Mahakumbh 2021: वैष्णव संप्रदाय, जिनके लिए नारायण ही नारायण हैं सबसे ऊपर

नई दिल्लीः Haridwar Mahakumbh-2021 की शुरुआत होने वाली है. इसी के साथ हरिद्वार में पावन गंगा तट पर श्रद्धालुओं, साधु-संन्यांसियों और तीर्थयात्रियों के कल्पवास की व्यवस्था होने लगी है. आस्था के इस जमघट में शैव संप्रदाय जो कि शिव महादेव को ईष्ट मानते हैं और वैष्णव संप्रदाय जो कि श्रीहरि को ईष्ट मानते हैं दोनों ही धाराओं का संगम होगा.

आस्था का यह अद्भुत समागम युगों से चला आ रहा है, जो कि भारतीय संस्कृति की धरोहर है. Mahakumbh का आयोजन पावन गंगा तट पर होगा और वैष्णव संप्रदाय गंगा को श्रीहरि के चरणों से निकलने के कारण पवित्र मानता है. 

कौन हैं वैष्णव संप्रदाय
प्राचीन काल से ही भगवान विष्णु को प्रधान देवता मानने वालों का एक अलग पंथ रहा है. सत्यनारायण के रूप में पूजे जाने वाले भगवान विष्णु को पूर्ण पुरुष औऱ गृहस्थों का देवता भी कहा जाता है. पुराणों में उनके 24 अवतार वर्णित हैं और इस तरह सभी कथाओं में उनकी उपस्थिति के कारण वह पुराण पुरुष भी कहलाते हैं.

वैष्णव परंपरा के तौर पर शुरुआत की स्पष्टता नहीं बताई जा सकती, लेकिन देवर्षि नारद को इसका श्रेय जाता है. वह परम विष्णु भक्त थे और नारायण-नारायण ही रटते थे. उन्होंने ध्रुव-प्रहलाद जैसे बालकों तक को नारायण एकादश अक्षरी मंत्र दिया था. ओंम् नमो भगवते वासुदेवाय.

 

इसी आधार पर उन्हें त्रिदेवों में प्रधान भी कहा जाता है. त्रिदेवों यानी कि ब्रह्मा, विष्णु और महादेव शिव. बहुत बाद में चलकर यही प्रधानता का विषय शैव और वैष्णव के संप्रदायों के बीच तकरार का कारण भी बना है. 

लेकिन जो तकरार करते हैं वे न शिव को समझ सके हैं और न ही श्रीहरि को. 

श्रीहरि के हैं 24 अवतार
भगवान विष्णु की प्रधानता का एक कारण यह भी है कि उन्होंने सृष्टि कल्याण के समय-समय पर अवतार लिया. यह अवतार मुख्यतः 10 और लोककथाओं के आधार पर 24 बताए जाते हैं. 

 

जबकि 24 अवतारों में यह 10 अवतार शामिल हैं और इसके अलावा 14 अन्य भी हैं. 1. आदि पुरुष, 2. चार सनतकुमार, 3. वराह, 4. नारद, 5. नर-नारायण, 6. कपिल, 7. दत्तात्रेय, 8. याज्ञ, 9. ऋषभ, 10. पृथु, 11. मत्स्य, 12. कच्छप, 13. धन्वंतरि, 14. मोहिनी, 15. नृसिंह, 16. हयग्रीव, 17. वामन, 18. परशुराम, 19. व्यास, 20. राम, 21. बलराम, 22. कृष्ण, 23. बुद्ध और 24. कल्कि. 

इतिहास में वैष्णव मत
प्राचीन लिखित इतिहास में वैष्णव मत शताब्दियों तक मिलता है. श्रीकृष्ण के अवतार के बाद से वैष्णव मत की पुष्टि साफ तौर पर मिलती है औऱ इस तरह शैव और वैष्णव मत साथ-साथ चलते मिलते हैं. श्रीकृष्ण का गीता उपदेश श्रीमद्भ भगवद्गीता कहलाता है, जिसमें शिव के निरंकार स्वरूप का वर्णन हुआ है. महाभारत के कई पर्वों में शिव पूजा का उल्लेख है. 

इस परंपरा के अलावा राजाओं की मान्यताओं ने भी वैष्णव धर्म को प्रताप दिलवाया. गुप्त नरेश अपने आपको 'परम भागवत्' कहलाते थे. यूनानी राजदूत हेलियोडोरस (ई.पू. २००) ने भेलसा (विदिशा) में गरूड़ स्तम्भ बनवाया था. पाणिनि के पूर्व भी तैत्तिरीय आरण्यक में विष्णु गायत्री में विष्णु, नारायण और वासुदेव की एकता दर्शायी गयी है. इसमें लिखा गया है- 'नारायणाय विद्मेह वायुदेवाय धीमहि तन्नों विष्णु प्रचोदयात्'. 

सातवीं से चौदहवीं शताब्दी के बीच दक्षिण के द्रविड़ क्षेत्र में अनेक आलवार भक्त हुए, जो भगवद् भक्ति में लीन रहते थे और भगवान् वासुदेव नारायण के प्रेम, सौन्दर्य तथा आत्मसमर्पण के पदो की रचाना करके गाते थे. उनके भक्तिपदों को वेद के समान पवित्र और सम्मानित मानकर 'तमिलवेद' कहा जाने लगा था. 

वैष्णवों के चार प्रमुख सम्प्रदाय माने जाते है. इनमें श्री सम्प्रदाय, हंस सम्प्रदाय, ब्रह्म सम्प्रदाय और रूद्र सम्प्रदाय शामिल हैं. 
 Mahakumbh में वैष्णवों के भी अखाड़े पहुंचते हैं. इनमें मूलत: बैरागी संप्रदाय है, जिसके तीन अखाड़े श्री दिगम्बर आनी अखाड़ा, श्री निर्वाणी आनी अखाड़ा और श्री निर्मोही आनी अखाड़ा हैं. 

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