नई दिल्ली: चीनी सेना ने चुपके से पैंगोंग (Pangong) इलाके में घुसने की कोशिश की. चीन के 500 सैनिक यहां के थाकुंग इलाके में टैंकों के साथ जमा हुए थे. लेकिन उनके सामने भारतीय सेना (Indian Army) मुस्तैद खड़ी थी. भारतीय सैनिकों के चौड़े सीने के आगे चीन के लोहे के टैंक हार मान गए और कायर चीनियों को वापस लौटना पड़ा. इसके पीछे का कारण यह है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग(Xi Jinping) को जबरदस्त आंतरिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है. जिस पर से वो ध्यान हटाना चाहते हैं.
पूरी दुनिया का विलेन है चीन
चीन में एक पार्टी का शासन है. वहां राष्ट्रपति को सर्वेसर्वा माना जाता है. उसके हुक्म की अवहेलना का साहस कोई नहीं कर सकता. लेकिन वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के बाद चीन का विरोध शुरु हो गया है. क्योंकि पूरी दुनिया इसके लिए चीन को जिम्मेदार मानती है और उसे सजा देने के लिए तरह तरह के कदम उठा रही है. इसी कदम के तहत अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने चीन पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं. भारत ने भी चीनी कंपनियों को बैन किया है. चीन के ऐप्स रोके गए हैं.
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इन सभी कदमों का चीन के अंदर बड़ा बुरा असर दिखाई दे रहा है. भले ही चीन अपनी आंतरिक खबरें बाहर नहीं आने देता. लेकिन वास्तविकता ये है कि चीन में बेरोजगारी और भुखमरी की स्थिति पैदा होती जा रही है. जनता बदहाल होती जा रही है. जिनपिंग जानते हैं कि अनुशासन के नाम पर चीनी जनता की आवाज को बहुत दिनों तक दबाया नहीं जा सकता. इसलिए वह छद्म राष्ट्रवाद का सहारा ले रहे हैं.
जिनपिंग जानते हैं कि भारत के साथ तनाव बढ़ाकर वह चीनी जनता की राष्ट्रवादी भावनाओं को उभार देंगे. जिसकी वजह से उनका आंतरिक विरोध कम हो जाएगा. राष्ट्रवाद की मीठी छुट्टी पीकर चीनी जनता भूख और बेरोजगारी का कड़वा स्वाद भूल जाएगी.
लेकिन जिनपिंग यह भूल रहे हैं कि अगर भारत के साथ तनाव बढ़ाते हुए अगर उन्हें मात मिलती है तो उनकी हिलती हुई कुर्सी पूरी तरह ढह जाएगी.
चीन में जिनपिंग के विरोध के ठोस संकेत
चीन में जिनपिंग की तानाशाही भरे रवैये के खिलाफ आवाजें बुलंद हो रही हैं. पिछले दिनों दो ऐसे नाम सामने आए. जिन्होंने जिनपिंग का खुलकर विरोध किया. चीन में अमूमन ऐसा होता नहीं है.
पहले तो चीन के एक अहम नेता रेन झिकियांग ने राष्ट्रपति जिनपिंग के खिलाफ आवाज उठाई. जिसके बाद उनको निष्कासित कर दिया गया. रेन झिकियांग की गिनती चीन के बड़े नेताओं में होती थी. लेकिन जिनपिंग का विरोध करने के कारण उन्हें अपने पद और प्रतिष्ठा दोनों से हाथ धोना पड़ा.
इसके बाद सामने आईं प्रोफेसर काई जिआ. 67 साल की ये महिला सेंट्रल पार्टी स्कूल की प्रोफेसर थीं. उन्होंने जिनपिंग के खिलाफ खुलकर मोर्चा लिया और साफ तौर पर उनकी नीतियों को चीन के हितों के खिलाफ बताया.
काई जिया का विरोध इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने स्पष्ट कहा था कि राष्ट्रपति जिनपिंग चीन के नागरिकों का ध्यान देश की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से हटाने की कोशिश कर रहे हैं और इसी कारण वे भारत के विरुद्ध विवाद को लगातार भड़काने में लगे हुए हैं.
काई जिया चीन में बेहद सम्मानित हैं. उनके पिता चीन के राष्ट्रपिता माने जाने वाले माओ-त्से-तुंग के निकट सहयोगी थे. जिसकी वजह से उन्हें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का आजीवन सदस्य बनाया गया था. वह चीन की नब्ज पर गहरी पकड़ रखती हैं. अगर वह बता रही हैं कि जिनपिंग का चीन में विरोध हो रहा है तो मान लीजिए कि जिनपिंग अब ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं हैं.
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गलवान में सैनिक के कब्र की फोटो आने के बाद बढ़ा असंतोष
पिछले दिनों चीन के एक सैनिक की कब्र की तस्वीर वायरल हुई. जिसपर लिखा हुआ था - ये सैनिक की चीन और भारत के बीच हुए सीमा रक्षा के संघर्ष में जून 2020 में मारा गया था. मारे गए चीनी सैनिक की तस्वीर में सैनिक की पूरे विस्तार के साथ दी गई है. चीन का ट्विटर माने जाने वाले माइक्रो ब्लॉगिंग साइट पर चीनी सैनिक की तस्वीर वायरल हो रही है.
इस तस्वीर के साथ दी गई इस सैनिक की पूरी जानकारी ने चीनी सरकार के झूठ की पोल खोल दी है. चीनी मामलों के एक एक्सपर्ट ने इस तस्वीर की तस्दीक करते हुए बताया है कि ये तस्वीर और इसका विवरण सही है. चीनी सैनिक कब्र से संबंधित पूरी खबर आप यहां पढ़ सकते हैं.
इस कब्र की तस्वीर वायरल होने के बाद जिनपिंग की मुश्किल इसलिए भी बढ़ गई क्योंकि गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद भारतीय जवानों को पूरे देश ने जबरदस्त सम्मान दिया. जिसकी तस्वीरें पूरी दुनिया में वायरल हुईं.
लेकिन चीन में अपने मारे गए सैनिकों के सम्मान की बात तो दूर, उनकी संख्या की घोषणा भी नहीं की गई. इसलिए चीनी सैनिक की कब्र की तस्वीर वायरल होने से सेना में विद्रोह की आशंका खड़ी होने लगी थी.
इन्हीं कारणों से जिनपिंग हड़बड़ी में भारत के साथ संघर्ष को हवा दे रहे हैं. लेकिन आग से खेलने का यह दांव उन्हें उल्टा भी पड़ सकता है.
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