Explainer: तलाक के बाद कैसे तय होता है महिला के लिए Alimony का अमाउंट? जानें पति को कब मिलती है एलिमनी
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Explainer: तलाक के बाद कैसे तय होता है महिला के लिए Alimony का अमाउंट? जानें पति को कब मिलती है एलिमनी

Alimony: तलाक के बाद पति या पत्नी अपने पार्टनर को एलिमनी का अमाउंट देते हैं, ताकि वह अपना गुजर-बसर कर सके. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पति द्वारा अपनी अलग हुई पत्नी को दिए जाने वाले एलिमनी अमाउंट के लिए एक बेंचमार्क सेट कर रखा है.

Explainer: तलाक के बाद कैसे तय होता है महिला के लिए Alimony का अमाउंट? जानें पति को कब मिलती है एलिमनी

Alimony: भारतीय क्रिकेटर हार्दिक पांड्या और उनकी पत्नी नताशा स्टेनकोविक के रास्ते अब जुदा हो गए हैं. दोनों ने एक-दूसरे से तलाक लेने की ऑफिशियल तौर पर घोषणा कर दी है. इनके तलाक की खबरों के बाद अब सोशल मीडिया पर लोग एलिमनी के अमाउंट को लेकर चर्चा कर रहे हैं. लेकिन, क्या आपको यह पता है कि आखिर तलाक के बाद महिला के लिए एलिमनी का अमाउंट कैसे तय किया जाता है? एक महिला अपने पति से तलाक के बाद कितनी एलिमनी का मांग कर सकती है? इसके अलावा क्या पति को भी एलिमनी दी जाती है? अगर नहीं, तो आज हम आपको इन सभी सवालों के जवाब देंगे.

एलिमनी क्या है?

सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि एलिमनी (Alimony) होती क्या है. दरअसल, तलाक के बाद पति या पत्नी अपने पार्टनर को एलिमनी का अमाउंट देते हैं, ताकि वह अपना गुजर-बसर कर सके. हालांकि, जो पार्टनर अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, उसे दूसरा पार्टनर एलिमनी देता है. वहीं, एलिमनी प्राप्त करने का अधिकार उस व्यक्ति की कमाई करने की क्षमता पर निर्भर करता है, जो आर्थिक रूप से विवाह पर निर्भर है. प्राप्तकर्ता पति या पत्नी, आश्रित बच्चे और यहां तक कि गरीब माता-पिता भी हो सकते हैं. इसे बस फाइनेंशियल सपोर्ट कहा जा सकता है. 

पति को कब मिलती है एलिमनी?

आमतौर पर एलिमनी पति द्वारा पत्नी को दी जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि पति एलिमनी की मांग नहीं कर सकता. अगर पति की कमाई उसकी पत्नी से कम है या वह बेरोजगार है, तो वह अपनी पत्नी से एलिमनी मांग सकता है.

भारत में तलाक के बाद पत्नी को कितनी एलिमनी मिलती है? 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में पति द्वारा अपनी अलग हुई पत्नी को दिए जाने वाले भरण-पोषण (Alimony) के लिए एक बेंचमार्क सेट किया है, जिसमें कहा गया है कि पति की नेट सैलरी का 25% गुजारा भत्ता के रूप में उचित राशि हो सकती है. यह पति द्वारा पत्नी को दिए जाने वाले प्रति माह गुजारा भत्ते के लिए उपयुक्त है. 

वहीं, एकमुश्त राशि (One-Time Lump Sum Amount) के लिए ऐसा कोई बेंचमार्क नहीं दिया गया है, लेकिन आमतौर पर, यह पति या पत्नी की कुल संपत्ति का 1/5वां से 1/3वां हिस्सा होता है. हालांकि, एलिमनी की कैल्कुलेशन करने का कोई कठोर नियम किसी भी भारतीय कानून के तहत परिभाषित नहीं किया गया है, न ही यह संभव है क्योंकि यह हर एक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है.

भारत में, एलिमनी तलाक लेने वाले पार्टनर के व्यक्तिगत कानूनों के साथ-साथ स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रोविजन के अनुसार शासित होता है. हालांकि, अलग-अलग इंडियन पर्सनल लॉ के तहत एलिमनी का कैल्कुलेशन कैसे किया जाता है, इसकी डिटेल नीचे दी गई है.

भारत में एलिमनी का कैल्कुलेशन निम्नलिखित कारकों के आधार पर किया जाता है:

1. पति-पत्नी की मंथली सैलरी (टैक्स के बिना): कोर्ट सबसे पहले पति और पत्नी की सैलरी को जांच करता है और यह देखता है कि पती और पत्नी की फाइनेंशियल कैपेबिलिटी और फाइनेंशियल असिस्टेंस कितनी है.

2. एजुकेशन बैक्ग्राउंड और सैलरी वाली नौकरियों की संभावना: पति-पत्नी का मूल्यांकन करते समय, उनके एजुकेशन बैक्ग्राउंड को सावधानीपूर्वक रिव्यू किया जाती है. उनकी योग्यता और नौकरी की संभावनाओं पर विचार किया जाता है. अगर किसी एक पति या पत्नी के पास हायर एजुकेशन और बेहतर नौकरी के अवसर हैं, तो उनसे उनकी वित्तीय भलाई में अधिक योगदान की उम्मीद की जा सकती है.

3. विवाह के वर्षों की संख्या: विवाह की अवधि एलिमनी के विचारों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है. लंबी शादियों में अधिक पर्याप्त या स्थायी एलिमनी मिल सकती है, जबकि छोटी यूनियनों में अलग-अलग विचार हो सकते हैं.

4. बच्चों की संख्या और चाइल्ड कस्टडी: एलिमनी पर विचार करते समय बच्चों की वित्तीय आवश्यकताओं का आकलन करना महत्वपूर्ण है. कस्टोडियल व्यवस्था (बच्चों की कस्टडी किसके पास है) भी एलिमनी के अमाउंट को प्रभावित कर सकती है. बच्चों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए कस्टोडियल माता-पिता को अधिक एलिमनी दी जा सकती है.

5. पति की सैलरी और स्टेटस: पति की सैलरी, नौकरी, संपत्ति और जीवनशैली का आकलन करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि एलिमनी का अमाउंट उचित है और उसे प्राप्त करने वाले पति या पत्नी को एक सभ्य लिविंग स्टैंडर्ड बनाए रखने की अनुमति मिलती है.

6. पति की देनदारियां: एलिमनी का आकलन करते समय, पति की फाइनेंशियल जिम्मेदारियों जैसे लोन, ईएमआई और आश्रित परिवार के सदस्यों पर विचार करना भी महत्वपूर्ण है. ये कारक उसकी भुगतान करने की क्षमता निर्धारित करने में मदद करते हैं.

7. पत्नी की उचित जरूरतें: कोर्ट पत्नी की ज़रूरतों को भी ध्यान में रखता है और ऐसी जरूरतें, जो सिर्फ बुनियादी जरूरतों से परे होती हैं. इसमें यह विचार करना शामिल है कि क्या उसके साथ बच्चे रहते हैं और उनकी जरूरतें क्या हैं. कोर्ट यह देखने के लिए उनकी योग्यता और पैसे कमाने की क्षमता को भी देखता है कि क्या वह आर्थिक रूप से अपना भरण-पोषण कर सकती है.

8. बिना किसी पर्याप्त कारण के अलग रह रही पत्नी: अगर कोई पत्नी बिना किसी वेलिड कारण के अपने पति से अलग रह रही है, तो वह एलिमनी के लिए एलिजिबल नहीं हो सकती है. 2019 में जबलपुर में श्रीमती तेजा बाई बनाम चिद्दू आर्मो के मामले में, हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि श्रीमती तेजा बाई अपने पति की बीमारी के आधार पर अपने बच्चे के साथ अपना वैवाहिक घर छोड़ कर चली गई. हालांकि, यह अपने पति से अलग रहने को उचित ठहराने के लिए एक अपर्याप्त कारण पाया गया और भरण-पोषण के लिए उनके दावे को अस्वीकार कर दिया गया.

9. पेशेवर रूप से योग्य पत्नी और कमाने की क्षमता: कुछ मामलों में, एक हाइली एजुकेटेड पत्नी जो काम कर सकती है, उसे लंबे समय तक फाइनेंशियल सपोर्ट नहीं मिल सकती है. ऐसा श्रीमती ममता जायसवाल बनाम राजेश जायसवाल मामले में हुआ था. भले ही ममता के पास एमएससी, एमसी और एमएड जैसी प्रभावशाली डिग्रियां थीं, लेकिन वह नौकरी के योग्य नहीं थी.

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