उत्तर भारत में अकेले Punjab में क्यों बहती है अलग सियासी हवा, क्या भाजपा का जादू चल पाएगा?
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उत्तर भारत में अकेले Punjab में क्यों बहती है अलग सियासी हवा, क्या भाजपा का जादू चल पाएगा?

Punjab Politics: पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर 1 जून को वोटिंग होनी है. तीन दशक में पहली बार भाजपा अकेले चुनाव लड़ रही है. खास बात यह है कि नॉर्थ इंडिया के सियासी ट्रेंड से अलग पंजाब में माहौल दिखता है. 

उत्तर भारत में अकेले Punjab में क्यों बहती है अलग सियासी हवा, क्या भाजपा का जादू चल पाएगा?

Punjab Lok Sabha Chunav: हाल के वर्षों में किसान आंदोलन को लेकर पंजाब सुर्खियों में रहा है. अब लोकसभा चुनाव में कई तरह की बातें हो रही हैं. खास बात यह है कि भाजपा अकेले चुनाव लड़ रही है. उत्तर भारत की राजनीति में इस राज्य की भूमिका को लेकर पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर आशुतोष कुमार ने एक लेख लिखा है. उन्होंने कुछ कारण गिनाते हुए समझाया है कि आखिर पंजाब नॉर्थ इंडियन पॉलिटिक्स में सबसे अलग क्यों खड़ा दिखता है?

  1. पहला: आजादी के बाद के शुरुआती वर्षों में भी यहां 'कांग्रेस सिस्टम' नहीं रहा. दूसरे राज्यों से बिल्कुल अलग कांग्रेस को अकाली दल और जनसंघ जैसी पार्टियों से जबर्दस्त चुनौती मिली. 
  2. दूसरा: ज्यादातर राज्यों में पिछले 35 वर्षों में राजनीतिक ताकत को लेकर देखें तो मध्यम और निचली जातियों का उदय हुआ है. हालांकि पंजाब एक ऐसा राज्य है, जहां एक तिहाई अनुसूचित जातियों की आबादी होने के बावजूद, सत्ता का सामाजिक आधार संख्यात्मक रूप से मजबूत और जमीन-मालिक जाट सिख किसानों के पास बरकरार है. 2022 के विधानसभा चुनाव से महीनों पहले कांग्रेस ने एक दलित मुख्यमंत्री नियुक्त कर सत्ता विरोधी लहर खत्म करने की कोशिश की लेकिन असफल रही. 
  3. तीसरा: जनसंघ की तरह भाजपा भी राज्य में अपनी पैठ नहीं बना पाई है. वैसे उसका अकाली दल के साथ लंबे समय तक (1997-2021) गठबंधन रहा. यह देश के दूसरे उत्तर भारतीय राज्यों से उलट है जहां भाजपा कभी कमजोर रही थी. उसने पहले कनिष्ठ सहयोगी के रूप में स्थानीय रूप से शक्तिशाली क्षेत्रीय पार्टी के साथ गठबंधन किया और बाद में अपने दम पर जीत हासिल करने के काबिल बन गई. ओडिशा, कर्नाटक, बिहार और पश्चिम बंगाल के मामले प्रासंगिक हैं.
  4. चौथा: पंजाब कभी भी कांग्रेस और भाजपा के राष्ट्रीय मुद्दों के प्रभाव में नहीं आया. इस बार भाजपा सुरक्षा, आर्टिकल 370, नागरिकता जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है लेकिन राज्य में अब तक कोई लहर नहीं दिख रही है. इसके विपरीत संसदीय चुनावों में भी यहां स्थानीय मुद्दे निर्णायक बने हुए हैं. 
  5. पांचवां: पंजाब एकमात्र राज्य है जहां आम आदमी पार्टी लोकसभा सीट जीतने में सफल रही है. 2014 के चुनाव में, तब दो साल पुरानी पार्टी ने 13 में से चार सीटें जीत ली थीं. AAP साल 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल बना और 2022 के चुनाव में 117 सीटों में से 92 पर अभूतपूर्व जीत हासिल की. लोकसभा चुनाव में भी यह फाइट में है. 
  6. छठा: बड़ी हिंदू आबादी होने के बावजूद पंजाब मध्य से दक्षिणपंथी रूढ़िवाद की ओर बड़े पैमाने पर वैचारिक शिफ्ट से अछूता दिखता है. जबकि उत्तर, मध्य और पश्चिमी भारत के मैदानी इलाकों और पहाड़ियों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उदय में दिखाई देता है. अमृतपाल सिंह प्रकरण जैसे केस सामने आने के बावजूद सिख समुदाय कट्टरपंथ से दूर ही है. 
  7. सातवां: कई राज्यों के उलट यहां क्षेत्रीय पार्टी भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है. दूसरे राज्यों में एक क्षेत्र-विशिष्ट के राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक एजेंडे के साथ चल रहे दल राष्ट्रीय पार्टियों को चुनौती देने में कामयाब रहे हैं. यहां 100 साल से भी ज्यादा पुरानी पार्टी अकाली दल सिख समुदाय का एकमात्र प्रतिनिधि होने का दावा करती है. हालांकि पार्टी में लगातार गिरावट होती गई है. गौर करने वाली बात यह है कि इसकी वजह भाजपा नहीं है. 
  8. राज्य में स्थानीय मुद्दे ही अहम हैं. राज्य में किसान समुदाय का प्रभाव दिखता है. कृषि क्षेत्र को लेकर किसान परेशान हैं. वे लंबे समय तक सिंघू सीमा पर रहे, जो 2020 में तीन कृषि विधेयकों के खिलाफ आंदोलन की याद दिलाता है.
  9. बड़ा सवाल यह है कि क्या पंजाब 2024 के लोकसभा चुनाव में एक अपवाद बना रहेगा? 27 साल बाद भाजपा अकेले चुनाव लड़ रही है. इसका प्रदर्शन देखना दिलचस्प होगा, विशेष रूप से लुधियाना और जालंधर जैसी शहरी सीटों पर जहां पार्टी पहली बार चुनाव लड़ेगी. इन इलाकों में हिंदुओं की अच्छी खासी आबादी है. इसके बाद ऐसे निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां भाजपा ने अकाली दल के साथ गठबंधन करके अतीत में जीत हासिल की है- गुरदासपुर और होशियारपुर (पांच बार) और अमृतसर (तीन बार). ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि पीएम नरेंद्र मोदी का जादू पंजाब में काम करता है या नहीं.

हां, जैसे नॉर्थ इंडिया का ट्रेंड देखिए तो 2014 से लगातार भाजपा को सफलता मिलती रही. हालांकि पंजाब में भाजपा का जादू नहीं चला और वह इसके लिए आज भी संघर्ष करती दिख रही है. एक्सपर्ट कहते हैं कि कृषि प्रधान राज्य की दिशा हमेशा से क्षेत्रीय ट्रेंड से उलट रही है. TOI में प्रकाशित लेख में आशुतोष कहते हैं कि भारत के सभी राज्य अपने विशिष्ट चुनावी विकल्पों और पार्टी सिस्टम के कारण एक 'मिनी डिमोक्रेसी' के रूप में हमारे सामने हैं. हालांकि चुनावी स्टडी में पंजाब का केस बिल्कुल अलग है. यह अपने रुझानों को तो दिखाता है लेकिन अपवाद रहता है. 

ऐसे में उन प्रमुख कारणों को समझना दिलचस्प है जिस वजह से इसे नॉर्थ के ट्रेंड में 'गैर' समझा जाता है. 

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