जीशान आयूब ने कमाल की एक्टिंग की है. जीशान को आप पहले फिल्म रांझणा, रईस, ट्यूबलाइट जैसी फिल्मों में साइड रोल करते हुए देख चुके हैं. लीड एक्टर के रूप में ये उनकी पहली फिल्म है.
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नई दिल्ली: कोई तो बताए? दंगों से किसी को क्या हासिल होता है? खून के दरिए में तैरकर कैसे जन्नत का रास्ता तय होता है? कोई भी धर्म, किसी को बांट कैसे सकता है? किसी के आंखों के आंसू से जश्न कैसे मनता है?…. ऐसे तमाम सवाल कितनी ही बार पैदा होते हैं और वहीं दम तोड़ भी देते हैं.
सारी तालीम धरी की धरी रह जाती है. इंसानियत के टुकड़े हो जाते हैं. सिसकी मातम मनाती है. न जाने कितने ही ‘राशिद’ ‘समीर’ धार्मिक तनाव में पनपते हैं. राजनीति के तवे पर सिंकते हैं. भभकते हैं. सड़ जाते हैं. हासिल कुछ नहीं होता. बस मिट्टी के कफन में लिपट जाते हैं. ‘समीर’ भी इनमें से एक है.
डायरेक्टर: दक्षिण बजरंगे छारा
कलाकार: जीशान अयूब, अंजलि पाटील और सीमा बिश्वास
रेटिंग: 3.5 स्टार
क्या है फिल्म की कहानी
हैदराबाद में दंगें होते हैं. इसमें 14 लोग मारे जाते हैं. शक की सुई यासीन दर्जी नाम के शख्स पर घूमती है. एटीएस उसे ढूंढते हुए लड़कों के हॉस्टल पहुंचती है. वहां यासीन तो नहीं मिलता लेकिन उसका रूममेट समीर मेनन (जीशान आयूब) पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है. पूछताछ में पता चलता है वह बेकसूर है. समीर कुछ दिन पहले ही यासीन के कमरे में शिफ्ट हुआ था. पुलिस यासीन को ढूंढने के लिए समीर का मोहरे की तरह इस्तेमाल करती है. उसे यासीन के घर भेजकर उसकी मां से ज्यादा मेलजोल बढ़ाने को कहा जाता है. ऑफिसर, समीर को धमकी देता है अगर समीर यासीन को नहीं ढूंढता तो तू बकरा बनेगा और मैं कसाई. वहीं, आतंकी अपने हर हमले से पहले जर्नलिस्ट आलिया (अंजलि पाटील) को मैसेज कर देते हैं. एक के बाद एक खुलासे होते चले जाते हैं. कहानी तेजी से चलती है और थ्रिल बनाए रखती है, लेकिन फिल्म का अंत तो वाकई हैरान कर देने वाला होता है. इससे ज्यादा कहानी बताकर हम आपका मजा किरकिरा नहीं करेंगे. लेकिन कहानी जानदार है, शानदार है, मजेदार है इतना तो कहे बिना हम मानेंगे भी नहीं.
कमाल की एक्टिंग
जीशान आयूब ने कमाल की एक्टिंग की है. जीशान को आप पहले फिल्म रांझणा, रईस, ट्यूबलाइट जैसी फिल्मों में साइड रोल करते हुए देख चुके हैं. लीड एक्टर के रूप में ये उनकी पहली फिल्म है. इसमें कोई दोराय नहीं की जीशान के अभिनय में गहराई है. हमेशा की तरह इस फिल्म में भी उनका अभिनय गहरा असर छोड़ता है. अंजलि पाटील ने जर्नलिस्ट का किरदार निभाया है. वह बेखौफ होकर सिस्टम से लड़ती हैं. नैचुलर अभिनय है. फिल्म में रॉकेट नाम का बच्चे का अच्छा अभिनय है. हकलाती जुबान में उसकी एक-एक बात इंसानियत को झकझोर कर रख देती है. सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना, सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना.
फिल्म के बारे में खास बातें
फिल्म में पाश की कविताओं का बखूबी उपयोग किया गया है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि दंगें करवाने के पीछे किस तरह की मानसिकता काम करती है. अगर एक आम आदमी की बात की जाए, वो चाहे हिंदू हो या मुसलमान, उसके दिल में किसी भी धर्म को लेकर इतनी कटुता नहीं है कि किसी का गला काट दें. बस कमी वहां हो जाती है, जब वे राजनीतिक बिसात पर मोहरों की तरह बिछ जाते हैं और नेताओं के हाथों की चाल से चलने लगते हैं. फिल्म राजनीति पर भी कटाक्ष करती है कि असल में नेता लोगों को सिर्फ अपने नोट बैंक से मतलब होता है और कट्टरपन के पर्दे में लिपटे कुछ हिंदू-मुसलमान यही नहीं समझ पाते और बिना कुछ सोचे समझे एक कठपुतली की तरह नाचने लगते हैं.
हमारी सहयोगी वेबसाइट इंडिया.कॉम के साथ इंटरव्यू में क्या बोले जीशान अयूब, यहां देखें
(पूजा बत्रा)