फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के दौरान कैसे संभालें मेंटल और इमोशनल हेल्थ, जानें यहां
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फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के दौरान कैसे संभालें मेंटल और इमोशनल हेल्थ, जानें यहां

हर साल मई को मेंटल हेल्थ अवेयरनेस मंथ के रूप में मनाया जाता है. आइए इस आर्टिकल में इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के दौरान अपनी मेंटल हेल्थ संभालने के तरीके जानते हैं.

सांकेतिक तस्वीर

Mental Health Awareness Month: माता-पिता बनना पुरुषों और महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण बदलावों में से एक होता है. बच्चे की चाहत पूरी ना हो पाने का संबंध भावनात्मक और मानसिक क्षति से जुड़ा है. लाखों लोग और जोड़े बांझपन की समस्या से ग्रसित हैं, जिससे उनकी मानसिक सेहत पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है. अध्ययनों के मुताबिक, इनफर्टाइल कपल काफी बेचैनी और मानसिक पीड़ा से गुजरते हैं. जब फर्टिलिटी ट्रीटमेंट कई बार असफल हो जाता है तो उन्‍हें काफी ज्यादा दुख होता है.

इसके साथ ही फर्टिलिटी मेडिसिन भी उनकी मेंटल हेल्थ पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं. यह तनावपूर्ण स्थिति केवल बांझपन की वजह से ही नहीं होती, बल्कि हॉर्मोनल मेडिसिन के कारण भी होती हैं. जो कि बीमारी को ठीक करने के लिये दी जाती हैं. इसके दुष्प्रभावों में नींद से जुड़ी परेशानियां, यौनेच्छा में कमी, हॉट फ्लेश, अवसाद या बेचैनी शामिल है.

फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के दौरान मेंटल हेल्थ कैसे सुधारें?
बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ की कंसल्टेंट डॉ. प्राची बेनारा के मुताबिक प्रजनन एक भावनात्मक समस्या है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. परिवार, दोस्तों, चिकित्साकर्मियों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के सहयोग का लाभ ज्यादातर लोगों को मिलता है. स्पर्म, एग फ्रीजिंग, भ्रूण दान या गेस्‍टेशनल कैरियर्स जैसे बांझपन के उपचार के विकल्पों पर विचार करने पर प्रजनन की काउंसलिंग से फायदा मिल सकता है. एक जैसी हॉबी की तलाश करने से बेचैनी के स्तर को कम किया जा सकता है. जैसे कि किताबें पढ़ने से भावनाओं में संतुलन, माहौल में नियंत्रण और इंसानी इच्छाओं के अनुसार उसे नये सिरे से व्यवस्थित करने में मदद मिलती है. साथ ही योगा, ध्यान और संगीत सुनने जैसी गतिविधियां आपके दिमाग को शांत रखती हैं.

महिलाओं की मेंटल हेल्थ पर ज्यादा बुरा असर करता है इनफर्टिलिटी
नई दिल्ली स्थित मणिपाल हॉस्पिटल्स के ऑब्सगायने एवं एकेडेमिक्स व रिसर्च एचसीएमसीटी की एचओडी डॉ. लीना एन. श्रीधर ने कहा, ‘‘अपने प्रजनन काल में 10 से 15 प्रतिशत दंपत्ति इनफर्टिलिटी या बांझपन से पीड़ित हो जाते हैं. इन्फर्टिलिटी के लिए बेहतर व किफायती इलाज उपलब्ध हो जाने के साथ अब ज्यादा से ज्यादा दंपत्ति इलाज करवा रहे हैं और यह संख्या मौजूदा समय में और ज्यादा बढ़ गई है.’’ दूसरी तरफ, इनफर्टिलिटी के इलाज का दंपत्तियों खासकर महिलाओं के मनोविज्ञान और सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है.

इंट्रुसिव इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट आपके मूड, सेहत, और महिलाओं की भावनात्मक स्थिरता पर बहुत बुरा असर डाल सकता है. जिसके परिणामस्वरूप गुस्सा, अवसाद, चिंता, वैवाहिक समस्याएं, यौन विकृतियां और सामाजिक रूप से एकाकीपन उत्पन्न हो सकते हैं. बांझ होने का कलंक और आत्मसम्मान में गिरावट पुरुष के मुकाबले महिला में ज्यादा स्पष्ट होते हैं, फिर चाहे समस्या पुरुष के साथ ही क्यों न हो. आईवीएफ चक्र के विफल हो जाने पर यह स्थिति और ज्यादा गंभीर हो जाती है और महिलाओं में दोष और अक्षमता की भावनाएं पनपने लगती हैं. इनफर्टिलिटी के इलाज के दौरान दंपत्तियों को समय-समय पर परामर्श दिए जाने की जरूरत होती है, ताकि वो इस तनाव और दबाव को शारीरिक एवं मानसिक रूप से झेल सकें.

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