नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च कमांडर की हैसियत से कमान संभालते हुए स्वतंत्र सरकार की अस्थाई सरकार बनाने का ऐलान किया.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में गठित आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ पर नेताजी के नाम पर जवानों के लिए एक अवॉर्ड का ऐलान किया है. हर साल 23 जनवरी को नेताजी के जन्मदिन पर इसकी घोषणा की जाएगी. इसके साथ ही पीएम मोदी ने लाल किले पर तिरंगा भी लहराया. इतिहास के पन्नों पर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में आजाद हिंद फौज का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा है. इस कड़ी में आजाद हिंद सरकार और आजाद हिंद फौज पर आइए डालते हैं एक नजर:
आजाद हिंद सरकार
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च कमांडर की हैसियत से कमान संभालते हुए स्वतंत्र सरकार की अस्थाई सरकार बनाने का ऐलान किया. इसको आजाद हिंद सरकार कहा गया. इस स्थाई सरकार को जापान, जर्मनी, इटली जैसे देशों ने मान्यता दी थी. जापान ने जीते हुए अंडमान एवं निकोबार द्वीप को उस अस्थाई सरकार को दे दिये. सुभाष चंद्र बोस ने इनका नया नामकरण करते हुए अंडमान का नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा. 30 दिसंबर, 1943 को इन द्वीपों स्वतंत्र भारत का ध्वज भी लहराया गया. मणिपुर और नगालैंड के कुछ हिस्सों पर भी इसका कब्जा हो गया.
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आजाद हिंद फौज (INA)
1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय राष्ट्रवादियों ने दक्षिण-पूर्व एशिया में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए एक सशस्त्र सेना के गठन का प्रयास किया. जापान में रह रहे प्रसिद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस ने भारतीय राष्ट्रवादियों के पक्ष में जापान से सहानुभूति पाने में अहम भूमिका निभाई. उसी कड़ी में उन्होंने 28 मार्च, 1942 में टोक्यो में एक सम्मेलन बुलाया जिसमें 'इंडियन इंडिपेंडेंस लीग' की स्थापना का निर्णय किया गया. उसमें ही उन्होंने भारत की आजादी के लिए एक सेना बनाने का प्रस्ताव भी पेश किया.
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उसी दौर में मलेशिया और म्यांमार में अंग्रेजों के नेतृत्व में ब्रिटिश भारत एवं उसके मित्र देशों और जापानियों के बीच जंग हुई थी. उसमें जापान ने भारतीय युद्धबंदियों को पकड़ा था. जापान के सहयोग से इनको ही इंडियन इंडिपेंडेंस लीग में शामिल होने और इसकी सैन्य शाखा आजाद हिंद फौज का सैनिक बनने के लिए प्रेरित किया गया. इस फौज की कमान मोहन सिंह को दी गई. शीघ्र ही मोहन सिंह के नेतृत्व में आईएनए लीडरशिप और जापानियों के बीच लक्ष्यों को लेकर मतभेद उत्पन्न हो गए. उस दौरान ही आईएनए के नेतृत्व ने सुभाष चंद्र बोस से संपर्क साधा और उनको इसका नेतृत्व संभालने के लिए आमंत्रित किया. 1943 में नेताजी के टोक्यो पहुंचते ही उनको 40 हजार भारतीय स्त्री-पुरुषों की प्रशिक्षित सेना की कमान दे दी गई.
6 जुलाई 1944 को सुभाष चंद्र बोस ने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद मांगा. हालांकि उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय और उसके बाद 18 अगस्त, 1945 को विमान हादसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन की खबरों के साथ ही आजाद हिंद फौज आंदोलन अपनी धार खो बैठा.