रेपिस्‍ट पैदा नहीं होते, समाज द्वारा बनाए जाते हैं: दोषी अक्षय के वकील की बेतुकी दलील
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रेपिस्‍ट पैदा नहीं होते, समाज द्वारा बनाए जाते हैं: दोषी अक्षय के वकील की बेतुकी दलील

Nirbhaya Gang Rape Case : आइए सुनवाई के दौरान प्‍वाइंट दर प्‍वाइंट समझते हैं कि अक्षय के वकील एपी सिंह ने बचाव में क्‍या दलीलें रखीं और कोर्ट ने क्‍या कहा?

रेपिस्‍ट पैदा नहीं होते, समाज द्वारा बनाए जाते हैं: दोषी अक्षय के वकील की बेतुकी दलील

नई दिल्‍ली: निर्भया केस (Nirbhaya Gang Rape Case) में दोषी अक्षय (Akshay) की पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने खारिज कर दिया. जस्टिस आर भानुमति की अगुआई वाली 3 सदस्यीय बेंच ने यह फैसला सुनाया. इस बेंच में जस्टिस आर भानुमति के अलावा दो अन्य सदस्य जस्टिस अशोक भूषण और ए एस बोपन्ना थे. अक्षय के वकील ए पी सिंह हैं. इससे पहले दोषी अक्षय के वकील एपी सिंह को आज बहस के लिए 30 मिनट का समय दिया गया था. आइए सुनवाई के दौरान प्‍वाइंट दर प्‍वाइंट समझते हैं कि अक्षय के वकील एपी सिंह ने बचाव में क्‍या दलीलें रखीं और कोर्ट ने क्‍या कहा?

वकील एपी सिंह- इस मामले में सीबीआई जांच की मांग उठाई गई थी लेकिन सीबीआई जांच नहीं हुई, लेकिन गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल केस में सीबीआई जांच हुई और बस कंडक्टर को सीबीआई ने क्लीनचिट दी. इस मामले में बेकसूर को फंसा दिया गया था. अगर सीबीआई की तफ्तीश नहीं होती तो सच सामने नहीं आता. इसलिए हमने इस केस में भी CBI जैसी एजेंसी से जांच की मांग की थी. इस मामले में लड़की के दोस्त ने पैसे लेकर मीडिया को इंटरव्यू दिया जिससे केस प्रभावित हुआ. वो इस मामले में एकमात्र गवाह था.
कोर्ट- इन बातों का यहां क्या महत्व है?

वकील- वो लड़का इस मामले में एकमात्र चश्मदीद गवाह था...उसकी गवाही मायने रखती है.
कोर्ट- नए तथ्यों पर बहस ना करें...

वकील- टेस्ट इन परेड पर सवाल उठाए...
जस्टिस भानुमति- इस प्‍वाइंट पर विचार किया किया गया था?

वकील- नहीं, ये नए तथ्य हैं. तिहाड़ के पूर्व जेल अधिकारी सुनील गुप्ता की किताब का जिक्र किया जिसमें इस बात की संभावना व्यक्त की गई है कि इस केस के अन्य आरोपी राम सिंह की जेल में हत्या की गई थी. ये नए तथ्य हैं, जिन पर कोर्ट को फिर से विचार करना चाहिए.
कोर्ट- हम लेखक की बातों पर नहीं जाना चाहते. ये एक खतरनाक ट्रेंड होगा अगर लोगों ने ट्रायल के बाद किताबें लिखना शुरू कर कर दिया और ऐसी बातों का जिक्र करना शुरू कर दिया तो ये सही नहीं होगा. इस बहस का कोई अंत न होगा अगर कोर्ट ऐसी बातों पर ध्यान देने लगेगी.

वकील- फिर मौत की सजा क्यों? सिर्फ़ इस मामले में दिल्ली सरकार को फांसी के लिए दिलचस्पी है, लेकिन पिछले मामलों में मौत की सजा अभी भी है. सब कुछ एक राजनीतिक एजेंडे की तरह हो रहा है. राम सिंह के बिसरा रिपोर्ट में अल्कोहल मिला था. जेल में राम सिंह को शराब कैसे मिली? पुलिस ने इस तथ्य की जांच क्यों नहीं की? राम सिंह की संदिग्ध मौत की जांच होनी चाहिए थी.

कलयुग में लोग केवल 60 साल तक जीते हैं जबकि दूसरे युग में और ज़्यादा जीते थे. दिल्ली में वायु प्रदूषण और पानी की गुणवत्‍ता बेहद खराब है, ऐसे में फांसी की सजा क्यों? सरकार भी मानती है कि दिल्ली की हवा बेहद खराब है, डॉक्टर बाहर जाने की सलाह देते हैं.  

इस केस में दो पक्ष हैं- नैतिक और कानूनी. नैतिक पक्ष में मानवाधिकारों की बात है जिसके तहत कहा जाता है कि आप अपराधी को तो मार सकते हैं लेकिन अपराध को नहीं. भारत में जीवन को बेहद पवित्र माना जाता है. फांसी एक तरह की हिंसा है. गरीब फांसी की सजा पाते हैं लेकिन कभी अमीर पर ये फंदा नहीं कसता...पीडि़ता (निर्भया) ने अपने बयान में किसी आरोपी का नाम नहीं लिया था. उसको एक भी दिन होश नहीं आया. ऐसे में उसने इतना लंबा बयान कैसे दिया? निर्भया का आखिरी बयान संशयपूर्ण है और उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. बस में मौजूद छह शख्‍स महज 21 मिनट में रेप नहीं कर सकते.

महात्मा गांधी ने भी कहा था कि मौत की सजा उचित समाधान नहीं है. अपराधियों को पुनर्वास का मौका मिलना चाहिए. गरीब लोग अपने लिए कानूनी उपाय सही से नहीं कर पाते, इसलिए उन्हें मौत की सजा दी जाती है. मौत की सजा मानवाधिकारों का उल्‍लंघन है. ये भारत विरोधी संस्कृति का लक्षण है. हम दिल्ली में रहते हैं जो प्रदूषण की वजह से वैसे ही गैस चैंबर बन चुकी है. जिससे लोग मर रहे हैं तो मौत की सजा क्यों?

जस्टिस भानुमति- आप ठोस व कानूनी तथ्य रखें और बताए कि हमारे फैसले में क्या कमी थी और क्यों हमें पुनर्विचार करना चाहिए?
वकील- इस केस में फांसी के बाद एक मां को तो शांति मिलेगी लेकिन चार अन्‍य माएं अपने बेटों को खो देंगी. ये बदला है. वास्‍तविक गुनहगार तो समाज और शिक्षा की कमी है. बलात्‍कारी पैदा नहीं होते, समाज द्वारा बनाए जाते हैं.

सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता- ट्रायल कोर्ट ने सभी दलीलों और सबूतों को परखने के बाद फांसी की सजा सुनाई जोकि सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना. यह ऐसा गंभीर अपराध है जिसे भगवान भी माफ़ नहीं कर सकता. इसमें सिर्फ़ फांसी की सजा ही हो सकती है.

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