लालसोट में 272 वर्षों से चली आ रही हेला ख्याल संगीत दंगल की अनूठी परंपरा, जानें पूरी कहानी
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लालसोट में 272 वर्षों से चली आ रही हेला ख्याल संगीत दंगल की अनूठी परंपरा, जानें पूरी कहानी

यह संगीत दंगल सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर तथा टोंक व करौली जिले की सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं अपितु हाड़ोती व ढूंढाडी संस्कृति के संगम के रूप में विख्यात है.

यह दंगल 7 अप्रैल की सुबह समाप्त होगा.

Lalsot: दौसा के लालसोट में देश के संगीत हेला ख्याल दंगलों में अपनी अनूठी गायन शैली तथा लोक गायकी की विविध विधाओं के अनूठे प्रदर्शन के कारण लालसोट का हेला ख्याल संगीत दंगल लोक गायकी का अनूठा संगम स्थल बना हुआ है. लोक गायकी में विशिष्टता के कारण 272 वर्षो से लगातार चला आ रहा यह दंगल राष्ट्रीय स्तर पर लालसोट की पहचान बन चुका है. 4 अप्रैल गणगौर के पर्व की की मध्य रात्री से शुरू होने वाले इस दंगल में स्थानीय गायक मंडलियां भवानी पूजन कर दंगल की औपचारिक करेंगी. 

36 घंटे तक लगातार चलेगा दंगल
वहीं, बूढ़ी गणगौर 5 अप्रैल को सवारी निकलने के बाद रात दस बजे से दंगल 36 घंटे तक लगातार चलेगा. यह दंगल 7 अप्रैल की सुबह समाप्त होगा. दंगल समिति के अध्यक्ष रमेश ग्रामीण की अगुवाई में दंगल को ऊंचाइयों तक पंहुंचाने वाले आशु कवियों का सम्मान के लिए स्वर्गीय हजारी लाल ग्रामीण अवार्ड शुरू किया जा रहा है. यह हेला ख्याल दंगल को ऊंचाईयो तक पहुंचाने में सहायक रहेगा. 

गौरतलब है कि, 272 वर्षो से गणगौर के पर्व पर आयोजित इस संगीत दंगल में हेला ख्याल गायकी ने अनेक करवटे बदलते हुए विविध प्रकार लोक विधाओं को जन्म दिया. साथ ही, सैकड़ों वर्षो से इस पड़ाव में आधुनिक सभ्यता व संस्कृति के बदलते आयामों के बावजूद अपने अस्तिव को बचाए रखकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाई. 

सांस्कृतिक धरोहर
यह संगीत दंगल सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर तथा टोंक व करौली जिले की सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं अपितु हाड़ोती व ढूंढाडी संस्कृति के संगम के रूप में विख्यात है. पहली गणगौर की रात को भवानी पूजन के साथ प्रारम्भ होने वाले तथा दूसरी गणगौर की रात से लगातार 36 घंटे तक चलने वाले इस हेला ख्याल दंगल को सुनने के लिए मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, गुजरात, आन्धप्रदेश कर्नाटक सहित देश के विभिन्न प्रांतों में बसे प्रवासी राजस्थानी समाज के लोग दंगल शुरू होने से पूर्व ही आने लग जाते है. 

तेल की मशालों की रौशनी में होता था दंगल
रजवाड़ा काल में यह हेला ख्याल संगीत दंगल तेल की मशालों के बीच होता था. इसके लिए तत्कालीन रजवाड़ों द्वारा तेल उपलब्ध कराया जाता था. मशालची तैनात रहते थे. मीठे तेल की जलती मशालों के बीच इस दंगल में लोक गायक अपनी काव्य रचना की बेहतरीन प्रस्तुति देते थे. झरंडे के चौक पर दंगल में गायक दल अपनी बेबाक प्रस्तुति दे कर लोगों को मंत्र मुग्ध करते थे. ज्यों ज्यों समय बीता रजवाड़े समाप्त होते गए. उसके बाद दंगल आयोजन की जिम्मेदारी स्थानीय जनता के हाथो में आ गई. पहले दंगल का आयोजन झरण्डे चौक पर हुआ करता था. कालान्तर में फैलती ख्याती व बढ़ते श्रोताओं की संख्या के कारण 1961 से यह दंगल लालसोट के जवाहर गंज सर्किल पर आयोजित होने लगा. 

गायक मंड़लों की बढ़ी तादाद
पहले इस दंगल में तीन बास (खोहरापाडा, जोशीपाडा, तंबाकूपाडा) व चार बास (उपरलापाडा, लांबापाडा, गुर्जर घाटा, पुरोहितपाडा) की गायक मंडलियां भाग लेती थी. मगर, फैलती ख्याती व बढ़ते स्वरूप में कारण आज इनकी संख्या भी 20 के करीब हो गई है. 

तुर्रा तलंगी से रचनाओं ने लिया राजनीतिक पुट
उस वक्त दंगल में पौराणिक कथाओं ज्ञान विज्ञान,माया तथा भ्रम व गुढ़ रहस्य की चर्चाए संगीत के माध्यम से हुआ करती थी. वहीं, तुर्रा व कंलगी के गीत भी काफी मशहुर हुआ करते थे. लेकिन समय के साथ-साथ गायन शैली में भी परिवर्तन होता गया. आज (सोमवार) दंगल में गायक दलों द्वारा वर्तमान में घटित राजनितिक व सामाजिक बदलाव पर टिप्पणी की जाती है. जिससे श्रोता काफी तन मन्यता से सुनता है. बदलते स्वरूप के कारण अब दंगल में राजनैतिक क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तन के मुददों पर ही गायक मंडलियों का रूझान बना हुआ है. धार्मिक मुददे लगभग गौण होते जा रहे हैं. 

बता दें कि, इस दंगल में तकरीबन 30 से 40 हजार श्रौता भाग लेते है. गायक मंडलियों द्वारा पेश की जाने वाली देश भक्ति, देश के राजनैतिक क्षेत्र में आ रही गिरावट, नैतिक मूल्यों के हो रहे पतन सहित भ्रष्टाचार ,आंतकवाद व अन्य सामाजिक व राजनैतिक मुददों पर गायक दंगल संगीतमय रचना प्रस्तुत करते हैं. गायन संख्या और वांद्य यंत्र: 20 गायक मंडलियां भाग लेती हैं. प्रत्येक गायक दल में 40 से 50 गायक कलाकार भाग लेते है. वहीं, गायकी में वाद्ययंत्र बाजा ढप,घेरे, मंजीरा, ढोलक, खरताल, पूंगी, ढ़ोल, चंड चिमटा सहित अनेक पुरातन वांद्य यंत्रों का इस्तेमाल होता है. 

दंगल ने दिया समरसता व देश रक्षा का संदेश
हेला ख्याल संगीत दंगल न केवल लोकानुरंजन करता है बल्की ग्रामीण कलाकारों के मंडलों द्वारा समय समय पर अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक समरसता व देश रक्षा के बारें में भी संदेश दिया है. लोक कवि स्व. हजारी लाल ग्रामीण द्वारा दंगल में सुनाई गई रचना गणगौर को पूजै वर हीत कन्या कुंआरी, चुड़ला हेतु सुवागण नारी देश हित पूजै दास हजारी, आई रे गणगौर शामिल है. वहीं सन 1962 में चीन आक्रमण के समय देश के जवानों के उत्साह बढ़ाने में भी गायक दल पीछे नहीं रहे. 

प्रसिद्ध हेला ख्याल गायक
दंगल को पोषित करने में क्षेत्रीय जनता,स्थानीय गीतकारो व स्थानीय गीतकार स्व.गोपीलाल जोशी,प्यारेलाल जोशी,श्रीनारायण, गैंदालाल कारीगर,मुथरेश जोशी,कल्याण प्रसाद मिश्र,रोशन तेली, मातादीन जोशी, कालीचरण,पं.देवकीनंदन,हुकमचंद,राधारमण,रामप्रताप, देवीसिंह चौधरी,रामबिलास शर्मा पूर्व प्रधानाध्यापक , जैसे कवियों का योगदान रहा है। मगर लोक कवि हजारी लाल ग्रामीण द्वारा दंगल को पौषित करने में जो योगगदान दिया है वो लोगो की जबान पर उनके निधन के बाद भी चढ़ा हुआ है।

रिपोर्ट: लक्ष्मी अवतार शर्मा

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