शिवसेना ने सामना में लिखा, 'टांग में टांग अड़ना कर्नाटकी नाटक'
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शिवसेना ने सामना में लिखा, 'टांग में टांग अड़ना कर्नाटकी नाटक'

शिवसेना का कहना है, 'इस प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण ‘शेड्यूल-10’ भंग होने का दावा कांग्रेस ने किया है. कांग्रेस ने इस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की है और टांग में टांग अड़ाई है.'

शिवसेना ने सामना में लिखा, 'टांग में टांग अड़ना कर्नाटकी नाटक'

मुंबईः शिवसेना के मुखपत्र सामना में कर्नाटक के मुख्यमंत्री की जमकर क्लास लगाई है. पार्टी ने लिखा है, 'कर्नाटक में फिलहाल जो राजनीतिक तमाशा शुरू है वो आज भी समाप्त होगा, ये कहना कठिन है. बहुमत का निर्णय संसद या विधानसभा के सभागृह में होना चाहिए. लेकिन बहुमत गंवाकर बैठे कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी विधानसभा में चर्चा कर समय गंवा रहे हैं. उन्हें सीधे मतदान करके लोकतंत्र का पक्ष रखना चाहिए था लेकिन उनकी सांस मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर ऐसी अटकी है कि वो छूटते नहीं छूट रही. राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष और कुमारस्वामी ये तीन मुख्य पात्र इस खेल में अपने-अपने पत्ते फेंक रहे हैं.'

सामना में लिखा है, 'सुप्रीम कोर्ट ने भी इस केस में हस्तक्षेप किया है और 15 बागी विधायकों की पांचों उंगलियां घी में हैं. इस प्रकार वे मजा कर रहे हैं. 15 बागी विधायकों का विधानसभा में उपस्थित रहना अनिवार्य नहीं है और व्हिप का उल्लंघन कर दलबदल कानून के अंतर्गत उन पर कार्रवाई नहीं की जा सकती, सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई को ऐसा आदेश दिया था.

कुमारस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करके इस निर्णय की बृहद व्याख्या जानने की मांग की है. उस पर सोमवार को सुनवाई होगी. इसका मतलब ये हुआ कि सोमवार तक कुमारस्वामी को जीवनदान मिल गया. लेकिन सोमवार के बाद क्या? इसका उत्तर कुमारस्वामी के पास नहीं है. सोमवार नहीं तो मंगलवार या फिर कभी. कुमारस्वामी को विश्वास प्रस्ताव के समक्ष जाना ही पड़ेगा.'

लेख में आगे लिखा है, 'लोकतंत्र और संसदीय परंपरा की विरासत का पालन करते हुए कुमारस्वामी को सत्ता का त्याग कर देना चाहिए था. बहुमत गंवा चुका एक मुख्यमंत्री कुर्सी से चिटककर रहने के लिए दयनीय अवस्था में छटपटा रहा है, ऐसा दृश्य देश देख रहा है. मूलत: कर्नाटक का राजनीतिक पेंच उलझकर इतना क्लिष्ट हो चुका है कि न्याय प्रणाली कम समय में इसे सुलझा पाएगी, कानूनविद इसे लेकर आशंकित हैं. विधायकों को इस्तीफा देने का संवैधानिक अधिकार है.

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दूसरी ओर जनप्रतिनिधियों ने किसी दबाव में आकर इस्तीफा दिया हो तो विधानसभा अध्यक्ष उसे अस्वीकार कर सकते हैं, ऐसा अधिकार उन्हें संविधान ने दिया है. अर्थात विधायकों ने ये इस्तीफा दबाव के चलते दिया है या क्यों दिया है ये भी जांच का विषय है. हालांकि ये प्रक्रिया भी ज्यादा समय लेनेवाली है या कर्नाटक के वर्तमान राजनीतिक संकट का यह विलंब सत्ताधारी जेडीएस-कांग्रेस आघाड़ी के रास्ते में आने के कारण प्रक्रिया को लंबा करने का प्रयास हो सकता है.' 

शिवसेना का कहना है, 'इस प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण ‘शेड्यूल-10’ भंग होने का दावा कांग्रेस ने किया है. कांग्रेस ने इस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की है और टांग में टांग अड़ाई है. कर्नाटक में सभी लोग लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा रहे हैं. दोनों तरफ का यह तमाशा केंद्र सरकार शांतिपूर्वक क्यों देख रही है? एक तो वहां राष्ट्रपति शासन लागू करो या कर्नाटक विधानसभा को बर्खास्त करो. कर्नाटक की जनता को ही निर्णय लेने दिया जाए. कुछ भी करो लेकिन कर्नाटक का यह नाटक एक बार खत्म करो.'

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