मंगल की सतह पर मिला रहस्यमयी छेद, कोई नहीं जानता इसके भीतर क्या छिपा है
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मंगल की सतह पर मिला रहस्यमयी छेद, कोई नहीं जानता इसके भीतर क्या छिपा है

Hole On Mars Surface: वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह की सतह पर एक रहस्यमयी छेद का पता लगाया है. यह छेद कुछ ही मीटर चौड़ा है. वैज्ञानिकों को नहीं पता कि इसके भीतर क्या है.

मंगल की सतह पर मिला रहस्यमयी छेद, कोई नहीं जानता इसके भीतर क्या छिपा है

Hole On Mars Surface: मंगल ग्रह की सतह पर एक छेद मिला है. इस छेद की तस्वीरें NASA के मंगल टोही यान (MRO) ने खींची है. इस छेद की चौड़ाई बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन इसके भीतर क्या है, नहीं पता. वैज्ञानिक फिलहाल MRO पर लगे हाई-रेजोल्यूशन इमेजिंग साइंस एक्सपेरिमेंट (HiRISE) कैमरा से ली गईं तस्वीरें जांचने में लगे हैं. क्या यह छेद किसी बड़ी गुफा का मुहाना हो सकता है?

मंगल के किस इलाके में मिला यह छेद

महज कुछ मीटर चौड़ा यह गड्ढा उस इलाके में हैं जहां पर अर्सिया मॉन्स नाम का ज्वालामुखी मौजूद है. अर्सिया मॉन्स, मंगल के उन तीन ज्वालामुखियों के समूह का हिस्सा हैं जो शांत पड़े हुए हैं. मंगल का थार्सिस उभार का इलाका हजारों किलोमीटर में फैला है जिसके नीचे ज्वालामुखी धधकते हैं. यह मंगल की बाकी सतह के मुकाबले करीब 10 किलोमीटर ऊंचा उठा हुआ है. पहले इस क्षेत्र के ज्वालामुखी सक्रिय थे. यह छेद शायद प्राचीन ज्वालामुखीय गतिविधि का नतीजा हो.

वैज्ञानिकों के अनुसार, संभव है कि अर्सिया मॉन्स में मौजूद अन्य छेद दब गए हों. अर्सिया मॉन्स क्षेत्र में कई गड्ढे ढह चुके रोशनदान या भूमिगत लावा ट्यूबों के खुलने वाले रास्ते हो सकते हैं. एक गड्ढे की तस्वीर में प्रकाशित साइड वॉल दिखाई देती है. इससे यह संकेत मिलता है कि शायद यह एक बेलनाकार गड्ढा है.

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ऊपर जो तस्वीर आपने देखी, शायद वह केवल एक छेद या शाफ्ट हो, किसी गुफा या लावा ट्यूब का दरवाजा नहीं. ऐसे छेद हवाई के ज्वालामुखियों में पाए जाते हैं जिन्हें पिट क्रेटर्स कहा जाता है. वे लंबी गुफाओं या लावा ट्यूब से जुड़े नहीं होते. वे काफी गहराई में जमीन धंसने की वजह से बनते हैं.

धरती पर मौजूद हैं ऐसे गड्ढे

हवाई के पिट क्रेटर्स 6 से 186 मीटर तक गहरे हैं और 8 से लेकर 1140 मीटर तक चौड़े. अर्सिया मॉन्स में जो गड्ढा है, उसकी गहराई करीब 178 मीटर है. हमें अपने चंद्रमा पर मौजूद लावा गड्ढों और ट्यूब्स के बारे में पता है. उनमें से कुछ का तापमान 17 डिग्री सेल्सियस है. वैज्ञानिक सोचते हैं कि एस्ट्रोनॉट्स इन ट्यूब्स के भीतर शरण ले सकते हैं. इससे वे तापमान में बदलाव, रेडिएशन और छोटे उल्कापिंडों से बच जाएंगे.

मंगल की कहानी अलग है. वहां पर लावा ट्यूब्स न हों, इसकी संभावना बेहद कम है. मंगल का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से काफी कम है, ऐसे में वहां कहीं बड़े ट्यूब्स होने की संभावना है. अभी तक इनकी खोज नहीं हुई है, लेकिन वैज्ञानिकों को उनके  अस्तित्व के कई सबूत मिले हैं. अगर कभी उनकी खोज होती है तो हमें रोबोटिक मिशन के जरिए उन्हें देखना पड़ेगा. 

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