यमन: ‘विदेशी दखल’ से भरे इतिहास के बाद अब गृहयुद्ध ने उजाड़ दिया है इस देश को
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यमन: ‘विदेशी दखल’ से भरे इतिहास के बाद अब गृहयुद्ध ने उजाड़ दिया है इस देश को

इतिहास में यमन को विदेशियों ने हमेशा महत्व तो दिया, लेकिन इस वजह से वह एक लड़ाई का मैदान बन कर रह गया जो आज गृहयुद्ध में डूबा है. 

यमन का गृहयुद्ध शिया सुन्नी लड़ाई के अलावा अलकायदा और आईएस भी शामिल हैं.  (फोटो: Reuters)

नई दिल्ली: पश्चिम एशिया का छोटा से देश यमन सालों से गृहयुद्ध में उलझे रहने के बाद पिछले कुछ समय से अकाल, महामारी जैसी त्रासदियां भी झेल रहा है. सदियों से विदेशी दखलंदाजी के कारण नहीं पनप सका यह देश आज विदेशी हस्तक्षेप और सहायता के बीच झूल रहा है. आज यमन में बहुकोणीय संघर्ष हो रहा है जिसमें हूती विद्रोहियों का देश की सरकार के खिलाफ चल रहा लंबे समय से संघर्ष प्रमुख है. 

केवल 527,970 वर्ग किलोमीटर (203,850 वर्ग मील) के क्षेत्र में फैले इस देश केवल दो करोड़ 60 लाख लोग कहते हैं. यमन का प्रभाव एक समय में अफ्रीका, पश्चिम एशिया से लेकर एशिया के कई देशों तक रहा है, लेकिन आज का यमन गणराज्य 1990 में ही अस्तित्व में आया जब उत्तर और दक्षिण यमन लंबे तनाव भरे दौर के बाद एक हो गए. फिर पहले गृहयुद्ध उसके बाद अकाल महामारी जैसी समस्याओं ने यमन को तबाह ही करके रख दिया है. 

पिछले 8-9 सालों में गृहयुद्ध से हुआ विनाश
2011 में यहां विद्रोह के स्वर उठने के बाद राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह को अपना पद छोड़ना पड़ा. इसके बद हुथोई ने उत्तर और पश्चिमी हिस्से पर कब्जा कर लिया, जबकि सऊदी अरब की फौज ने यहां दक्षिण में स्थित अंतरराष्ट्रीय समर्थित सरकार की सहायता के लिए दखल दिया है. 2015 तक यहां के हालात पूरी तरह से गृहयुद्ध में बदल चुके थे. एक तरफ सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब देशों ने हूती विद्रोहियों के खिलाफ ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्ट्रॉम’ नामक सैन्य अभियन छेड़ दिया. दिसंबर 2017 में सालेह की हूती विद्रोहियों ने ही हत्या कर दी. एक समय में सालेह हूती विद्रोहियों के ही साथ थे. 

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अब भी बंटा हुआ है यमन
2015 से राजधानी सना पर हूती विद्रोहियों का कब्जा है और देश की सत्ता पर वे ही काबिज हैं. उनका उत्तर पश्चिम इलाकों में कब्जा है. वहीं अदन सहित दक्षिण और पूर्वी इलाकों में सऊदी अरब समर्थित यमन की पूर्व सरकार के सैनिकों का कब्जा है. दक्षिणी इलाकों मे अल कायदा, इस्लामिक स्टेट (आईएस) के जेहादियों की मौजूदगी से यहां के हालात यहां काफी जटिल हैं. जिससे यहां गंभीर मानवीय हालात हो गए हैं. लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं.

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क्यों महत्वपूर्ण है यमन का आज के अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में
अरब प्रायद्वीप के दक्षिणी कोने पर स्थित यमन के पश्चिम में लाल सागर, दक्षिण में अदन की खाड़ी, उत्तर में सऊदी अरब, पश्चिम में ओमान से लगा है. यमन के साथ दिबोती, इत्रिया और सोमालिया समुद्री सीमा साझा करते हैं. स्वेज नहर के खुलने के बाद से यूरोप और एशिया से समुद्री संपर्क के चलते लाल सागर की अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ गई. इससे यमन की अहमियत बढ़ना स्वाभाविक ही था. सबसे बड़ा शहर सना देश की राजधानी है जो कि ऐतिहासिक महत्व रखता है. देश का प्रमुख बंदरगाह और आर्थिक केंद्र अदन है. 

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जीवन को आसान नहीं बनाते जलवायु और भौगोलिक हालात
पश्चिम से लेकर दक्षिण में पूर्व की ओर, समुद्री तटीय सीमा पर मैदान से पहाड़ी इलाके हैं जो कि उत्तर में अरब मरुस्थल की ओर ढलते हैं. उत्तर पूर्व में रेगिस्तान का इलाका है. इस वजह से ज्यादातर इलाकों में मरुस्थलीय मौसम मिलता है. पश्चिमी तट पर गर्म और उमस भरा मौसम मिलाता है, पश्चिमी पहाड़ों को मानसूनी जलवायु प्रभावित करती है. देश के बाकी रेगिस्तानी इलाकों में अति ऊष्म और शुष्क जलवायु मिलती है.

सक्षिप्त इतिहास
सदियों से यमन विभिन्न सभ्यताओं के संपर्क में रहा. 5000 ईसापूर्व तक यहां के पहाड़ों में लोगों के रहने के प्रमाण मिले हैं. 1100 ईसापूर्व से काफी समय तक सबैयन वंश का शासन रहा जिन्हें महान मारिब का बांध बनाने के लिए जाना जाता है. सबैयन शासकों का प्रभाव तीसरी ईसापूर्व सदी तक रहा जिसके बाद कताबान, हधरामौत और औसन ने अपने अपने प्रभाव क्षेत्र बना लिए. तीसरी ईस्वी मे यहां हिमायराइटों का शासन हो गया. इस दौरान यहां यहूदियों का प्रभाव बढ़ा. चौथी सदी में यहां ईसाई धर्म आया.

गहरा असर पड़ा इस्लाम का लोगों पर
सातवीं सदी में यहां इस्लाम का व्यापक प्रभाव तो फैला, लेकिन यहां की शासन व्यवस्था व्यापक होकर स्थिर नहीं रह सकी. 9वीं से 16वीं सदी में यहां अनेक राजवंशों का शासन रहा जिसमें रसूलिद वंश का शासन सबसे शक्तिशाली रहा. 16वीं सदी में यहां से भारत के मसालों और कपड़ों के व्यापारिक मार्गों पर कब्जा करने और मक्का मदीना की सुरक्षा के लिए ओटोमन साम्राज्य ने यमन पर कब्जा किया. 

अंग्रेजों ने बनाया दक्षिणी यमन में दबदबा
19वीं सदी मेंब्रिटिशों का यहां दखल बढ़ने लगा और अंततः ब्रिटेन ने अदन और उसके आसपास के इलाकों पर कब्जा कर लिया. 1850 में अदन के स्वतंत्र क्षेत्र घोषित होने के बाद भी यहां ब्रिटेन का ही प्रभाव रहा जबकि अरबों की उपस्थिति कम रही वहीं यमन के बाकी इलाके ओटोमन साम्राज्य में ही रहे जिनका प्रभाव और नियंत्रण 1869 में स्वेज नहर खुलने के बाद से ज्यादा हो गया. 19वीं सदी के शुरू में ही ओटोमन साम्राज्य की पकड़ यमन में ढीली पड़ने लगी और उत्तरी भागों में इमाम याया हामिद्दीन का शासन हुआ जिन्होंने 1920 के दशक में अंग्रेजों से यमन का काफी हिस्सा अपने कब्जे में भी कर लिया. हामिद्दीन परिवार का उत्तर यमन पर 1962 तक कब्जा हुआ. 

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1962 में गृहयुद्ध की शुरुआत
यमन में 1962 में हुई क्रांति इतिहास में यमन की पहचान बन गई. कुछ साल पहले से ही कई इलाकों में अरब राष्ट्रवाद का उदय हो रहा था. 1962 में इमाम याया हामिद्दीन की मौत के बाद उत्तरी यमन में सेना ने हामिद्दीन परिवार के खिलाफ विद्रोह कर दिया जिससे उत्तरी यमन गृहयुद्ध में उलझ गया. यहीं से अंतरराष्ट्रीय दखल पूरे यमन में फैल गया. हामिद्दीन सरकार को सऊदी अरब, जोर्डन, और ब्रिटेन का समर्थन मिला, जबकि सेना के विद्रोहियों को मिस्र का साथ मिला. छह साल बाद सैन्य विद्रोहियों की जीत हुई और अंग्रेजों ने दक्षिण यमन छोड़ दिया और यमन दो राज्यों में बंट गया. उत्तरी भाग ‘यमन अरब गणराज्य’ और दक्षिणी भाग ‘जन लोकतांत्रिक यमन गणराज्य’ बना. 

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यमन के संघर्षों में अमेरिका और अलकायदा की जंग
दोनों यमन राज्य विवादों और आपसी झगड़ों के बाद 1990 में एक हो गए जहां अली अब्दुल्ला सालेह देश के राष्ट्रपति बने. उनकी जनरल पीपुल्स कांग्रेस को बहुतमत मिला और दक्षिण यमन के राष्ट्रपति अली सलीम अल बेद एकीकृत यमन के उपराष्ट्रपति बने. जल्द ही पूरा देश एक बार फिर गृहयुद्ध में उलझ गया. इस बार संघर्ष उत्तर और दक्षिण यमन के बीच था. 1999 में सालेह पहली बार चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति बने, लेकिन 21वीं सदी के शुरुआत में अमेरिका और अलकायदा के समीकरण ने यमन के हालात फिर बदल दिए. 2004 तक उत्तर यमन में शिया हूती विद्रोहियों का उदय हुआ जो सरकार के खिलाफ थे. 2006 में सालेह फिर से राष्ट्रपति बने लेकिन अमेरिका ने यमन में अलकायदा के ठिकानों पर हमले जारी रखे. 

आर्थिक स्थिति बहुत खराब है
यह बात काफी हद तक सही है. इसकी वजह केवल गृहयुद्ध ही नहीं है. 2018 में पड़ा अकाल और उसके बाद महामारियों का फैलने से हालात गंभीर हो गए. संयुक्त राष्ट्र ने लगातार यमन की चिंताजनक हालातों के मद्देनजर गृहयुद्ध के सभी पक्षों से युद्ध विराम की अपील की है. पिछले 30 सालों से यमन के आर्थिक हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि वह अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहायता पर निर्भर है. यहां की यमनी रियाल का अवमूलन 50 प्रतिशत तक हो चुका है पड़ोसी देशों से मदद की जगह युद्ध को बढ़ावा देने वाली सहायता ज्यादा मिली है. यह देश पश्चिम एशिया के शिया सुन्नी विवाद की रणभूमि बन चुका है. तेल उत्पादक देश होने के बाद भी यह ओपेक (OPEC) का सदस्य नहीं है. 

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संसाधन कम नहीं हैं
पेट्रोलियन, नमक, संगमरमर, खनिज पदार्थ जैसे प्राकृतिक संसाधनों के अलावा कृषि में अनाज, फल, दाल, कॉफी और डेयरी उत्पाद प्रमुखता से मिलते हैं. तमाम विपरीत हालातों के रहते यहां पेट्रोलियम रीफाइनिंग, कपास संबंधी कपड़ा उद्योग, चमड़ा उद्योग, हस्तकला के अलावा कम मात्रा में सीमेंट, अल्यूमीनियम, जैसे कई उद्योग भी हैं. अरबी यहां की प्रमुख भाषा है. यहां सुन्नी और शिया समुदाय के मुस्लिम देश के सबसे बड़ी जनसंख्या बनाते हैं 

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