ZEE जानकारी: क्या फर्क है भारत और श्रीलंका की सोच का?
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ZEE जानकारी: क्या फर्क है भारत और श्रीलंका की सोच का?

जब देश के नाम पर आप दोनों देशों के नागरिकों की तुलना करेंगे, तो आपको एक छोटा सा अंतर दिखाई देगा. और वो फर्क है सोच का.

ZEE जानकारी: क्या फर्क है भारत और श्रीलंका की सोच का?

हमारा अगला विश्लेषण भारत और श्रीलंका की सोच और उस सोच के बीच मौजूद फर्क पर आधारित है. भारत के संविधान में प्रस्तावना की शुरुआत होती है....We, The People Of India से...ठीक इसी तरह श्रीलंका के संविधान में प्रस्तावना की शुरुआत होती है...The People Of Sri Lanka से
यानी दोनों ही देशों के संविधान में नागरिकों की पहचान, उनका देश है. 

लेकिन जब देश के नाम पर आप दोनों देशों के नागरिकों की तुलना करेंगे, तो आपको एक छोटा सा अंतर दिखाई देगा. और वो फर्क है सोच का. भारत में अक्सर एक बात का ज़िक्र किया जाता है. सोच बदलो, तभी देश बदलेगा. लेकिन ये हमारे देश का दुर्भाग्य है, कि आज़ादी के 71 वर्षों बाद भी हमारा समाज, धर्म और जाति के नाम पर टुकड़ों में बंटा हुआ है. देश में कोई बड़ा आतंकवादी हमला हो जाए, तो हमारे देश में उसपर भी राजनीति शुरु हो जाती है. 

धर्म के नाम पर एजेंडा चलाने वाले आतंकवाद और आतंकवादियों का महिमामंडन करने से भी नहीं चूकते. और तो और...निर्दोष लोगों का खून बहाने वालों के मानव अधिकार के लिए देर रात सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटा दिया जाता है. लेकिन पड़ोसी देश श्रीलंका इस मामले में भारत से बहुत अलग है. The Muslim Council Of Srilanka ने 21 अप्रैल को हुए आत्मघाती हमलों और धमाके के बाद अब एक ऐसा फैसला लिया है, जिसमें भारत के लिए सीखने को बहुत कुछ है. इस फैसले के बारे में आपको विस्तार से बताएं, उससे पहले आपको ये समझना चाहिए कि पिछले 24 घंटों से श्रीलंका के हालात क्या हैं?

पिछले महीने की 21 तारीख को श्रीलंका में अलग-अलग जगहों पर आत्मघाती हमले और धमाके हुए थे. इन हमलों में ढाई सौ से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी. और रिपोर्ट्स के मुताबिक, कल वहां पर कई शहरों में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए. दंगाइयों ने श्रीलंका के कई हिस्सों में मस्जिदों और मु‍सलमानों की दुकानों पर हमले किए. और उनमें आग लगा दी. और इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत भी हो गई. इसके बाद श्रीलंका की सरकार ने पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया. Facebook, WhatsApp सहित कई Social Media Sites पर भी बैन लगा दिया गया. कर्फ्यू का उल्लंघन करने वालों से सख्ती से निपटने के आदेश दे दिए गए. आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ Shoot On Sight के Order दे दिए गए. इस बीच श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने लोगों से शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील की है. 

श्रीलंका की सरकार, दंगा फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रही है. दूसरी तरफ वहां की मुस्लिम आबादी भी अपने देश और सरकार की हर संभव मदद कर रही है. The Muslim Council Of Srilanka ने वहां के मुसलमानों के लिए कुछ नई Guidelines जारी की हैं. ये वही संगठन है, जिसने 21 अप्रैल को हुए हमलों की कड़े शब्दों में निन्दा की थी. और अब इस संगठन ने Sri Lankan Identity यानी श्रीलंका के नागरिकों की राष्ट्रीय पहचान को ध्यान में रखते हुए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं. सबसे पहले ये देखिए, कि इन Guidelines की शुरुआत किन शब्दों से की गई है.

यानी इन दिशा-निर्देशों के मूल में सिर्फ एक विचार है. और वो विचार ये है, कि आप सबसे पहले श्रीलंका के एक नागरिक हैं. और आपकी धार्मिक पहचान इसके बाद आती है.

नई Guidelines में इस्लाम के विद्वानों से अपील की गई है, कि वो श्रीलंका की मुस्लिम आबादी को रंगीन कपड़े पहनने के लिए प्रेरित करें. उन्हें समझाएं, कि वो काली पोशाक ना पहनें और अपना चेहरा ना ढकें. 

सार्वजनिक स्थानों पर Arabic भाषा में मौजूद Sign Boards को हटाया जाए. 

ये सुनिश्चित किया जाए कि किसी गाड़ी पर Arabic भाषा के शब्दों या तलवार की आकृति ना हो. 

ऐसे इलाके जहां दूसरे धर्म के लोग रहते हैं, वहां मौजूद मस्ज़िदों में Azan पर प्रतिबंध लगाया जाए.

मुस्लिम बहुल इलाकों में Azan के वक्त आवाज़ ज़्यादा ना हो, इसका ध्यान रखा जाए. श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, एक किलोमीटर के दायरे में सिर्फ एक मस्ज़िद को Loud Speakers चलाने की इजाज़त है. इसका पालन किया जाए.

किसी नई मस्ज़िद का निर्माण तभी किया जाए, जब उसे The Department Of Muslim Religious Affairs की अनुशंसा प्राप्त हो. वो भी हर प्रकार का विश्लेषण करने के बाद. मस्ज़िद के निर्माण या Renovation का काम भी स्थानीय प्रशासन की अनुमति के बाद ही होना चाहिए .

श्रीलंका का मुस्लिम समुदाय हमेशा इस बात का ध्यान रखे, कि उसकी पहचान सबसे पहले एक श्रीलंकाई नागरिक के रुप में है. उसकी पहचान किसी धर्म या जाति से जुड़ी नहीं होनी चाहिए.

ऐसे प्रयास किए जाएं, ताकि श्रीलंका का हर समुदाय एक श्रीलंकन नागरिक की तरह पूरी शांति के साथ, एक छत के नीचे रह सकें.

असहनशीलता, नफरत और रंगभेद के खिलाफ कड़े क़ानून बनाए जाएं.

पूर्वाग्रह में आकर किसी प्रकार की ग़लत रिपोर्टिंग ना हो, इसके लिए Media Reforms के बारे में सोचा जाए.

संसद में नफ़रत विरोधी कानून लाया जाए.

मस्ज़िदों को नियंत्रित करने के लिए नए प्रावधान लाए जाएं. धार्मिक उपदेश देने वालों के लिए कड़े दिशा-निर्देश लाए जाएं. और उनका पालन ना करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए.

ये दिशा-निर्देश यहीं ख़त्म नहीं होते. The Muslim Council of Sri Lanka ने वहां की शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए भी कुछ सिफारिशें की हैं. जिन्हें मैं आपको पढ़कर सुनाना चाहता हूं.

श्रीलंका की कुल आबादी 2 करोड़ से ज़्यादा है. वहां की आबादी में 70 प्रतिशत से ज़्यादा लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. वहां करीब 12 फीसदी हिन्दू हैं, करीब 10 फीसदी मुस्लिम हैं. और साढ़े 7 प्रतिशत ईसाई हैं. 

यहां पर सोचने वाली बात ये है, कि ईसाई और मुस्लिम, दोनों ही समुदायों के लोग, श्रीलंका में अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आते हैं. लेकिन इसके बावजूद जब देशहित की बात आई, तो श्रीलंका के मुस्लिम समुदाय ने परिस्थितियों को धर्म का चश्मा लगाकर नहीं देखा. बल्कि वहां के मुसलमान अपनी पहचान अपने देश के नाम पर स्थापित करना चाहते हैं, धर्म के नाम पर नहीं. 

अब आप इसी ख़बर को भारत के एंगल से देखने की कोशिश कीजिए. क्या, हमारे देश में कभी ऐसे Guidelines जारी हो पाएंगे ? क्या भारत का अल्पसंख्यक वर्ग और अल्पसंख्यकों की राजनीति करने वाले नेता धर्म वाला चश्मा उतारकर परिस्थितियों को देख पाएंगे? ये एक गंभीर प्रश्न है, जिसके जवाब के लिए आप सभी को मंथन करना होगा. आज हमें वर्ष 2015 में आई हिंदी फिल्म Baby का एक Scene याद आ रहा है. जिसमें भारतीय होने की भावना को बहुत गहराई से दिखाया गया था. आगे बढ़ने से पहले आप ये Scene देखिए.

We The People Of India....भारत के संविधान में प्रस्तावना की शुरुआत इसी से होती है. लेकिन अफसोस इस बात का है, कि हम इस भावना को आज तक समझ नहीं पाए हैं. अब वक्त आ गया है, जब हम Religion वाले Column में हिन्दू या मुसलमान नहीं. Indian लिखना शुरु कर दें. ये एक नई पहल हो सकती है.

अब भारतीयता की इसी सोच को भारत के Media के चश्मे से देखिए.

कल दिल्ली के एक इलाके में धुव्र राज त्यागी नामक व्यक्ति की चाकू घोंपकर हत्या कर दी गई. जबकि उनका बेटा गंभीर रुप से घायल हो गया. धुव्र त्यागी का कसूर सिर्फ इतना था, कि उन्होंने अपनी बेटी के साथ हुई छेड़खानी का विरोध किया था. लेकिन गुंडों से ये बर्दाश्त नहीं हुआ और उनकी हत्या कर दी गई. पुलिस ने इस मामले में आरोपियों को गिरफ़्तार किया है. और उनकी पहचान मोहम्मद आलम और जहांगीर खान के तौर पर हुई है. लेकिन इस घटना को हमारे देश के मीडिया ने बड़ी चालाकी से रिपोर्ट किया. और इसे अखबार के अंदर के पन्नों की ख़बर बना दिया. 

इन अखबारों की Headlines को पढ़कर कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता, कि धुव्र त्यागी की हत्या करने वाले आरोपी कौन थे ? इस मामले में मरने वाला व्यक्ति हिन्दू था. उसे मारने वाले आरोपी मुस्लिम थे. लेकिन अखबारों की सुर्खियों में आपको कहीं भी मुस्लिम शब्द नज़र नहीं आएगा. अब इसी स्थिति को दूसरे नज़रिए से देखिए. अगर मरने वाला व्यक्ति मुस्लिम समुदाय का होता, अल्पसंख्यक होता, दलित होता या पिछड़ी जाति का होता, तो कैसी Headline बनती. और क्या उस ख़बर को भीतर के पन्नों में दफ्न कर दिया जाता. इसका जवाब है नहीं...... 

उस परिस्थिति में ये ख़बर अखबार के पहले पन्ने पर होती, इसे एक बड़ा मुद्दा बनाय़ा जाता. तब हेडलाइन कुछ ऐसी होती - Muslim Man Murdered In Broad Daylight. दिल्ली में सरेआम दलित को मार डाला गया जैसे शीर्षकों के साथ लेख छापे जाते. और धर्म और जाति के आधार पर हत्या जैसे अपराध को भी बांट दिया जाता. सवाल ये है, कि ये फर्क क्यों है?

अब अगर बात धर्म और भारतीयता की हो रही है, तो यहां आपको भारत के सुरक्षाबलों का धर्म भी बता देते हैं. क्योंकि, हमारे देश में सेना और पैरामिलिट्री फोर्सेस को लेकर भी जमकर राजनीति की जाती है. कई नेता तो ये भी कह देते हैं, कि देश के लिए शहीद होने वाले जवानों में से इतने हिन्दू थे और इतने मुसलमान. और ऐसा हमने समय-समय पर देखा भी है. हालांकि, जो लोग सेना या सुरक्षाबलों की कार्यशैली को नहीं जानते, वही लोग इस तरह का बयान देते हैं. सेना और सुरक्षाबलों का धर्म ना सिर्फ अपने देश की सुरक्षा करना होता है. बल्कि लोगों की सेवा करना भी वो अपना परम कर्तव्य समझते हैं. 

आज Social Media पर, CRPF के एक हवलदार, ड्राइवर इकबाल सिंह के Video की खूब चर्चा हो रही है. वो 13 मई को श्रीनगर के नवाकदल चौक पर तैनात थे. आमतौर पर Duty पर तैनात जवान, Lunch Time में अपनी गाड़ी में बैठकर खाना खाते हैं. लेकिन कल का दिन थोड़ा अलग था. क्योंकि, Lunch के वक्त इकबाल सिंह ने एक मासूम बच्चे को देखा. वो बच्चा भूखा था. और उम्मीद भरी नज़रों से उनकी तरफ देख रहा था. बच्चा मानसिक और शारीरिक रुप से दिव्यांग था. इसलिए वो खुद खाना नहीं खा पा रहा था. इसलिए इकबाल सिंह ने अपना खाना खुद अपने हाथों से उस बच्चे को खिला दिया. 

हवलदार, इकबाल सिंह उस काफिले का हिस्सा थे, जिस पर 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में हमला हुआ था. इस हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हो गये थे. इकबाल सिंह CRPF में ड्राइवर हैं. और पुलवामा हमले के बाद उन्होंने कई घायल जवानों को तुरंत अस्पताल पहुंचाकर उनकी जान भी बचाई थी. यानी पुलवामा हमले के बाद भी उनका मानवीय चेहरा दिखाई दिया था. और इस बार भी उन्होंने अपनी संवेदना से लोगों का दिल जीत लिया है.

भारतीय सेना और पैरामिलिट्री फोर्सेज़ से बड़ा धर्मनिरपेक्ष संस्थान कोई दूसरा नहीं है. सेना का धर्म और ईमान सिर्फ एक है...और वो है उनका देश भारत और उसके नागरिक. Indian Armed Forces ने अपनी इसी भावना की वजह से....देश के लोगों का सम्मान और भरोसा हासिल किया है. भारत की सरहद की सुरक्षा करने वाले देश के वीर जवानों ने भी...कभी किसी से, ज़बरदस्ती ये नहीं कहा, कि आप हमारा सम्मान करें. बल्कि उन्होंने देश के 135 करोड़ लोगों से ये सम्मान, अपने सर्वोच्च बलिदान और निष्ठा की बदौलत हासिल किया है. 

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