भोपालः मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 37 साल पहले हुए गैस हादसे के बाद की तीसरी पीढ़ी भी जहरीली गैस के दुष्प्रभावों के नतीजों को भोगने को मजबूर है. यही कारण है कि गैस पीड़ितों के परिवार में शारीरिक और मानसिक तौर पर विकृत बच्चों के जन्म लेने का सिलसिला बना हुआ है.
1984 में हुई थी घटना
यूनियन कार्बाइड संयंत्र से दो-तीन दिसंबर 1984 की रात को रिसी जहरीली मिथाइल आईसो साइनाइट ने हजारों लोगों को कुछ घंटों में ही मौत की नींद सुला दिया था. उसके बाद भी मौतों का सिलसिला अब तक नहीं थमा है. इस जहरीली गैस के चलते बड़ी संख्या में लोग गुर्दे, हृदय, लीवर के रोगों से जूझ रहे हैं. वहीं पीड़ितों की दूसरी पीढ़ी के बाद तीसरी पीढ़ी भी समस्याओं से जूझ रही है.
बच्चों पर अब भी असर
गैस के दुष्प्रभावों से शिकार हुए बच्चों के जीवन को संवारने में लगी संस्था चिंगारी ट्रस्ट की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन के दौरान उनके यहां वर्ष 2020-21 की अवधि में 80 बच्चे छह माह से 2 साल तक की आयु के पंजीकृत हुए हैं, जो विकृति के शिकार है. इससे एक बात साबित होती है कि गैस हादसे के 37 साल बाद भी गैस पीड़ितों के परिवार में बड़ी संख्या में दिव्यांग बच्चे जन्म ले रहे हैं.
गैस पीड़ित माता-पिता से पैदा हुई 10 वर्षीय पूनम अहिरवार जन्म से ही विकृत है. वह पाल्सी नामक बीमारी से पीड़ित है जिससे उसकी गर्दन और हाथ में परेशानी है. इसी तरह 19 वर्षीय मोहम्मद जैद भी जन्मजात विकृति के साथ पैदा हुआ जिसकी वजह से वो शारीरिक तौर पर विकलांग है.
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भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एन्ड एक्शन की रचना ढिंगरा का कहना है कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध पत्रों में यूनियन कार्बाइड की जहरीली गैसों से प्रभावित माता पिता के जन्मे बच्चों में अनुवांशिक (जीनोटॉक्सिक) विकार पाए गए हैं.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अध्ययन में हादसे के पांच साल बाद तक जहरीले गैस के संपर्क में आने वाली महिलाओं में गर्भपात की दर बहुत ज्यादा पाई गई.
गैस पीड़ित की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के तीन अक्टूबर 1991 के फैसले ने निर्देश दिया था की गैस पीड़ित माता-पिता को पैदा हुए कम से कम एक लाख बच्चों को चिकित्सीय बीमा कवरेज प्रदान किया जाए, मगर आज तक एक भी बच्चे का बीमा नहीं कराया गया है.
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