नई दिल्लीः प्यार (Love)एक ऐसा अल्फाज जो अपने आप में सारी दुनिया होने का अहसास कराता है. ढाई अक्षर के इस शब्द में इतनी ताकत होती है कि दहाई में बंटी इस दुनिया को एक इकाई बना देता है. मौका और दस्तूर जब प्यार वाले महीने का है और फिजा में हर ओर रंगीनियत घुली हुई है तो ऐसे में अक्सर किसी की याद ही आ ही जाती है.
साथी साथ में हो तो चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है और न हो तो आंखें भीग जाती हैं. कई दफा इन अहसासों को बयां कर पाना मुश्किल हो जाता है, लेकिन हाथ में कलम हो तो कागज पर की गई कारगुजारियां बड़ी खूबसूरत बन जाती हैं. वन टच वन क्लिक के इस दौर में पढ़िए ऐसे ही पांच कविताएं जो आपके दिल की धक-धक के साथ धड़कती चलेंगी.
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1. खोज
आदिमानव ने खोजी आग
जरूर छू गया होगा स्त्री का हाथ
और तप गया होगा वह भीतर तक.
आदिमानव ने बनाए हल, फावड़े और की खेती
जरूर नाखूनों ने हल्के से कुरेदी होगी पीठ
और बो दिया होगा थोड़ा सा एहसास.
आदिमानव ने बनाया मछली का जाल
जरूर जा फंसी होंगी उलझे बालों में अंगुलियां
और भूल गईं होंगी निकलना.
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आदिमानव ने बनाई नाव, तैरा दूर तक
जरूर डूब गया होगा आंखों की झील में
और पलकों के सहारे आया होगा किनारे.
आदिमानव ने बनाये पहिये
जरूर स्त्री ने हृदय पर रख लिया होगा उसका हाथ
और घूम गया होगा फिर उसका माथा
समय के छोर तक
अब बन गया है वह मानव
और खोज रहा है रहस्य
कैसे स्त्री के पास है यह रसायन
भौतिक, जैव विज्ञान का भंडार
और स्त्री मुस्कुरा रही है
एक मुश्त इश्क़ के साथ
एक अदद प्रेम के साथ
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2. टूटन
खतरनाक होता है
चाहना,
टूटकर चाहना,
चाहकर टूटना
चाहते हुए टूट जाना
टूटते हुए चाह लेना
टुकड़े-टुकड़े को चाहना
टुकड़ों में होकर भी चाहना
बस चाहना और टूटना.
इससे भी बुरा होता है,
जिसे चाहना उसे ही तोड़ देना
अब मुझे कहने में गुरेज नहीं
तुमने यही किया है
सालों साल, महीने हर माह
दिन और हर रात
यहां तक कि दोपहर में भी.
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तुमने मुझे धूप में सुखाकर तोड़ा
बारिशों में भिगो कर तोड़ा,
तुमने तोड़ा मुझे पतझड़ की रुत में भी
तुमने मुझे पाले में कंपाकर तोड़ा
मैं सोचता रहा कि तुम तोड़ रही हो
शायद कुछ नया बनाने की चाह में
लेकिन टूट गया मेरा यह भ्रम भी
जब तुमने मुझे तोड़ना छोड़ा
और ले आई कुछ नया
नए तरीके से तोड़ने के लिए.
चलो ठीक है कोई बात नहीं.
3. ख्वाहिश और तुम
तुम समय हो
मैं तुम्हें बाहों में भरना चाहता हूं
करना चाहता हूं, आलिंगन तुम्हारा
चाहता हूं चूम लूं तुम्हारे गाल
और तुम्हारे होठों पर रख दूं अपनी निशानी.
छूकर देखो तुम्हारे दाएं कांधे का तिल
और बाएं पर हल्के से टिका दूं सिर,
सुन लूं दिल पर कान लगाकर तुम्हारी धड़कन,
कमर पर फिरा दूं अपनी शरारती अंगुलियां,
और पीठ पर गुदगुदाऊं अपना नाम.
सोचता हूं हाथों से घेर लूं तुम्हारा इर्द-गिर्द
पैरों को दबा लूं अपने पैरों के बीच.
इस दौरान बन्द कर लो तुम अपनी आंखें, निहारती रहो मुझे अपलक
मैं तुम्हारे कान में कुछ कहने की कोशिश करूंगा.
पर इसके लिए तुम्हें
मेरे पहलू में रुकना होगा
सांसों में थमना होगा,
अपनी निर्बाध गति भूलकर
रेत सी बांह में जमना होगा.
मुश्किल है तुम्हारे लिए,
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क्योंकि तुम तय करने निकली हो,
सेकंड से मिनट की दूरी,
मिनट से घण्टे की दौड़
दिन बन जाता है तुम्हारा सफर,
महीनों तक है जिसकी मन्ज़िल
तब्दील होना है तुम्हें त्योहारों में
और बदल जाना है साल की तरह
मैं अरमानों का दिसम्बर पीछे रह जाऊंगा,
तुम उम्मीदों का साल बनकर आगे बढ़ जाओगी.
यही एक वजह कि अनिश्चित अपना विलय है
मैं हूं बेपरवाह कोई और तू बदलता समय है.
4. सुनो न
सुनो न,
दरवाजे के पीछे टंगी है तुम्हारी दी टी-शर्ट
उस कॉफी मग का हैंडल भी टूट गया है,
वहीं किचन में छोड़ आया हूं अपनी मैगी वाली प्लेट,
बस जेहन में यादें साथ लाया हूं, शहर छूट गया है.
सुनो न,
याद है तुमने मुझे एक दिन ओपनर दिया था,
पर बताया नहीं था कि उससे दिल कैसे खोलूं.
टेबल पर खाली ही रखा था तेरा दिया कलमदान,
लिख न सका, वो अल्फ़ाज़ क्या ही अब बोलूं.
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कमरे में छूटा था तुम्हारे बालों की क्लिप का सेट,
एक दिन गिर गया था तो वो भी टूट गया है.
जेहन में यादें साथ लाया हूँ, और कुछ नहीं है हाथ
मैं भी आगे बढ़ आया हूं, शहर छूट गया है.
सुनो न,
5. यादें
तुमने पूछा था न,
वाकई सब छोड़ आए, या कुछ लाए भी हो साथ,
जानना ही चाहती हो तो सुनो इतनी सी बात.
कुछ चीजें हैं जो चाह कर भी नहीं छोड़ पाया हूं,
जैसे मां ने जैकेट दिया था, वो साथ ले आया हूं.
उसकी जेबों में भरी है, तुम्हारे हाथों की गर्मी,
और बाजू पर टिकी है गुलाबी गालों की नरमी.
बहुत झटका पर वो अहसास निकाल न पाया
हार गया जब तो ऐसे ही साथ ले आया.
और भी है, सुनो तो
बाइक पर बैठना और मेरी कमर पर रखना हाथ,
पापा ने खरीदी थी इसलिए इसे भी लाया हूं साथ
अब ब्रेक लगाता हूं तो जैसे जिंदगी मेरी रुक जाती है,
और ऐसे ही तुम्हारे करीब होने की बात याद आती है.
स्पीड बढ़ते ही तुम्हारे टोकने का खयाल आ जाता है,
जल्दी है, पर रस्ता लम्बा ही होता जाता है.
कोशिश की थी मगर कहीं भी छोड़ न पाया,
अहसासों के चक्कों पर तुम्हारी याद ले आया.
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हां, और यह भी है
वो जो चादर में पड़ी थी कितनी ही सिलवटें,
हर सिलवट में भरी हैं तुम्हारी ही करवटें.
ओढ़ता हूं तो जेहन में बीते ख्याल ही हैं आते,
कितना भी धो लूं जज़्बातों के निशान नहीं जाते.
अभी नई ही थी तो उसे भी उठा लाया हूँ,
यूं समझ लो यादों का एक और सामान लाया हूं.
बस तुमने पूछा तो बता रहा हूं,
भूल गया पर याद दिला रहा हूं.
लेकिन, चलो, छोड़ो, रहने दो.
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