कोलकाताः अभी हाल ही में फरवरी के पहले सप्ताह में पं. बंगाल की CM ममता बनर्जी ने बोस की विरासत पर अपना ठप्पा लगाने की कोशिश की. उन्होंने ऐलान किया कि वह कोलकाता पुलिस फोर्स में एक नई बटालियन बनाएंगी जिसका नाम 'नेताजी बटालियन' होगा.
जाहिर की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का यह ऐलान BJP को मात देने की महज कोशिश भर है, क्योंकि BJP पहले ही सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती समारोह को पराक्रम दिवस के तौर पर मना रही है. 23 जनवरी से हुआ यह आगाज साल भर तक कई कार्यक्रमों की शक्ल में दिखेगा.
पं. बंगाल में 'जी उठी' हैं महान विभूतियां
पं. बंगाल में चुनावी जोड़-तोड़ और गुणा-गणित के माहौल में अचानक ही गुरुदेव रवींद्र, नेताजी बोस और उनकी विरासत, स्वामी विवेकानंद, संत रामकृष्ण, चैतन्य महाप्रभु और ऐसे कई नाम या विभूतियां प्रासंगिक हो गए हैं.
इन्हीं में एक नाम है शरत चंद्र बोस का. नेताजी के बड़े भाई के तौर पर पहचाने जाने के साथ राजनीति की अलग विरासत रखने वाले बोस पं. बंगाल की राजनीति में अलग जगह रखते हैं. 6 September 1889, को कटक में जन्में और 20 February 1950 को कोलकाता में आखिरी सांस लेने वाले शरत चंद्र बोस की आज पुण्य तिथि है.
विडंबना है कि बोस की विरासत पर जबरिया सिर्फ अपना हक बनाए रखने का दंभ भरने वाली TMC सरकार को शायद ही इसकी सुध हो.
राष्ट्रवादी नेता के तौर पर शरत चंद्र की पहचान
शरत चंद्र बोस की पहचान राष्ट्रवादी नेता के तौर पर है. देश की आजादी के बाद सुभाष के बड़े शरत चंद्र बोस ने फारवर्ड ब्लाक का नेतृत्व संभाला था. एक जमाने में वह कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में से थे. जैसा कि सुभाष चंद्र बोस के बारे में बताया जाता है कि उन्हें कांग्रेस के अंदर जारी राजनीति के कारण ही कांग्रेस से अलग होना पड़ा.
ठीक वैसी ही राजनीति बड़ी भाई शरत को भी झेलनी पड़ी. बोस परिवार का आमतौर पर मानना है कि नेहरू के कारण उन्हें कांग्रेस से अलग होना पड़ा. हालांकि कुछ लोग इसके लिए सरदार पटेल का भी नाम लेते हैं. कितना सही-कितना गलत कौन जाने?
ऐसा रहा करियर
सी.आर. दास के निर्देशन में अपने करियर की शुरुआत करने वाले और कलकत्ता निगम के कार्यों में वर्षो तक चर्चित रहने वाले शरत अहिंसा में विश्वास रखते थे, हालांकि भारत के विभाजन पर उनकी सहमति भी नहीं थी. उन्होंने बंगाल विभाजन का विरोध किया था, लेकिन इसमें असफल रहे थे.
शुरुआत में उन्होंने वकालत की थी और इसमें सफल भी हो रहे थे. शरत कांग्रेस कार्यकारी समिति के सदस्य थे साथ ही बंगाल विधान सभा में कांग्रेस संसदीय पार्टी के नेता थे. अगस्त 1946 में केंद्र की अंतरिम सरकार में शामिल हुए थे.
यह भी पढ़िएः चुनावी माहौल में क्यों प्रासंगिक हैं संत रामकृष्ण परमहंस और चैतन्य महाप्रभु
क्या राष्ट्रवादी नेता होने से भुलाए गए शरत
पिछले दिनों सामने आए ममता के चुनावी बोल में ऐसा कई बार सामने आया जब उन्होंने कहा कि बंगाल BJP के हिंदुत्व को नहीं मानता. वह राष्ट्रवाद के लिए भी अलग-अलग थ्योरी देती रही हैं. विडंबना है कि चुनावी माहौल में सुभाष चंद्र बोस तो याद किए जा रहे हैं, उनकी विरासत के दावेदार भी बहुत हैं, लेकिन उनके परिवार को राजनितिक तौर पर भुला दिया जाना कहां का न्याय है.
शरत चंद्र बोस इसी अन्याय का शिकार हैं. क्योंकि न तो वह कोई वोट हैं और न ही वोट बैंक. तो क्या पं. बंगाल में उनकी स्मृति राष्ट्रवादी होने से धुंधली है? उनकी पुण्यतिथि पर उठता यह सवाल अनसुलझा है.
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.