Parakram Diwas: क्या है सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के मतभेद का सच, जानिए पूरी बात

1939 के Tripuri अधिवेशन में गांधीजी द्वारा समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया को 199 मतों से हराकर सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बने, लेकिन गांधीजी के कड़े विरोध के कारण 30 अप्रैल 1939 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

Written by - Ravi Ranjan Jha | Last Updated : Jan 22, 2021, 01:57 PM IST
  • 1923 में नेताजी भारतीय युवक कांग्रेस के अध्यक्ष और बंगाल कांग्रेस के सचिव बने
  • महात्मा गांधी के विरोध के कारण देना पड़ा था कांग्रेस से इस्तीफा
Parakram Diwas: क्या है सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के मतभेद का सच, जानिए पूरी बात

नई दिल्लीः प्रभावशाली व्यक्तित्व, आत्मसम्मान के धनी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन सम्मान से जीने की न सिर्फ प्रेरणा देता है, बल्कि सम्मान सहित जीने का तरीका भी सिखाता है. वह अंग्रेजों के खिलाफ अपना युद्ध शुरू कर चुके थे. उनकी लड़ाई अंग्रेजों के बजाय उनकी उस मानसिकता से अधिक थे जो भारतीयों को दास के रूप में देखती थी. अंग्रेजों की दासता नेताजी को किसी भी हाल में स्वीकार नहीं थी. आईसीएस की नौकरी छोड़ने के बाद वो आजादी की लड़ाई में कूद पड़े.

पूर्ण स्वराज्य चाहते थे नेताजी

कोलकाता (Kolkata) में उस समय कांग्रेस के सबसे बड़े नेता देशबंधु चितरंजन दास की प्रेरणा से कांग्रेस में शामिल हुए. वो चितरंजन दास (Chittaranjan das) को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे. थोड़े ही दिनों में नेता जी फायरब्रांड यूथ आइकन के रूप में देखे जाने लगे. 1923 में वो भारतीय युवक कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए साथ ही बंगाल कांग्रेस (Congress) के सचिव भी.

1927 में जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के साथ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव चुने गए. 1928 में कांग्रेस के गुवाहाटी अधिवेशन में सुभाष और गांधी के बीच मतभेद के बीज पड़ गए. सुभाष (Subhas Chandra Bose) पूर्ण स्वराज से कम किसी भी चीज पर मानने को तैयार नहीं थे जबकि गांधी (Mahatma Gandhi)और कांग्रेस के पुराने नेता ब्रिटिश हुकूकत के तहत ही डोमेनियन स्टेटस का दर्जा चाहते थे. 

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भगत सिंह को फांसी, महात्मा गांधी से मतभेद और कांग्रेस से इस्तीफा

23 मार्च 1931 को जब भगत सिंह (Bhagat Singh), राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई तो महात्मा गांधी से उनके मतभेद और बढ़ गए. नेताजी को ये लगा कि अगर गांधी जी चाहते तो उनकी फांसी रुक जाती. उधर नेताजी का क्रांतिकारी मिजाज महात्मा गांधी को नागवार गुजरने लगा. बावजूद इसके 1938 के हरिपुरा अधिवेशन में सुभाष बोस कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए.

मार्च 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में गांधीजी द्वारा समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया को 199 मतों से हराकर सुभाष बोस एक बार फिर कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए. उसके बाद गांधीजी ने ऐसा विरोध किया कि तकरीबन डेढ़ महीने बाद 30 अप्रैल 1939 को नेताजी ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया और बाद में 3 मई 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक की नींव डाली.

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