Bihar Flood: बिहार के बाढ़ में डूबे कई गांव, नाव पर ही डाला बसेरा, कोई प्राकृतिक आपदा या सरकारी आफत!
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Bihar Flood: बिहार के बाढ़ में डूबे कई गांव, नाव पर ही डाला बसेरा, कोई प्राकृतिक आपदा या सरकारी आफत!

Bihar Flood: बिहार में हर साल बाढ़ आती है और लोगों के आशियाने के उड़ा ले जाती है. यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि सरकारी आफत है जो हर साल आती है. बिहार के बख्तियारपुर का दियारा इलाका इन दिनों बाढ़ की परेशानी झेल रहा है. 

Bihar Flood: बिहार के बाढ़ में डूबे कई गांव, नाव पर ही डाला बसेरा, कोई प्राकृतिक आपदा या सरकारी आफत!

Bihar Flood: गंगा की प्रचंड लहरों ने बख्तियारपुर दियारा में कई गांवों को अपनी आगोश में ले लिया है. अब तो पहचान के नाम पर गांव का सिर्फ ऊपरी सिरा ही नजर आता है. आप चाहे भी तो बाढ़ के पानी में अपने गांव का वजूद नहीं ढूंढ सकते. हर साल बाढ़ आती है. हर साल नया बसेरा बनता है और डूब जाता है. यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि सरकारी आफत है जो हर साल आती है. यह है बख्तियारपुर का दियारा इलाका. यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र भी है. 

यहां की चार पंचायत में करीब 15-16 गांव पड़ते हैं. यहां चारों ओर जहां देखिए पानी का सैलाब ही नजर आता है. यहां घरों से टकराता बाढ़ का पानी एक अजब ही डरावना मंजर पेश करता है. पानी में तैरती नाव ही यहां जिंदगी का एकमात्र सहारा है. अब तो लोगों ने नाव पर ही घर बसा लिया है. गांव में 40-50 महिलाओं और बच्चों के अलावा लगभग पूरा गांव खाली है. लोग अपने घरों को छोड़कर शहर में सड़क किनारे डेरा डाले हैं. यहां के राहत शिविरों में भी सरकारी इंतजाम के नाम पर कागजी खानापूर्ति ही नजर आती है.

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बाढ़ को जिंदगी का हिस्सा मान चुके यहां के लोग आज दाने-दाने को मोहताज है. कभी लोगों का पेट भरने वाले आज खुद भूखे हैं. दियारा की हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो चुकी है. अब समस्या यह है कि खाएं तो क्या. रसोई का चूल्हा भी बंद पड़ा है. जलावन भी बाढ़ के पानी में भीग चुका है. भूख से रोते हुए बच्चे अब अपने मां-बाप से खाना भी नहीं मांगते, उन्हें भी पता है कि कुछ दिन भूखे सोना होगा. बच्चों के अलावा पशुओं के चारे की भी व्यवस्था करनी है. पशुओं का चारा भी बाढ़ के पानी में बह गया है.

थोड़े से अनाज के लिए हाथ पसारे इन मासूम बच्चों और औरतों के आंख का पानी भी अब सूख गया है. बाढ़ के पानी ने उनका सब कुछ छीन लिया है. किसी नाव को गांव की तरफ आते देख क्या बच्चे और बूढ़े सभी बाढ़ की लहरों में दौड़ पड़ते हैं. उनकी उम्मीद बस उस राहत सामग्री पर टिकी होती है, जो कुछ समय के लिए उनके बच्चों की भूख मिटा दे. हर दिन बाढ़ का बढ़ता पानी उनकी हिम्मत को तोड़ देता है. सबसे बड़ी परेशानी तो उन बीमार लोगों की है, जो अस्पताल तक जाते-जाते दम तोड़ देते हैं. इसके बाद भी समस्या खत्म नहीं होती. दाह संस्कार के लिए किसी ऊंची जगह की तलाश किसी मजबूत इंसान के हिम्मत को भी तोड़ देती है.

सरकार के दावे तो बड़े-बड़े हैं लेकिन यहां इसकी हकीकत बेपर्दा हो जाती है. यहां के लोगों में सरकार की लापरवाही को लेकर भयंकर गुस्सा है. आप थोड़ी देर मिले तो यह गुस्सा उनकी बातों में साफ झलकने लगता है. बाढ़ में ही जिंदगी ढूंढते ये मासूम आज भी सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. मुख्यमंत्री का क्षेत्र होने के बावजूद सरकार इसे बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित नहीं कर रही है. देखते हैं उनकी कराह से गूंगे बहरे प्रशासन की नींद कब खुलती है.

इनपुट- चंदन राय

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