MHADA: दादा का फ्लैट पाने के लिए पोते ने किया 48 साल इंतजार, कोर्ट के आदेश से अब सपना हुआ पूरा
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MHADA: दादा का फ्लैट पाने के लिए पोते ने किया 48 साल इंतजार, कोर्ट के आदेश से अब सपना हुआ पूरा

Mhada Flat Allotment: मुंबई में एक वयक्ति को अपने दादा का फ्लैट पाने के लिए 48 साल इंतजार करना पड़ा. महाराष्ट्र अथॉरिटी ने उस समय किसी कारणवश फ्लैट का कब्जा नहीं दिया था. इसके लिए पोते ने कानूनी लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की.

MHADA: दादा का फ्लैट पाने के लिए पोते ने किया 48 साल इंतजार, कोर्ट के आदेश से अब सपना हुआ पूरा

Bombay High Court on Mhada: बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (महाडा) को एक ऐसे व्यक्ति को फ्लैट आवंटित करने का निर्देश दिया है, जिसका परिवार करीब 48 साल से इंतजार कर रहा था. परिवार को 1975 में उनके फ्लैट से बेदखल कर दिया गया था और तब से वह पुनर्वास का इंतजार कर रहा था. अदालत ने पाया कि आवंटन में देरी फ्लैट के आकार में विसंगति के कारण हुई थी, कोर्ट ने लेकिन याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया और महाडा को 579 वर्ग फुट का फ्लैट आवंटित करने का आदेश दिया.

579 वर्ग फुट का है फ्लैट

इस मामले पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाडा को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को फ्लैट आवंटित करे, जिसके परिवार ने आधी सदी के करीब इंतजार किया है, वह भी परेल गांव के पटेलवाड़ी में एक 16 मंजिला इमारत में और उसे उसका कब्जा दें. न्यायाधीश गौतम पटेल और कमल खाता ने कहा कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार ने पुनर्वास के लिए आवंटन के लिए पूरे 48 साल इंतजार किया है. पिछले सात हफ्तों से हमें बताया जा रहा है कि इसे किसी भी समय आवंटित कर दिया जाएगा. अब कहा जा रहा है कि इसे आवंटित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि फ्लैट 579 वर्ग फुट का है लेकिन याचिकाकर्ता का हक केवल 300 वर्ग फुट का है.

1975 से चला आ रहा है मामला

याचिकाकर्ता 34 वर्षीय रविंद्र भटुसे की के अनुसार, नवंबर 1975 में उनके दादाजी को बायकुला के जेनाब मंजिल में 106 वर्ग फुट के कमरे को खाली करने का नोटिस जारी किया गया था और उन्हें एंटॉप हिल ट्रांजिट कैंप भेज दिया गया था. 2018 में ट्रांजिट बिल्डिंग जीर्ण-शीर्ण हो जाने के कारण उन्हें दूसरी बार बेदखल कर दिया गया, क्योंकि उन्हें पुनर्वास नहीं दिया गया था, इसलिए वे अपने गांव चले गए. अक्टूबर 2007 में उनके दादा की मौत हो गई और 2009 में दादी भी गुजर गईं. वहीं, याचिकाकर्ता के पिता की मौत जनवरी 1996 में ही हो गई थी. परिवार में केवल रविंद्र और उनकी पत्नी रह गई थी.

2010 में फ्लैट के लिए बने पात्र

वहीं, इस मामले पर जजों ने कहा कि एक पूरी पीढ़ी चली गई. दूसरी पीढ़ी आंशिक रूप से चली गई है, लेकिन फिर भी याचिकाकर्ता का पुनर्वास नहीं किया गया. फरवरी 2010 में याचिकाकर्ता को स्थायी वैकल्पिक आवास के लिए पात्र माना गया था. होई कोर्ट के समक्ष, उनके अधिवक्ताओं यशोदीप देशमुख और आकाश जायसवाल ने कहा कि बार-बार की गई पूछताछ और प्रतिनिधित्व के बावजूद भटुसे को उसके हक के अनुसार परिसर आवंटित नहीं किया गया.

सरकार-अथॉरिटी ने किया बुरा व्यवहार

जजों ने कहा कि किस तरह की सरकार और अथॉरिटी अपने ही नागरिकों के साथ इस तरह का व्यवहार करता है. भटुसे ने परेल गांव में दोस्ती बेलेजा में एक 579 वर्ग फुट के फ्लैट की पहचान की थी. इसे डेवलपर ने अधिशेष क्षेत्र के रूप में महाडा को सौंप दिया था. भटुसे राज्य की नीति के तहत मुफ्त में मिलने वाले 300 वर्ग फुट के अलावा अतिरिक्त क्षेत्र का भुगतान करने को तैयार थे. वहीं, महाडा के वकील पीजी लाड ने कहा कि ऐसे में सभी लोग अधिक की मांग करना शुरू कर देंगे. इस पर जजों ने कहा कि इस आशंका का कोई आधार नहीं है, क्योंकि भटुसे यह क्षेत्र मुफ्त में नहीं मांग रहे हैं और महाडा द्वारा निर्धारित दर पर भुगतान करने के लिए सहमत हैं.

अतिरिक्त जगह के लिए भुगतान करेगा याचिकाकर्ता

जजों ने स्पष्ट किया कि भटुसे अतिरिक्त 279 वर्ग फुट के लिए तैयार रेकनर दर या बाजार मूल्य, जो भी अधिक हो का भुगतान करेंगे. उन्होंने कहा कि लाड सही हैं कि यदि याचिकाकर्ता पर निर्माण की भारी छूट वाली लागत लागू की जाती है, तो इसे लगभग सभी लोगों पर लागू करना होगा. भटुसे को महाडा को भुगतान करने के लिए एक महीना का समय देते हुए जजों ने निर्देश दिया कि भुगतान के 24 घंटों के भीतर उन्हें अपार्टमेंट का कब्जा दे दिया जाएगा.

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