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नई दिल्ली: भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था. ऐसा माना जाता है कि यहां के राजा महाराजाओं पर बहुत धन हुआ करता था. देश में आजादी से पहले कई शाही घराने थे. इसमें हिंदू महाराजाओं के साथ नवाबों की भी सल्तनतें थीं. इसमें से एक हैदराबाद के नवाब का भी नाम आता है. आजादी के वक्त देश 565 छोटी रियासतों में बंटा हुआ था. लेकिन आजादी के बाद इन रियासतों का भारतीय संघ में विलय कराया गया. लेकिन कुछ रियासतों ने विलय करने से मना कर दिया इनमें से एक हैदराबाद रियासत भी थी. हैदराबाद के अंतिम निजाम ने भारत को 5 हजार किलो सोना दान में दिया था. आइए इस कहानी की सच्चाई बताते हैं.
आपको बता दें कि हैदराबाद के अंतिम निजाम मीर उस्मान अली खान थे. वो महबूब अली खान के दूसरे पुत्र थे. वे 1911–1948 तक हैदराबाद रियासत के निजाम रहे. वहीं, बाद में कुछ साल तक ना मात्र के निजाम रहे. जानकारी के अनुसार, वो हैदराबाद को एक स्वतंत्र रियासत बनाना चाहते थे. कहते हैं उस समय की भारत सरकार ने कई बार उनसे भारत में विलय होने की बात कही, लेकिन वो अपनी बात पर अड़े ही रहे. लेकिन, बाद में मजबूरन उन्हें सरकार के दबाव में आकर हैदराबाद रियासत को भारत में शामिल करने की बात पर हामी भरनी पड़ी. भारत सरकार न उन्हें हैदराबाद का राज प्रमुख बना दिया था.
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मीर उस्मान अली खान अंग्रेजों के वक्त अपनी अमीरी के लिए जाने जाते थे. कहा जाता है कि उन्होंने भारत सरकार को 5 हजार किलो सोना दान में दिया था. इससे पता चलता है कि वो कितने अमीर थे. दरअसल, 1965 में भारत-पाक के बीच युद्ध हुआ और भारत की इसमें जीत हुई, लेकिन इस युद्ध की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था डगमगा गई थी. डगमगाती अर्थव्यवस्था को सही करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने राहत कोष के लिए अपील की. इसी बीच वो हैदराबाद के निजाम से भी मिले.
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मीर उस्मान अली खान ने बेगमपेट हवाई अड्डे पर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का स्वागत किया. दोनों के बीच काफी चर्चा हुई और इसके बाद उस्मान अली ने पांच हजार किलो सोना राहत कोष के नाम पर दिया. हालांकि सरकार के पास निजाम द्वारा दान किए गए सोने की कोई जानकारी नहीं है. इससे जुड़ी RTI में ये जानकारी प्राप्त हुई है कि उस्मान अली खान ने सोना दान नहीं बल्कि National Defense Gold Scheme में अपना 425 किलो सोना निवेश किया था, जिसका उन्हें 6.5 फीसदी की दर से ब्याज भी मिलना था.
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