जम्‍मू-कश्‍मीर: खत्‍म नहीं हुई घाटी की सियासी जंग, आगे अभी बहुत कुछ बाकी है...
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जम्‍मू-कश्‍मीर: खत्‍म नहीं हुई घाटी की सियासी जंग, आगे अभी बहुत कुछ बाकी है...

घाटी की तीनों संसदीय सीट जीतने वाली नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया फारुख अ‍ब्‍दुल्‍ला ने साफ कर दिया है कि धारा 370 और 35 ए को लेकर घाटी में संघर्ष जारी रहेगा. 

फारुख अब्‍दुल्‍ला ने कहा है कि आगामी संसद उनके लिए आसान नहीं होगी, वे कश्‍मीर को लेकर बीजेपी के इरादों को पूरा नहीं होने देंगे. (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली: लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों में भले ही जम्‍मू और कश्‍मीर की छह सीटों में तीन पर बीजेपी और तीन पर नेशनल कांफ्रेंस ने जीत हासिल कर ली हो, लेकिन अभी घाटी की सियाजी जंग अभी खत्‍म नहीं हुई है. अभी घाटी में बहुत कुछ ऐसा बाकी है, जो घाटी की सियासत को भविष्‍य में बेहद संवेदनशील और पेचीदा बनाने वाली है. दरअसल, घाटी के लोकसभा चुनाव परिणामों के आधार पर राजनैतिक दलों ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछाना शुरू कर दी है. लोकसभा चुनाव में मिली जीत को विधानसभा चुनाव में बरकारार रखने के लिए नेशनल कांफ्रेंस ने अपना सियासी दाव फेंक दिया है. वहीं, पीडीपी की घाटी में करारी हार के पहले महबूबा मुफ्ती ने अपने पिता मोहम्‍मद मुफ्ती सईद के साथ अपना एक फोटो ट्विट कर पहला इमोशनल कार्ड चला है. 

  1. जम्‍मू और कश्‍मीर की 3 सीटों पर बीजेपी और 3 पर नेशनल कांफ्रेंस की जीत
  2. राज्‍यपाल सतपाल मलिक ने जल्‍द J&K में विधानसभा चुनाव की जाहिर की है इच्‍छा
  3. विधानसभा चुनावों को लेकर तीनों दलों ने शुरू किया सियासी बिसात बिछाना
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फिलहाल, महबूबा मुफ्ती यह समझने में लगी हुई हैं कि आखिर चूक कहां हुई. जिन मुद्दों पर वह कश्‍मीर की पहली सियासी चाहत बन गई थी, वहीं मुद्दे उनके खिलाफ कैसे खड़े हो गए. जम्‍मू और कश्‍मीर की सियासत को करीब से देखने वाले एक वरिष्‍ठ पत्रकार की मानें तो 2014 से पहले तक महबूबा मुफ्ती की छवि अलगाववाद के प्रति हमदर्दी रखने वाली महिला के तौर पर थी. अलगाववाद की बयार पर महबूबा मुफ्ती ने अपनी सियासी जमीन तैयार की थी. 2014 में विधानसभा चुनाव के बाद महबूबा मुफ्ती ने एक तीर से दो निशाने साधने चाहे. पहला निशाना अपनी छवि के विपरीत बीजेपी के साथ सरकार बनाने का था. वहीं दूसरा निशाना, अलगाववादियों के इशारे पर पत्‍थरबाजी करने वाले कश्‍मीरी नौजवानों को राजनैतिक और प्रशासनिक संरक्षण देने की थी. 

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महबूबा मुफ्ती अपने दोनों मकसद में लगभग कामयाब भी रही. बतौर मुख्‍यमंत्री अपने शासनकाल के दौरान महबूबा मुफ्ती ने कई बार बीजेपी को पत्‍थरबाजों के प्रति नर्म रुख और सहानुभ‍ूति वाला नजरिया रखने के लिए मजबूर किया. महबूबा मुफ्ती के दबाव का ही असर था कि बीजेपी कश्‍मीर में रमजान के दौरान पत्‍थरबाजों और आतंकियों के खिलाफ चल रहे ऑपरेशन ऑल आउट को रोकने के लिए तैयार हो गई. इसी बीच, नौहट्टा में हुई घटना ने बीजेपी और पीडीपी के बीच तल्‍खी बड़ा दी. नतीजतन, बीजेपी और पीडीपी का गठबंधन टूट गया और महबूबा मुफ्ती की सरकार गिर गई. इसके बाद, सैन्‍य कार्रवाई, आतंकवाद और अलगाववाद को आधार बनाकर महबूबा मुफ्ती ने अपनी राजनैतिक जमीन तैयार करना शुरू की. वे इनकाउंटर में मारे गए आतंकियों के घर गई, आतंकियों के प्रति अपनी संवेदना जताई. जम्‍मू कश्‍मीर में नेशनल कांफ्रेंस ने भी लगभग इसी डर्रे पर अपना चुनावी प्रचार शुरू किया. 

इस सबके बीच लोकसभा चुनाव की घोषण हो गई. आतंकियों की तमाम धमकियों के बावजूद जम्‍मू और कश्‍मीर में भले ही मतदान का प्रतिशत कम रहा, लेकिन वोट पड़े. इन चुनिंदा वोटिंग पर आए नतीजों में नेशनल कांफ्रेंस कश्‍मीर की तीन सीटों पर कब्‍जा जमाने में कामयाब रही. इस कामयाबी के साथ यह साफ हो गया कि घाटी की जनता पर पीडीपी के ज्‍यादा नेशनल कांफ्रेंस की हमदर्दी का असर हुआ. चुनाव के परिणाम आने और हार-जीत का फैसला होने के बाद सबको लगा कि अब रियासत की सियासत में थोड़ा ठहराव आएगा. लेकिन, ऐसा नहीं  हुआ. लोकसभा चुनाव 2019 में जीत के साथ फारुख अब्‍दुल्‍ला के बयान ने घाटी की सियासत में एक बार फिर गर्माहट ला दी. जीत के बाद उन्‍होंने कहा कि यह संसद हमारे लिए आसान नहीं होगी. धारा 370 और 35 ए के मुद्दे पर बीजेपी की इच्‍छा को वह कभी भी पूरा नहीं होने देंगे. 

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नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया फारुख अब्‍दुल्‍ला यहीं नहीं रुके. उन्‍होंने कश्‍मीर मुद्दे के हल के लिए पाकिस्‍तान से बातचीत की पैरवी कर दी. उन्‍होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में शांति के लिए भारत और पाकिस्तान को बातचीत कर इस मुद्दे को सुलझाना होगा. अपने बयान में फारुख अब्‍दुल्‍ला ने आरोप लगाया कि बीजेपी कश्‍मीर के मुद्दे पर देश के मुसलमान और हिंदुओं को बांटना चाहती है. आखिर में उन्‍होंने केंद्र सरकार से यह उम्‍मीद जाहिर करते हुए कहा कि उन्‍हें उम्‍मीद है केंद्र के चुनी गई नई सरकार उनके साथ न्‍याय करेगी. वहीं, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे आने के पहले अपने पिता मुफ्ती मोहम्‍मद सईद के साथ वाली एक फोटो ट्वीटर पर पोस्‍ट की है. घाटी में तीनों सीटें हारने के बाद महबूबा मुफ्ती अपनी मुख्‍य मुख्‍य प्रतिद्वंदी नेशनल कांग्रेस और बीजेपी से ज्‍यादा कांग्रेस से खफा दिखी. 

महबूबा की कांग्रेस से नई नाराजगी की वजह सीधी उनकी हार से जुड़ी हुई है. दरअसल, अनंतनाग संसदीय सीट पर नेशनल कांफ्रेंस के हसनैन मसूदी 40180 वोट पाकर चुनाव जीत गए. कांग्रेस के गुलाम अहमद मीर 33504 वोट पाकर दूसरे पायदान पर रहे. वहीं महबूबा मुफ्ती खुद 30524 वोट पाकर तीसरे पायदान पर रहीं. इन नतीजों को देखने के बाद पीडीपी को अंदाजा होने लगा है कि घाटी में कांग्रेस की फिर से उभरती ताकत भविष्‍य में उनके लिए बड़ी चुनौती बन सकती है. पीडीपी को इस बात की भी नाराजगी है कि जिस कांग्रेस के लिए उन्‍होंने ऊधमपुर, लद्दाख और जम्‍मू संसदीय सीट पर अपने उम्‍मीदवार खड़े नहीं किए, वहीं कांग्रेस उनके लिए घाटी में हार का सबस बन गई. इसी नाराजगी के चलते महबूबा मुफ्ती ने लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे आने के बाद सबसे पहले उन्‍होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि काश, कांग्रेस के पास भी ए‍क अमित शाह होता. 

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महबूबा मुफ्ती यहीं नहीं रुकीं, उन्‍होंने एक ट्वीट घाटी की सियासत से थोड़ा दूर था, लेकिन कांग्रेस पर करारा तंज था. दरअसल, उन्‍होंने कथित गौरक्षकों द्वारा एक विशेष समुदाय के लोगों को पीटने वाले ट्वीट को रिट्वीट किया. जिसमें लिखा था कि यह अत्‍याचार सिर्फ बीजेपी शासित राज्‍यों में नहीं बल्कि, मध्‍यप्रदेश की कांग्रेस शासित कमलनाथ सरकार में भी हो रहा है. इस पर महबूबा ने लिखा कि मैं आशा करती हूं कि मध्‍य प्रदेश सरकार इस पर कड़ी कार्रवाई करेगी. वहीं, इसी बीच बीजेपी के महासचिव और जम्‍मू-कश्‍मीर के प्रभारी की तरफ से एक ट्वीट हुआ. इस ट्वीट में बताया गया कि बीते 18 दिनों में सैन्‍य बलों ने जाकिर मूसा की तरह 18 आतंकियों को मार गिराया है. इस साल अब तक 89 आतंकियों का काम तमाम किया गया है. जिस समय हम सब चुनावों उसे व्‍यस्‍त थे, उसी दौरान हमारी बहादुर सैनिक घाटी को आतंकवाद मुक्‍त करने के अभियान में लगे हुए थे. 

यानी जम्‍मू और कश्‍मीर के तीनों राजनैतिक दलों ने भविष्‍य के लिए अपने सियासी इरादे साफ कर दिए हैं. इन्‍हीं सियासी इरादों की बुनियाद पर घाटी की विधानसभा सीटें हासिल करने के लिए तीनों दल अपनी तरफ से चुनावी विगुल बजाते दिख रहे हैं. अब देखना यह है भविष्‍य में होने वाले जम्‍मू और कश्‍मीर विधानसभा चुनाव में मतदाता किसकी तरफ खड़े होते हैं. 

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