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नई दिल्ली: भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों (12 Jyotirling) में से एक सोमनाथ मंदिर (Somnath Mandir) असंख्य भक्तों की आस्था और विश्वास का केंद्र है. गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव (Lord Chandra Dev) ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में है.
इस पवित्र और वैभवशाली मंदिर (Somnath Mandir History In Hindi) के उत्थान और पतन का सिलसिला सदियों तक चलता रहा. आजादी के बाद भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabh Bhai Patel) ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. इस मंदिर में भगवान भोले शंकर के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है.
सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक है. इस विशाल और प्रसिद्ध मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियो धर्मी (Radioactive) गुण हैं, जो पृथ्वी के ऊपर अपना संतुलन बनाए रखते हैं. इस मंदिर को न जाने कितनी बार तोड़ा गया लेकिन सनातन धर्म (Sanatan Dharm) के स्तंभ के रूप में यह मंदिर आज भी खड़ा है. जानिए आस्था और विश्वास के इस केंद्र सोमनाथ मंदिर के इतिहास (Somnath Temple History), बनावट और विशेषताओं के बारे में.
सोमनाथ मंदिर, गुजरात (Gujrat) प्रदेश के वेरावल (Veraval) बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित है. दुनियाभर में प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग है. इस ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत, स्कन्द पुराण और ऋग्वेद में वर्णित है.
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स्कंद पुराण (Skand Puran) के प्रभास खंड में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा (Somnath Temple Katha) बताई गई है. चंद्रमा ने दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह किया था लेकिन रोहिणी (Rohini) से उनको इतना प्रेम था कि अन्य 26 खुद को उपेक्षित और अपमानित महसूस करने लगी थीं. उन्होंने अपने पति से निराश होकर अपने पिता से शिकायत की. पुत्रियों की वेदना से पीड़ित दक्ष ने अपने दामाद चंद्रमा को दो बार समझाने का प्रयास किया परंतु चंद्रमा नहीं माने. प्रयास विफल हो जाने पर दक्ष ने चंद्रमा को ‘क्षयी’ होने का शाप दे दिया.
सभी देवता चंद्रमा के दुख से व्यथित होकर ब्रह्मा जी के पास जाकर उनसे श्राप के निवारण का उपाय पूछने लगे. ब्रह्मा जी ने प्रभास क्षेत्र में महामृत्युंजय के जाप से वृण्भध्वज शंकर की उपासना करना एक मात्र उपाय बताया. चंद्रमा के 6 मास तक पूजा करने पर शंकर जी प्रकट हुए और उन्होंने चंद्रमा को एक पक्ष में प्रतिदिन उनकी एक-एक कला नष्ट होने और दूसरे पक्ष में प्रतिदिन बढ़ने का वर दिया. देवताओं पर प्रसन्न होकर उस क्षेत्र की महिमा बढ़ाने और चंद्रमा (सोम) के यश के लिए सोमेश्वर नाम से शिवजी वहां अवस्थित हो गए. देवताओं ने उस स्थान पर सोमेश्वर कुंड (Someshwar Kund) की स्थापना की.
कहते हैं कि इस कुंड में स्नान कर सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा से सब पापों से निस्तार और मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है. सोमेश्वर से सोम अर्थात चंद्रमा, इसलिए यह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इस स्थान को ‘प्रभास पट्टन’ (Prabhas Pattan) के नाम से भी जाना जाता है.
सोमनाथ मंदिर की व्यवस्था और संचालन सोमनाथ ट्रस्ट (Somnath Trust) द्वारा की जाती है. सरकार ने इस ट्रस्ट को जमीन दी है. इस जमीन में बाग-बगीचे आदि लगाए हुए हैं. सोमनाथ मंदिर में दर्शन करने का समय पहले 10 सेकंड था. श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या और उनकी आस्था को समझते हुए अब उसे बढ़ाकर 5 मिनट कर दिया गया है. ज्यादा भीड़ बढ़ जाने पर सभा मंडल में और भी सुविधाएं बढ़ाई गई हैं. सभा मंडल में फोल्डिंग प्लेटफॉर्म भी लगवाए गए हैं.
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श्री सोमनाथ के इस विशाल और पवित्र स्थान पर मुसलमानों ने अनेक हमले किए. कहा जाता है कि यह मंदिर ईसा पूर्व में भी अवस्थित था. सबसे पहले इस मंदिर पर 725 ईस्वी में सिंध के सूबेदार अल जुनैद (Al-Junaid) ने हमला कर इसे तुड़वा दिया था और यहां से अनगिनत खजाना भी लूट ले गया था.
फिर राजा नागभट्ट (Raja Nagbhatt) ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण कराया था. सोमनाथ मंदिर को महमूद गजनवी ने 1024 ईस्वी में दूसरी बार तोड़ा. गजनवी ने न केवल शिवलिंग को ही तोड़ा, बल्कि हजारों बेकसूर लोगों को मौत के घाट भी उतार दिया था.
इतिहास गजनवी (Gaznavi) की इस बर्बरता को कभी नहीं भुला सकता है. कहा जाता है कि उस दिन गजनवी ने 18 करोड़ का खजाना लूटा था और फिर अपने शहर गजनी (अफगनिस्तान) के लिए कूच कर गया था. उसके बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज के द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था.
1093 ईस्वी में सिद्धराज जयसिंह (Raja Jay Singh) ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग किया. इस मंदिर के सौंदर्यीकरण में 1168 ईस्वी में सौराष्ट्र के राजा खंगार और विजयेश्वर कुमारपाल (Vijayeshwar Kumarpal) ने काफी सहयोग किया था.
इसके बाद 1297 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) के सेनापति नुसरत खान (Nusrat Khan) ने गुजरात पर हमला कर फिर से सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और मंदिर की अथाह धन-संपत्ति को लूटकर ले गया. फिर से हिन्दू राजाओं ने इसे बनवाया.
1395 ईस्वी में जब गुजरात में मुजफ्फरशाह का शासन था, तब मुजफ्फरशाह ने सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और मंदिर का सारा धन लूट ले गया. इसके बाद 1412 ईस्वी में मुजफ्फरशाह के बेटे अहमद शाह (Ahmad Shah) ने फिर से सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और लूटा.
भारत में जब मुगल वंश का शासन हुआ तो क्रूर शासक औरंगजेब (Aurangzeb) ने 1665 ईस्वी में सोमनाथ मंदिर को फिर से ध्वस्त किया. औरंगजेब ने पूजा-अर्चना करते हुए हजारों भक्तों को बेरहमी से मार दिया था.
इतना सब होने के बाद भी हिंदुओं की आस्था का अंत नहीं हुआ था. वे उस स्थान की पूजा करते रहे. औरंगजेब ने 1706 ईस्वी में दोबारा सोमनाथ को तोड़ा और हजारों लोगों का कत्लेआम किया. लेकिन फिर वीर शिवाजी महाराज के अदम्य साहस और अनेक युद्धों के बाद जब यह क्षेत्र मराठाओं के अधिकार में आया, तब 1783 ईस्वी में इंदौर की शिवभक्त रानी अहिल्याबाई (Ahilya Bai) ने मूल मंदिर से थोड़ा सा हटकर पूजा के लिए सोमनाथ महादेव का नया मंदिर बनवाया.
इस तरह से यह मंदिर कई बार ध्वस्त हुआ और फिर से खड़ा हुआ.
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भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बाद गुजरात के महान शेर सपूत सरदार वल्लभभाई पटेल ने महाराष्ट्र के काकासाहेब गाडगी (Kakasaheb Gadgi) की सलाह पर श्री सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया था. उनकी मृत्यु के बाद इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ था. भारतीय शिल्पकला की स्वर्गीय सुंदरता के इस बेजोड़ नमूने ने पूरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित किया.
भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी (Rajendra Prasad) के कर कमलों और वेदमूर्ति तर्कतीर्थ लक्ष्मण शास्त्री जोशीजी के वेदघोष द्वारा 11 मई 1951 को सुबह 6.46 बजे इस मंदिर में श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की प्राणप्रतिष्ठा बड़ी धूमधाम से की गई.
सोमनाथ मंदिर की अनूठी शिल्पकला एवं बनावट थी, जिसे आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया. सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण चालुक्य शैली में किया गया है. यह प्राचीन हिन्दू वास्तु कला का एक अनोखा नमूना है. पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित किया है. कैलाश महामेरु प्रासाद शैली में इस विशाल मंदिर को पूरी तरह से तैयार होने में कई वर्ष लग गए.
भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने 1 दिसंबर 1995 को सोमनाथ मंदिर को राष्ट्र को समर्पित किया. सोमनाथ मंदिर तीन प्रमुख भागों- गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप में विभाजित है. इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई 150 फीट है. शिखर पर अवस्थित कलश का वजन दस टन है. इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है.
इस विशाल मंदिर का क्षेत्रफल 10 किलोमीटर है. इस बड़े क्षेत्रफल में लगभग 42 मंदिर हैं, जिनमें पार्वती, लक्ष्मी, गंगा, सरस्वती और नंदी की मूर्तियां स्थापित हैं. शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर की बहुत सुंदर प्रतिमा अवस्थित है. मंदिर प्रांगण में गणेश जी की खूबसूरत भव्य प्रतिमा स्थापित है. उत्तर द्वार के बाहर अघोरलिंग की मूर्ति है. महाकाली और रानी अहिल्याबाई का भी बेहद सुंदर और विशाल मंदिर स्थापित है.
इसके अलावा गौरीकुंड नामक विशाल सरोवर भी भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देता है.
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गौरतलब है कि इस मंदिर (Interesting Things Related To Somnath Temple) की दक्षिण दिशा में समुद्र के किनारे बेहद आकर्षक खंभे बने हुए हैं, जिन्हें बाण स्तंभ (Ban Stambh) कहते हैं. इनके ऊपर एक तीर रखकर यह प्रदर्शित किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में भूमि का कोई भी हिस्सा मौजूद नहीं है.
इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर इसी स्थान पर छोड़ा था. सोमनाथ मंदिर से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर द्वारका नगरी है. जहां श्रीकृष्ण के दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं.
भगवान शिव के इस विशाल और प्रसिद्ध मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियो धर्मी (Radioactive) गुण हैं, जो पृथ्वी के ऊपर अपना संतुलन अच्छी तरह से बनाए रखते हैं. मान्यता है कि सोमनाथ मंदिर में शिवलिंग चुंबक के कारण हवा में स्थित था. यह दृष्य कितना कौतूहल जगाता होगा, यह आप सोच ही सकते हैं.
1. कहते हैं कि भारत यात्रा पर आए एक अरबी यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतांत में सोमनाथ मंदिर की भव्यता और संपन्नता का बखूबी वर्णन किया है.
2. मान्यता है कि आगरा में रखे देव द्वार सोमनाथ मंदिर के ही हैं, जिन्हें महमूद गजनवी यहां से उठाकर ले गया था.
3. इस मंदिर में रोज शाम को 7 बजे से 8 बजे तक एक घंटे का लाइट शो होता है. इस शो में हिंदुओं का इतिहास दिखाया जाता है.
4. सुरक्षा की दृष्टि से मुस्लिमों को इस मंदिर के जाने के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है.
5. सोमनाथ मंदिर में कार्तिक, चैत्र एवं भाद्र महीने में श्राद्ध करने का बहुत महत्व है. इसलिए इन तीन महीनों में यहां विशेष व्यवस्था की जाती है.
6. इससे लगी हुई गोमती नदी है. कहते हैं कि इस नदी का जल सूर्योदय के साथ बढ़ता है और सूर्यास्त होने पर घट जाता है.
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अगर आप भी अद्भुत सोमनाथ मंदिर (How To Reach Somnath Temple) के दर्शन के लिए जाने की योजना बना रहे हैं तो आप वहां पहुंचने के लिए कोई भी जरिया अपना सकते हैं. यहां हर तरह के यातायात के साधन उपलब्ध हैं.
अगर आप हवाई यात्रा के जरिए सोमनाथ पहुंचना चाहते हैं तो आपको वहां के नजदीकी एयरपोर्ट केशोड पर उतरना होगा. यहां से सोमनाथ मंदिर 55 किलोमीटर दूर है. यह घरेलू एयरपोर्ट देश के कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है.
सोमनाथ मंदिर से 7 किलोमीटर की दूरी पर वेरावल रेलवे स्टेशन (Veraval Junction) है. सरकार की तरफ से अहमदाबाद से वेरावल तक 'सोमनाथ एक्सप्रेस' के नाम से स्पेशल ट्रेन चलाई जाती है. वेरावल उतरने के बाद मंदिर जाने के लिए आप बस या कार की सुविधा ले सकते हैं.
आपको बात दें कि गुजरात राज्य का हर क्षेत्र सड़क के जरिए सोमनाथ मंदिर से जुड़ा हुआ है. यह जगह अहमदाबाद से 400 सौ किलोमीटर की दूरी पर है. जूनागढ़, भावनगर और पोरबंदर से यह जगह 85, 266, और 122 किलोमीटर की दूरी पर है. अगर आप मुंबई से भी सड़क के जरिए जाने की सोच रहे हैं तो सोमनाथ से मुंबई की दूरी 889 किलोमीटर है.
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