डियर जिंदगी : जब सुबह तुम उठना !
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डियर जिंदगी : जब सुबह तुम उठना !

कुछ दिन पहले मैं एक बुजुर्ग ट्रैफिक पुलिस अफसर के साथ सड़क पर लोगों के व्‍यवहार के बारे में बातें कर रहा था. उन्‍होंने कुछ मजेदार कहानियां बताईं, जो सुबह उठने के तरीके की खोज का असल कारण हैं.

डियर जिंदगी : जब सुबह तुम उठना !

सुबह उठने का भी कोई सर्वोत्‍तम तरीका होता है! हर नींद मौलिक है, तो तरीका भी जुदा होगा. ऐसे में कोई एक तरीका भला कैसे सबसे अच्‍छा हो सकता है. लेकिन ऐसा है. इस तरीके पर पूरी एक किताब है. नाम है, 'मेरा दागिस्‍तान'. कहने को यह गद्य है लेकिन असल में यह रसूल हमजातोव की जीवन, प्रेम से भरी कविता है, जो जिंदगी के लगभग हर हिस्‍से को छूते हुए गुजरती है.  इसकी भूमिका में ही हमजातोव लिखते हैं ,

'जब आँख खुलती है,
तो बिस्‍तर से ऐसे लपककर मत उठो,
मानो तुम्‍हें किसी ने डंक मार दिया हो,
तुमने जो कुछ सपने में देखा है,
पहले उस पर विचार कर लो.'

सुबह उठना एक रूटीन काम है. लेकिन कैसे इसे उस तरह किया जाए जो जिंदगी को 'ताज़ा', खुशनुमा, स्‍वादी बनाए रखने में मददगार हो. अतीत की परछाई से मुक्‍त होकर सुबह उठना एक कला है. जीवनशैली है. 'सुबह उठें, तो थोड़ा इत्‍मीनान से. रात की दुविधा वहीं छोड़कर. अतीत की परछाई से मुक्‍त होकर. यह कला है, जिंदगी के स्‍वाद के लिए जरूरी जीवनशैली.' हम कैसे उठते हैं, सुबह. अधिकतर ऐसे ही, जिसमें रात के तनाव की गहरी छाया होती है. ऐसे, जिसमें कल की छाया होती है. वह सुबह जिसमें रात की तकरार बाकी रह जाती है, नई खुशबू बिखरने की अपनी क्षमता कम कर सकती है.

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इसलिए सुबह की सांस में अतीत की छाया एकदम नहीं होनी चाहिए. सुबह ऐसी हो, मानों किसी बच्‍चे ने जन्‍म लिया है. एकदम अभी. ताजा-ताजा. जिस पर अतीत की कोई छाया नहीं. मन में कोई क्‍लेश, दुख संग्रहित नहीं है. वह अपने साथ कुछ लेकर आया ही नहीं. ठीक वैसे ही सुबह हमें उठना चाहिए.

कुछ दिन पहले मैं एक बुजुर्ग ट्रैफिक पुलिस अफसर के साथ सड़क पर लोगों के व्‍यवहार के बारे में बातें कर रहा था. उन्‍होंने कुछ मजेदार कहानियां बताईं, जो सुबह उठने के तरीके की खोज का असल कारण हैं. इनका कहना है कि अब तक वह कोई हजार के आसपास ऐसे मामलों का हिस्‍सा रहे हैं, जहां दुर्घटना के बाद उनसे बातचीत में लोगों ने इसका सही कारण बताया. लोग जिनमें महिला, किशोर, युवा और यहां तक कि बच्‍चे भी शामिल हैं, बताते हैं कि वह किसी न किसी तनाव, उधेड़बुन, कल रात को जो कुछ हुआ उससे उबर न पाने को हादसों का जिम्‍मेदार मानते हैं.

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इसे सरलता से ऐसे समझिए. कल रात एक कामकाजी पति-पत्‍नी का विवाद हुआ. अचानक यूं ही. किसी बात पर बात करते-करते मामला बहस तक पहुंच गया. बहस में जो टिप्‍पणियां सामने आईं, उसने अतीत के सोए विवाद को अनजाने में छू लिया. दोनों में से कोई हार मानने को तैयार नहीं. बच्‍चे छोटे हैं, लेकिन इतने नहीं कि मामला न समझ सकें. उन्‍होंने भी कोशिश की. लेकिन बात बनी नहीं.

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लेकिन अगले दिन पति को सुबह-सुबह ही किसी दूसरे शहर के सफर पर निकलना था. उनका गुस्‍सा रात की नींद भी न छेल पाई. सुबह बेचारी कार पर वह उतर गया. वह कुछ गुस्‍से, अतीत की छाया से बिना मुक्‍त हुए ही सड़क पर आ गए थे. गनीमत रही कि उनकी जान बच गई. सारी चोट कार को ही आई. मामले की पुलिस जांच के दौरान इस युवा ने बेहद ईमानदारी, विनम्रता से यह बात इन पुलिस अफसर से बताई. अफसर ने भी इस मामले को इसी दष्टिकोण से देखा. कानूनी मुश्किलों के बीच से युवा को कोमल भावना का सहारा मिला.

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जब से यह किस्‍सा मुझे पता चला, तभी से मैं इसे आपसे साझा करना चाह रहा था. कल 'मेरा दागिस्‍तान' को पलटते हुए जब अबूतालिब को पढ़ा 'अगर तुम अतीत पर पिस्‍तौल से गोली चलाओगे, तो भविष्‍य तुम पर तोप से गोले बरसाएगा' तो लगा कि सुबह का उठना,  'डियर जिंदगी' का हिस्‍सा होना चाहिए. अतीत मुक्‍त सुबह की थ्‍योरी कैसी लगी,बताइएगा. और यह भी कि आप पर इसका असर कैसा रहा?

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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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