डियर जिंदगी: सबको बदलने की जिद!
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डियर जिंदगी: सबको बदलने की जिद!

किसी से मिलते ही हम उसे ‘जैसा है’, उसकी जगह ‘जैसा चाहिए’ बनाने में लग जाते हैं. बदलने की जिद में हम खुद को भुलाने लगते हैं. जो जैसा है, उसे उसी भाव से ग्रहण करना, रिश्‍तों को तनाव से बचाने में ‘टॉनिक’ का काम करता है. 

डियर जिंदगी: सबको बदलने की जिद!

दूसरों को अक्‍सर हम अपने जैसा देखना चाहते हैं . वैसा देखना चाहते हैं , जैसा हमें प्रिय है. अगर वह हमारी सोच के पैमाने जैसे हैं, तो ठीक, नहीं तो हम चाहते हैं कि वह हमारी सोच जैसे हो जाएं. रिश्‍तों में इस सोच का बढ़ना, तनाव, निराशा, हताशा की ओर धकेल रहा है. 

हम दूसरों को कैसे देखते हैं . इससे हमारी जिंदगी में बहुत कुछ तय होता है. मैं अपने निजी अनुभव से इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि ऐसा करने से चीजों, व्‍यक्तियों के बारे में मेरा नजरिया ही बदल गया. अब मैं कहीं अधिक लोगों से प्रेम, स्‍नेह और आत्‍मीयता रखता हूं. जबकि एक दशक पहले मैं भी शायद लोगों को अपने चश्‍मे से देखने की कोशिश करता था.

असल में किसी से मिलते ही हम उसके बारे में धारणा बनाना शुरू कर देते हैं . ‘जो जैसा है, उसे वैसे’ स्‍वीकार करने की जगह हम उसे ‘अपने’ अनुसार बनाना चाहते हैं. किसी से मिलते ही हम उसे ‘जैसा है’, उसकी जगह ‘जैसा चाहिए’ बनाने में लग जाते हैं. बदलने की जिद में हम खुद को भुलाने लगते हैं. जो जैसा है, उसे उसी भाव से ग्रहण करना रिश्‍तों को तनाव से बचाने में ‘टॉनिक’ का काम करता है. 

हम खुद को कितना ठोस रखते हैं . कहते भी हैं, मुझे बदलना आसान नहीं. मैं जैसा हूं, वैसा हूं! ऐसा इसलिए, क्‍योंकि हम आईने में अपनी छवि पर मुग्‍ध हैं. कितना लाजवाब हूं मैं. यह भाव इस ‘सेल्‍फी’ समय में बहुत तीव्रता से बढ़ रहा है. इतना कि यह हमें हमारे बारे में सही विचार से हर दिन दूर धकेलता जा रहा है.

डियर जिंदगी: कड़वे पल को संभालना!

अगर कहीं कोई ऐसा मिल जाए , जो हमें कुछ बताना, सिखाना चाहे, तो उसके साथ निभना बड़ा मुश्किल है, क्‍योंकि ‘सेल्‍फी’ कैमरे अब मुख्‍य कैमरे से कहीं अधिक ताकतवर, गहरी तस्‍वीर खींचने लगे हैं. इसलिए, सब तरफ से हमारी मोहक छवि उभरती है. धीरे -धीरे ‘सेल्‍फी’ कैमरे हर किसी की जिंदगी में शामिल हो गए. इसका असर यह हुआ कि हर कोई अपनी अदा पर फि‍दा है. हम खुद को नहीं बदलना चाहते, लेकिन दूसरों को बदलने की जिद पर अड़े हैं. 

डियर जिंदगी: मित्रता की नई ‘महफिल’!

यह हमारी , हमारे अपनों के विरुद्ध एक अजीब सी जंग है. मैं बदलूंगा नहीं, लेकिन मैं तुम्‍हें बदलना चाहता हूं. जिंदगी में तनाव में कैसे न हो, जब रिश्‍तों में ज़रा-ज़रा से मनमुटाव जिंदगी भर के बैर में बदल रहे हैं. मप्र के इंदौर से रिश्‍तों में आ रहे अविश्‍वास की एक खतरनाक तस्‍वीर सामने आई है . हम एक-दूसरे का भरोसा बेहद तेजी से खोते जा रहे हैं. दूसरों को छोड़‍िए पति-पत्‍नी के बीच मतभेद, अनबन गहरी निराशा, घुटन में बदलता जा रहा है. 

डियर जिंदगी: आदतों की गुलामी!

मप्र के प्रमुख अखबार ‘दैनिक भास्‍कर’ के अनुसार इंदौर की पॉश कॉलोनी शालीमार पाम्‍स में रहने वाले डिप्‍टी कमिश्‍नर कमर्शियल टैक्‍स दीपक कुमार श्रीवास्‍तव की पत्‍नी रंजना ने आत्‍महत्‍या कर ली. इससे पहले उन्‍होंने पति को फोन करके कहा कि उनके जीने की इच्‍छा खत्‍म हो चुकी है. वह मरने जा रही हैं. पति ने बहुत समझाने की कोशिश की, अपने आने तक रुकने को कहा. लेकिन पत्‍नी ने फोन काटने के बाद कमरे में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. पति ने अपने चौदह बरस के बेटे को भी फोन लगाया, लेकिन वह वीडियो गेम में इतना व्‍यस्‍त था कि उसने कॉल रिसीव नहीं किया. दीपक ने पड़ोसियों को भी फोन किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. 
बताया जा रहा है कि तीन दिन पहले पति -पत्‍नी में किसी बात पर अनबन हुई थी. उसके बाद से उनकी बातचीत बंद थी. 

इस पर कोई राय बनाने से पहले थोड़ा पीछे जाइए . हमने देखा है कि हमारे माता-पिता के बीच इस तरह की अनबन कोई नई बात नहीं थी. लेकिन ऐसी अनबन की  कठोर सजा खुद, जिनको अब तक प्रेम किया, उनको देना जीवन के सिद्धांत के विरुद्ध है. 

डियर जिंदगी: बच्‍चों के बिना घर! 
  
पति -पत्‍नी समेत किसी भी रिश्‍ते में असहमति, अनबन सामान्‍य घटना है. कई बार कुछ ऐसा घट जाता है, जो हमारे दिल को निरंतर कचोटता रहता है. उससे हम बेचैन होते रहते हैं. किसी से इस डर से कहते नहीं कि वह क्‍या समझेगा! क्‍या कहेगा. लेकिन इसके मायने यह भी नहीं कि हम दूसरे की बात की सजा खुद को दें. 

हम किसी को नहीं बदल सकते . दूसरों को बदलना संभव ही नहीं. हां, कुछ परिवर्तन संभव है, लेकिन उसके लिए तो जिंदा रहना जरूरी है. संवाद, प्रेम, स्‍नेह जरूरी है, आत्‍महत्‍या नहीं. यह मनुष्‍यता के विरुद्ध अपराध है. 

डियर जिंदगी: प्रेम दृष्टिकोण है…

अपने नजदीक कुछ ऐसे लोग जरूर रखें , जो आपकी बात हमेशा सुनने को तैयार हों. जिन्‍हें आप स्‍वयं स्‍नेह कर सकें. इनसे कुछ मत छुपाइए. य‍ही आपकी जिंदगी के असली 'एंटी वायरस' हैं. स्‍मार्टफोन, लैपटॉप को वायरस अटैक से बचाने के लिए एंटी वायरस चाहिए. वैसे ही जीवन को बचाने के लिए 'एंटी वायरस' चाहिए! कौन हैं, आपके 'एंटी वायरस'. अगर नहीं हैं, तो जल्‍द इनकी पहचान कर लीजिए.  और हां , आपके प्रिय कॉलम ‘डियर जिंदगी’ से संपर्क में कुछ बदलाव किया जा रहा है. इसे अच्‍छी तरह नोट कर लें, संवाद करते समय इनका ही उपयोग करें.

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(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)

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