डिप्रेशन को हराने के लिए बहुत जरूरी है इसकी ताकत को समझना
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डिप्रेशन को हराने के लिए बहुत जरूरी है इसकी ताकत को समझना

1917 में मशहूर ऑस्ट्रेलियाई न्यूरोलॉजिस्ट सिग्मंड फ्रायड ने शोक और उदासी पर विस्तार से लिखा. उन्होंने उदासी की वजह हानि (जैसे किसी की मौत) और हार (लक्ष्य को न पाना) को बताया.

डिप्रेशन को हराने के लिए बहुत जरूरी है इसकी ताकत को समझना

डिप्रेशन...ये शब्द सुनते ही हर इंसान के दिमाग में अलग-अलग तरह के विचार आते हैं. कोई कहता है कि डिप्रेशन जैसी कोई चीज नहीं होती, सब मन का भ्रम है, और कोई कहता है कि डिप्रेशन एक गंभीर समस्या है और समय रहते इसका इलाज कराना बहुत जरूरी है. अगर इसका इलाज नहीं कराया गया तो इंसान खुद को या किसी और को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है. 

गौरतलब है कि हालही में बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत इस दुनिया में नहीं रहे. उनकी मौत की वजह सुसाइड करना बताया जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा है कि वह पिछले कई महीनों से डिप्रेशन के मरीज थे और बीते कुछ महीनों से वह अपनी दवाइयां नहीं खा रहे थे. इस वाकये के साथ ही यह बहस भी तेज हो गई है क्या सच में डिप्रेशन एक बहुत गंभीर बीमारी है या फिर यह केवल मन का भ्रम है जो इंसान को नकारात्मक बना देता है. इस मुद्दे को लेकर लोगों की राय अलग-अलग जरूर है लेकिन आज मैं आपको सच से रूबरू कराना चाहता हूं.

डिप्रेशन का इतिहास और राक्षसों से कनेक्शन

सबसे पहले तो हमें ये समझना होगा कि आखिर डिप्रेशन है क्या, और इसकी शुरुआत कब से हुई. तमाम रिपोर्टों को पढ़ने के बाद मैं ये कह सकता हूं कि किसी एक व्यक्ति को ये क्रेडिट नहीं दिया जा सकता कि उसने डिप्रेशन की खोज की. ये महान विचारकों की एक पूरी फौज है, जिसने समय-समय पर डिप्रेशन को अच्छी तरह से दुनिया को समझाया.

जिसे आज हम डिप्रेशन कहते हैं, इसकी शुरुआत मेसोपोटामिया में दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व हुई थी. इस काल में शारीरिक स्थिति की जगह आध्यात्मिक रूप में डिप्रेशन की चर्चा की गई थी. बाकी मानसिक बीमारियों की तरह, इस बीमारी को राक्षसी कब्जे वाला माना जाता था, इसलिए इसका इलाज डॉक्टरों की बजाय पुजारियों और अलग-अलग धर्मों के मसीहाओं के द्वारा किया जाता था. 

राक्षसों और बुरी आत्माओं के कारण मनोस्थिति में बदलाव के कई संस्कृतियों में प्रमाण हैं. इसमें प्राचीन यूनानी, रोमन, बेबीलोनियन, चीनी और मिस्रवासी शामिल हैं. उस दौरान डिप्रेशन को दूर करने के लिए या फिर यूं कहें कि राक्षसों को भगाने की कोशिश में..मारपीट, शारीरिक प्रताड़ना और भूखा रखा जाने, जैसे तरीकों का प्रयोग किया जाता था. 

लेकिन इस प्राचीन दौर में भी, जब डिप्रेशन को केवल एक राक्षसी साया कहकर परिभाषित किया जाता था, तब भी कुछ डॉक्टर्स ऐसे थे जो ये मानते थे कि डिप्रेशन एक बायोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल बीमारी है.

यूनानी और रोमन डॉक्टर्स उस दौरान मरीजों का इलाज कई तरीके से करते थे, जिसमें जिम्नास्टिक, मसाज, खान-पान, संगीत, नहाना-धोना, अफीम और गधे का दूध का इस्तेमाल किया जाता था. 

वहीं डिप्रेशन के शारीरिक कारणों को खोजने का श्रेय हिप्पोक्रेट्स नाम के एक यूनानी डॉक्टर को जाता है. इस डॉक्टर का कहना था कि शरीर में चार तरह के असंतुलन की वजह से डिप्रेशन होता है. इस असंतुलन को उस दौर में ह्यूमर कहा गया और इन असंतुलन को नाम दिया गया..येलो बाइल, ब्लैक बाइल, फ्लैग्म और ब्लड. इस दौरान विशेष रूप से ये माना गया कि ब्लैक बाइल की अधिकता की वजह से ही उदासी आती है और इस उदासी का इलाज नहाना-धोना,व्यायाम और खान-पान के जरिए होता था. 

अभी जो युग चल रहा है, इसके पहले तक पढ़े-लिखे रोमन्स में ये धारणा थी कि डिप्रेशन और बाकी की मानसिक बीमारियां केवल राक्षसों और देवताओं के क्रोध की वजह से होती हैं. वहीं एक रोमन दार्शनिक और नेता सिसरो यह मानते थे कि उदासी में क्रोध, भय और शोक जैसे मनोवैज्ञानिक कारण थे. 
 
साल 1621 में रॉबर्ट बर्टन ने एक किताब पब्लिश की, जिसका नाम था 'Anatomy of Melancholy'. इस किताब में उन्होंने उदासी की कई वजहें बताई थीं. जिसमें डिप्रेशन के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण के बारे में विस्तार से चर्चा की गई थी. इन कारणों में गरीबी, डर, अकेलापन जैसी तमाम चीजें शामिल थीं जिनका इलाज खान-पान, व्यायाम, यात्रा, कब्ज का इलाज, रक्तपात, जड़ी बूटी, और संगीत चिकित्सा द्वारा करना बताया गया था. 

इसके बाद समय आया 18वीं और 19वीं शताब्दी का. अब डिप्रेशन को स्वभाव में कमजोरी के तौर पर परिभाषित किया गया, जिसे बदला नहीं जा सकता. इस मान्यता का कहना ये था कि इस स्वभाव के लोगों को समाज से दूर कर देना चाहिए या उन्हें किसी जगह बंद कर देना चाहिए. वहीं डॉक्टर्स इस समय में ये मानने लगे थे कि इस मनोस्थिति का आधार कहीं न कहीं क्रोध है. 

इस समय में लोगों का इलाज करने के लिए अनोखी विधि अपनाई जाती थी, जिसमें ज्यादा समय तक मरीज को पानी में डुबोकर रखना और पेट की सफाई (कब्ज मिटाना) जैसे प्रयोग किए जाते थे. ये इलेक्ट्रोशॉक थेरेपी का शुरुआती समय था, जिसमें कई बार मरीज को इलेक्ट्रोशॉक भी दिया जाता था. इसके अलावा, घुड़सवारी, खान-पान में बदलाव, एनीमा और उल्टी कराने जैसी तमाम विधियों का प्रयोग डिप्रेशन को दूर करने में किया जाता था.

1895 में, जर्मन मनोचिकित्सक एमिल क्रेपेलिन मैनिक डिप्रेशन को पहचानने वाले पहले शख्स थे. इसके बाद 1917 में मशहूर ऑस्ट्रेलियाई न्यूरोलॉजिस्ट सिग्मंड फ्रायड ने शोक और उदासी पर विस्तार से लिखा. उन्होंने उदासी की वजह हानि (जैसे किसी की मौत) और हार (लक्ष्य को न पाना) को बताया. फ्रायड का मानना था कि हानि की हालत में इंसान क्रोध, आत्म घृणा और खुद के विनाश जैसी बातों के बारे में सोचता है. उनका मानना था कि मनोविश्लेषण के जरिए इसका इलाज किया जा सकता है. वहीं इस दौर में बाकी के डॉक्टर्स डिप्रेशन को एक ब्रेन डिसऑर्डर मानते थे. 

डिप्रेशन को लेकर क्या हैं आज के हालात

पहले के लोग तो मानते ही नहीं थे कि डिप्रेशन कोई बीमारी है, वह तो इसे राक्षसों और देवताओं के क्रोध का परिणाम मानते थे. लेकिन अमेरिका में 1970 में पहली बार मेजर डिप्रेशिव डिसऑर्डर (MDD) टर्म का प्रयोग किया गया. ये स्थिति 1980 में आधिकारिक स्तर पर Diagnostic and Statistical Manual-3 का हिस्सा बनी. आज डॉक्टर्स का मानना है कि डिप्रेशन कई वजहों से होता है जिसके बायोलॉजिकल, साइकोलॉजिकल और सोशल फैक्टर्स हैं. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की जनवरी 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक आज दुनियाभर में हर उम्र के 26.4 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन से पीड़ित हैं. जिसमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है. डिप्रेशन की वजह से सुसाइड करने वाले मरीजों की संख्या भी बहुत है. लेकिन इस बीमारी से घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि मॉडरेट और सेवेर, दोनों ही तरह के डिप्रेशन का इलाज साइकोलॉजी और दवाइयों के जरिए किया जा सकता है. 

हालांकि डिप्रेशन को हल्के में नहीं लिया जा सकता. अगर इसका सही समय पर इलाज न हो तो ये एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन सकता है. इससे पीड़ित शख्स चाहें जहां (घर, स्कूल, ऑफिस, पर्यटन स्थल) भी रहे, धीरे-धीरे खालीपन का अनुभव करने लगता है और जैसे-जैसे ये खालीपन बढ़ता है, इस रोग के दुष्परिणाम भी सामने आने लगते हैं. जब ये रोग अपने शिखर पर पहुंच जाता है तो व्यक्ति सुसाइड कर लेता है. क्योंकि पीड़ित शख्स के अंदर का खालीपन इतना बढ़ जाता है कि उसे सुसाइड करना ही एक मात्र विकल्प दिखाई देता है. 

इस बीमारी की गंभीरता को आप इस बात से समझ सकते हैं कि हर साल दुनिया में करीब 8 लाख लोग डिप्रेशन की वजह से सुसाइड कर लेते हैं. 15 से 29 साल की उम्र के लोगों की मौत की दूसरी सबसे बड़ी वजह डिप्रेशन है.  ये WHO का ताजा आंकड़ा है.  

आज के दौर में डिप्रेशन का इलाज संभव है लेकिन WHO के आंकड़े बताते हैं कि 76 फीसदी से 86 फीसदी लोग, जो गरीब या मध्यम इकोनॉमी वाले देश में रहते हैं, डिप्रेशन का इलाज नहीं कराते या गलत इलाज कराते हैं. इसका सीधा मतलब है कि डिप्रेशन के मरीजों तक सही इलाज नहीं पहुंच रहा है. डिप्रेशन का इलाज न पहुंचने का एक कारण ये भी है, कि कई जगह रिसोर्स की कमी है तो कई जगह ट्रेन्ड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स की. अधिकतर मामलों में तो रोगी को पता ही नहीं लगता कि वह डिप्रेशन में है और कई बार पता होने के बाद भी वह मेडिकल ट्रीटमेंट लेने से बचता है, जिसका परिणाम ये होता है कि वह गंभीर डिप्रेशन का शिकार हो जाता है और आखिर में सुसाइड कर लेता है. 

क्या है डिप्रेशन की पहचान

ज्यादातर मामलों में लोग उदासी को ही डिप्रेशन समझ लेते हैं. आपने कई लोगों को ये कहते सुना होगा कि वो आज डिप्रेश फील कर रहे हैं या उन्हें डिप्रेशन हो रहा है. लेकिन उदासी और डिप्रेशन में बहुत अंतर है. 

ये पहचान करना बहुत आसान है कि आप डिप्रेशन में हैं या आपको केवल कुछ देर के लिए उदासी ने पकड़ लिया है. आप ताजा मामला ही ले लीजिए. सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड केस की खबर सुनने के बाद आपने कई लोगों को ये कहते सुना होगा कि वो डिप्रेश फील कर रहे हैं और उन्हें डिप्रेशन जैसा महसूस हो रहा है, लेकिन यही लोग घटना के 2 दिन बाद बेहद नॉर्मल दिखे और अपने सामान्य काम-काज को आराम से करते दिखे. 

इसका सीधा सा मतलब है कि ये लोग कुछ देर के लिए उदास हो गए थे. ये उदासी दैनिक जीवन में किसी भी घटना की वजह से हो सकती है, जैसे कोई बुरी खबर को सुनने के बाद, कोई मनचाहा काम ना होने पर. लेकिन ये डिप्रेशन नहीं है. तो आखिर डिप्रेशन क्या है? 

डिप्रेशन हमारे मूड के उतार-चढ़ाव से संबंधित है जिसमें रोगी स्थायी तौर पर चीजों को अपने दिमाग में लेकर बैठ जाता है. आप और हम भी उदास होते हैं लेकिन अगर कोई शख्स हंसने वाले मौकों पर भी उदास ही रहे, या फिर उसके हंसने से भी आपको लगे कि उसके चेहरे पर उदासी के भाव ही हैं..तो जरूर आपको चौकन्ना हो जाना चाहिए. ये डिप्रेशन हो सकता है. इसका मुख्य लक्षण है स्थायी तौर पर दुखी, परेशान और चिड़चिड़ा रहना और किसी भी काम या घटना में मन नहीं लगना.

आज के व्यस्त माहौल में आप किसी के चेहरे को देखकर गारंटी से ये नहीं कह सकते कि सामने वाला शख्स डिप्रेशन में है क्योंकि इस रोग से पीड़ित शख्स कई बार बाहर की दुनिया के लिए एक हंसता हुए चेहरा लिए फिरता है लेकिन अंदर ही अंदर घुटता रहता है. नींद में कमी और चिड़चिड़ापन उसकी जिंदगी को तबाही की ओर ले जाने लगता है. डिप्रेशन की एक और मुख्य वजह होती है कि डिप्रेशन का मरीज अपनी बातों को किसी से कह नहीं पाता. वह चाहकर भी अपने मन की पीड़ा को शेयर नहीं कर पाता और उसका लोगों से विश्वास खत्म हो जाता है. 

डिप्रेशन के कुछ और भी लक्षण हैं, जैसे स्थायी उदासी, बहुत गुस्सा आना, अकेलापन, खुशी से दूर-दूर तक कोई वास्ता न होना, डेली रुटीन प्रभावित होना, लोगों से बात करने से बचना, खुद से नफरत का भाव, सिर में भारीपन और कुछ भी अच्छा न लगना. 

कुछ लोग एंग्जाइटी(डर या घबराहट) को डिप्रेशन समझ लेते हैं. एंग्जाइटी भी एक मानसिक बीमारी है और कई बार डिप्रेशन के मरीज में एंग्जाइटी की समस्या भी होती है लेकिन डिप्रेशन एक अलग रोग है. क्योंकि एंग्जाइटी में इंसान ये महसूस करता है कि कोई उसकी मदद करने वाला नहीं है और वो हेल्पलेस है, ऐसे में वो चीजों का सामना कैसे करें. वहीं डिप्रेशन में इंसान अपने जीवन के प्रति होपलेस हो जाता है और जीवन के प्रति आशा ही खो देता है. ये भी पाया गया है कि कई बार एंग्जाइटी के मरीज को डिप्रेशन हो सकता है और डिप्रेशन के मरीज को एंग्जाइटी. 

डिप्रेशन को तीन कैटेगरी में डिवाइड किया गया है.  माइल्ड ( Mild), मॉडरेट (Moderate) और  सेवेर (Severe). आज के दौर की बात करें तो इंसान मुख्य रूप से पैसा, रिलेशनशिप में समस्याएं और अपने लक्ष्य को न पाने की वजह से डिप्रेश होता है. इसके अलावा शिक्षा, पारिवारिक कलेश, मां-पिता की उम्मीदों पर फेल होना, हॉर्मोनल बदलाव, लोन बढ़ना, घाटा होना जैसे तमाम कारण भी हो सकते हैं.  

डिप्रेशन का इलाज क्या है 

आज के दौर में बहुत कम ऐसे रोग हैं, जिनका इलाज संभव नहीं है. वहीं डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी है, जिसमें अगर समय रहते आपने ट्रीटमेंट लिया तो आप पूरी तरह से सही हो सकते हैं. यह कोई लाइलाज बीमारी नहीं है. लेकिन हमें इस बात का खास ध्यान रखने की जरूरत है कि जिस शख्स को डिप्रेशन है या डिप्रेशन फील हो रहा है,  वो एक बार डॉक्टर के पास जाए और उनसे सलाह ले. 

बिना डॉक्टर के पास जाए अगर आप सोचते हैं कि घरेलू उपायों से डिप्रेशन का इलाज कर लेंगे तो आप गलती कर रहे हैं. क्योंकि हो सकता है कि घरेलू इलाज कारगर हों लेकिन आप ये नहीं जानते कि रोगी डिप्रेशन की किस स्टेज पर है. अगर रोगी मॉडरेट या सेवेर स्टेज पर है तो उसे डॉक्टर के पास ले जाना बहुत जरूरी है.  

इस दौरान रोगी को साइकोलॉजिकल या क्लीनिकल ट्रीटमेंट दिया जा सकता है. ये रोगी की स्थिति पर निर्भर करता है कि वो केवल काउंसलिंग से ही सही हो जाएगा, या उसे दवाइयां खानी पड़ेंगी. 

इसके अलावा आपको खुद भी ये संकल्प लेना होगा कि मैं डिप्रेशन को हराकर ही रहूंगा और इसे हराने के लिए मुझे जो भी करना पड़ेगा, वो मैं करूंगा. क्योंकि ये एक मानसिक रोग है तो आप इसे अपने संकल्प के जरिए भी हरा सकते हैं. इसके लिए आप कुछ तरीकों को अपना सकते हैं. जैसे- कम से कम 8 घंटे की नींद लें, कुछ देर धूप में बैठें, व्यायाम करें और साथ ही योगा और मेडीटेशन को भी अपनी जिंदगी में जगह दें. मेडीटेशन करने से मन बहुत शांत होता है और दिमाग की उलझन भी कम होती है. इसके अलावा दोस्तों से बात करें, उन्हें अपने दिल की बात को बताएं, लोगों को अपनी जिंदगी में शामिल करें और ज्यादा से ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी करें.  

(लेखक: ऋतुराज त्रिपाठी Zee News डिजिटल में सीनियर सब एडिटर हैं)

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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