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नई दिल्ली: कुर्सी पाने के लिए नेता अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं लेकिन जब कुर्सी मिल जाती है तो जनता से काफी कुछ छीन भी लेते हैं. फिर चाहे बात जनता के लिए फायदेमंद साबित होने वाली योजनाओं की हो या सुविधाओं की. यह सब नेता और पार्टियां एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए करती हैं इसलिए सरकार बदलते ही योजनाएं भी बदल जाती हैं. आज हम यूपी का एक ऐसा ही वाकया जानते हैं, जिसने पूरे के पूरे एक शहर को तरक्की करने से रोक दिया.
बात है 1989 की. जब विधानसभा चुनाव में जनता दल की जीत के बाद अजित सिंह चौधरी को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की गई. लेकिन इस घोषणा ने मुलायम सिंह यादव को नाराज कर दिया. एक तरफ लखनऊ में अजित सिंह की ताजपोशी की तैयारियां चल रही थीं दूसरी तरफ मुलायम सिंह यादव ने डिप्टी-सीएम बनने का ऑफर ठुकरा सीएम बनाए जाने की मांग कर दी. तब प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने सीएम पद का फैसला लोकतांत्रिक तरीके से कराने का निर्णय लिया. गुप्त मतदान हुआ और आखिरकार 5 दिसंबर 1989 को मुलायम ने पहली बार सीएम पद की शपथ ली.
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वीपी सिंह जब से सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे थे वे फतेहपुर के लोगों की बेहतरी के लिए काफी कोशिशें कर रहे थे. जब वे प्रधानमंत्री बन गए तो कुछ ही दिनों बाद जिले के लिए कई योजनाओं को मंजूरी मिल गई. लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों से मिलकर बनी जनता दल में दरार आने लगी और अस्थिरता का माहौल बन गया. मुलायम ने समर्थन वापस ले लिया और केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई. सरकार गिरने का सीधा असर उन योजनाओं पर पड़ा जिन्हें फतेहपुर जिले के लिए मंजूर किया गया था.
वीपी सिंह ने देश को 8 हैंडलूम सेंटर की सौगात दी थी, जिसमें से एक फतेहपुर में बनना था. लेकिन सरकार गिरते ही तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने इस हैंडलूम सेंटर को बनारस के लिए प्रस्तावित कर दिया. आज भी बनारस में यह सेंटर है. लेकिन फतेहपुर के युवाओं से रोजगार पाने का मौका छिन गया.
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बात सिर्फ हैंडलूम सेंटर की नहीं है बल्कि कई ऐसी योजनाओं की है जिन्हें वीपी सिंह के प्रधानमंत्री रहते स्वीकृति मिली थी लेकिन बाद में राजनीतिक उठापटक के चलते ठंडे बस्ते में चली गईं. यही वजह है कि आज भी फतेहपुर के लोग मुलायम सिंह को कोसते हैं जिनके कारण ये योजनाएं बंद हो गईं और इस शहर के पास से तरक्की करने का एक बड़ा मौका हाथ से चला गया.
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