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नई दिल्ली. देश की शीर्ष अदालत ने कहा है कि सुसाइड करने वालों को कमजोर दिल का नहीं मानना चाहिए. हर एक इंसान बिगड़े मानसिक स्वास्थ्य से अपनी तरह से लड़ता है, सभी को एक तराजू में तौलकर उनकी परेशानियों को कम नहीं मानना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ये बात आत्महत्या के लिए उकसाने में एफआईआर खारिज करने के कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कही.
जानकारी के अनुसार हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोपी सरकारी अधिकारी पर दर्ज FIR यह कहते हुए खारिज कर दी कि 'मृतक ड्राइवर था. वो सड़क हादसों में लोगों को मरते, अपाहिज होते देखता था. उसका कमजोर दिल नहीं था. दोस्तों-रिश्तेदारों से बातचीत करता था. ये सब सामान्य व्यक्ति के व्यवहार हैं, किसी गंभीर तनाव से गुजर रहे व्यक्ति के नहीं. इसलिए मामले को जारी रखना न्याय का उपहास होगा. आरोपी को लंबी सुनवाई से गुजरना होगा.'
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इसके खिलाफ अपील मंजूर करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, हाईकोर्ट ने सुनवाई के बजाय धारणा के अनुसार कार्रवाई की. सुनवाई में आरोपों की सच्चाई को जानना चाहिए था. लेकिन जांच भी रोक दी गई. यह अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ये मान कर चला कि आम तौर पर मनुष्य का व्यवहार कैसा होना चाहिए और कैसा नहीं? आत्महत्या करने का फैसला करने वाले व्यक्ति को ‘कमजोर’ करार दिया, लेकिन इस पारंपरिक सोच को व्यवहार विज्ञानी खारिज करते हैं. उनके मुताबिक ‘सभी इंसान एक जैसा व्यवहार करते हैं.’ कोर्ट ने कहा, स्वाभावों में फर्क होता है. इसी से लोगों का अलग व्यवहार तय होता है. कोई व्यक्ति मानसिक या शारीरिक संकट से कैसे निपटता है, प्रेम, दुख, खुशी का कैसे इजहार करता है, ये इंसान के माइंड के अलग-अलग पहलू तय करते हैं. सब एक सांचे में फिट नहीं हो सकते. शीर्ष अदालत ने कहा-यह कहना कि अवसाद या तनाव में व्यक्ति को कैसा व्यवहार करना चाहिए ये मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की गंभीरता को कम आंकना है.
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बता दें इस मामले में आरोप है कि बेंगलूरू का भूमि अधिग्रहण अधिकारी अपने ड्राइवर के बैंक खाते व फोन नंबर का इस्तेमाल करके काला धन सफेद करता था. मना करने पर उसे जान से मारने की धमकी दी गई. इसके बाद पीड़ित ने 12 पेज का सुसाइड नोट लिख कर खुदकुशी कर ली. सुसाइड के लिए उकसाने में अधिकारी गिरफ्तार हुआ. इस मामले में अधिकारी को बाद में बेल मिल गई.
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