हम छोटे होते हैं तो सुख को स्थगित नहीं करते. उसे जीते हैं. हम उसे नहीं कहते, ‘ओ ! सुख कल आना.’
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जब हम छोटे होते हैं, तो प्रसन्नता स्वभाव का स्थाई भाव होती है. सुख स्वत: मिजाज में शामिल होता है. यह सोचकर खुश नहीं होते कि यह ‘खुश’ होने की चीज है कि नहीं. हम आनंद, प्रसन्नता को स्थगित नहीं करते, बल्कि उस पल को जीते जाते हैं. प्रसन्नता की तरह ही अगर दुखी हैं, तो उसे छुपा नहीं सकते.
जब हम छोटे होते हैं तो सुख को स्थगित नहीं करते. उसे आज जीते हैं. हम सुख से कल आने को नहीं कहते. उसे आज ही आत्मा में भर लेते हैं. ठीक इसी अनुपात में हम दुख को ग्रहण करते हैं. कुछ तकलीफ देने वाला हुआ तो रो लिए, रोकर दुखी हुए. अगले ही दिन उस दुख से स्वतंत्र हो गए. कुंठा के लिए मन में कोई जगह नहीं! दुख किसी कोने में पलता नहीं रहता. हम उसे संभालकर रखना नहीं जानते!
डियर जिंदगी: कड़वे पल को संभालना!
दुखी होना हमें धीरे -धीरे सिखाया जाता है. हमें बताया जाता है कि कैसे हम भविष्य के लिए जीना शुरू करें. हमें सुख के आंगन से निकालकर दुख की छाया में बैठने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है! जैसे - जैसे हम चीजों से सुख को महसूस करने, आनंदित होने की जगह ‘सुख’ जुटाने पर ध्यान देने लगते हैं, उसी समय हम जीवन के उस मोड़ से मुड़ जाते हैं, जहां से मुड़ना ‘मना’ है!
एक छोटी सी कहानी से समझते हैं ! इसे ‘डियर जिंदगी’ के पाठक रमेश जैन ने भेजा है. इंदौर में एक छोटा सा परिवार है. पिता रिटायर हैं. उनके पास अपने लिए पर्याप्त साधन हैं. दो बेटे हैं, अलग शहर में. एक नौकरी करता है. दूसरे का अपना काम है.
डियर जिंदगी: मित्रता की नई ‘महफिल’!
बड़ा भाई, नौकरी करता है. आय सीमित है. जब भी छोटे को फोन करता है. छोटी-छोटी चीजों की बात करता है. परिवार के दूसरे सदस्यों के बारे में बात करता है. खर्चे संयमित रखता है. दूसरों की मदद करता है. लेकिन उसके पास कोई क्रेडिट कार्ड नहीं. वह शॉपिंग नहीं करता. हमेशा नए कपड़े नहीं खरीदता. उसे उधारी शब्द पसंद नहीं. वह किसी से उधार लेना पसंद नहीं करता.
उसे अच्छा नहीं लगता कि उसकी पत्नी किसी से कहे कि उसके पास पैसे कम हैं, जबकि कई बार कम भी होते हैं. उसका बुनियादी नियम है, जितनी आय उतने खर्च. उसकी रुचि संगीत, कला और किताब में है. वह खुश रहने के लिए इनका सहारा लेता है. उसकी खुशी में कला, साहित्य सब होते हैं. वह दूसरे के व्यवहार से कम प्रभावित होते हुए, अपने मानवीय सरोकार पर टिका रहता है.
डियर जिंदगी: आदतों की गुलामी!
दूसरी ओर छोटा है . वह भी भला आदमी है. दूसरों की मदद करने की अदा दोनों भाइयों को विरासत में मिली है. लेकिन खुश रहने का आधार बड़े की तरह नहीं है. इनके पास पर्याप्त क्रेडिट कार्ड हैं. खर्चे पूरे करने हैं, किसी भी तरह. जिस चीज पर दिल आ जाए. उसे हासिल किए बिना रहा नहीं जाता.
बाजार में नया फैशन आते ही मानो इन्हें सबसे पहले सूचना देता है. परिवार को देने के लिए समय कम है. परिवार को देने के लिए धन है, समय नहीं. समय दोस्तों के लिए खूब है. लेकिन पत्नी और बच्चों के लिए नहीं.
डियर जिंदगी: बच्चों के बिना घर!
दोस्त इनसे अधिक खुश रहते हैं . बड़े भाई की तुलना में. लेकिन परिवार किसका खुश है, यह लिखने की जरूरत नहीं. इनकी पत्नी रोकती हैं, उन्हें ‘क्रेडिट कार्ड’ खर्च से तो वह कहते हैं, कर्ज लेने में कोई बुराई नहीं, अगर समय पर लौटा दिया जाए. एक योजना पूरी करने से पहले दूसरी बना लेते हैं, टिककर काम ही नहीं करते. निजी खर्चे में कमी नहीं. शान में कमी नहीं, ज़ेब में गिनने को नोट नहीं!
डियर जिंदगी: प्रेम दृष्टिकोण है…
बड़ा भाई , अपने सुख को जीते हुए आगे बढ़ रहा है. उसके लिए हर अनुभव सुख है. सुख के लिए वह चीजों पर आश्रित नहीं. दूसरी ओर छोटा हमेशा बड़ी चीजों की तलाश में है. एक तलाश खत्म, तो दूसरी शुरू, क्योंकि यह तलाश कभी नहीं खत्म होने वाली है. सुख को महसूस करने की जगह हमने क्षितिज में बदल दिया. जब कभी धरती-आसमां मिलेंगे, हम सुखी होंगे. जबकि सुख हमारी हथेली पर पहले से मौजूद है. कौन सुखी, फैसला आप करिए !
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