दर्द से उबरना भी एक उपचार है. अगर सही तरह से दुख से बाहर नहीं निकला जाए तो यह ताउम्र अमरबेल की तरह हमारी आत्मा पर सवार रहता है.
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दर्द, पीड़ा, दुख जिंदगी के अभिन्न अंग हैं. इनसे छुटकारा पाने का ख्याल दुख का कारण है. दुख, दुख का मूल कारण नहीं है. वह तो ख्याल के साथ तोहफे में आया हुआ उपहार है. अब हमें यह करना है कि दुख को रास्ते में मिले किसी परिचित की तरह नमस्कार कहकर आगे जाना है, उसे सहयात्री बना लेना है. जिंदगी के सफर में विभिन्न, विविध तरह के लोगों से सामना होता है, लेकिन हम हर किसी को हमसफर नहीं बनाते. उसको ही साथ लेकर चलते हैं, जिसके साथ सारी जिंदगी चलना हो. कम से कम कुछ दूर का ख्वाब जिनके आंखों में तैर रहा हो!
डियर जिंदगी: अनुभव की खाई में गिरे हौसले!
मनुष्य का मूल स्वभाव चीजों के साथ चिपके रहना नहीं है. आदिमानव से ‘डिजिटल’ तक का सफर इस बात की गवाही देता है कि हमें ठहरना पसंद नहीं. हमें निरंतर नए आसमां देखने हैं. इसलिए, हमारे समाज में हर चीज का वक्त तय किया गया. वह इसलिए जिससे दुख का सामना करने में आसानी हो. विचार के रूप में तो यह बात स्वीकार है, लेकिन व्यवहार में अभी हम बहुत पीछे हैं. हमें समझना होगा कि एक ख्याल के भरोसे उम्र नहीं गुजारी जाती. एक खराब मौसम, अनुभव से जिंदगी के सफर का नक्शा तय नहीं किया जा सकता!
डियर जिंदगी: प्रेम दृष्टिकोण है…
इसे केवल प्रेम, निजी संबंध से जोड़कर नहीं देखें. प्रेम, निजी रिश्तों में तो यह बहुत ज्यादा देखा ही जा रहा है, लेकिन उससे कहीं अधिक यह हमारे करियर, रोजमर्रा की निर्णय लेने की क्षमता, सामाजिक संबंध पर भी लागू हो रहा है. हम एक खराब फैसले की याद में ताउम्र जिंदगी को बर्बाद करने का जोखिम नहीं उठा सकते. कुछ छोटी-छोटी कहानियां…
डियर जिंदगी: बच्चों के बिना घर!
1. पिता डॉक्टर बनाना चाहते थे. लेकिन मेडिकल की प्रवेश परीक्षा नहीं पास कर सके. उसके बाद इंजीनियर बन गए. उनकी बिटिया डॉक्टर बनना चाहती है, लेकिन पिता उसे इंजीनियर बनाने पर अड़े हुए हैं. उनका मानना है कि डॉक्टरी का पेशा पहले से बहुत जटिल, मुश्किल है. उसके बाद इसमें कभी सुकून नहीं मिलता.
पिता की जिद के क्या मायने हुए. वह डॉक्टर नहीं बन पाए तो परिवार में इस पेशे में कोई नहीं जाएगा, क्योंकि उन्होंने सब ओर यही कहा हुआ था कि उनका पहला प्यार इंजीनियरिंग था. जबकि यह झूठ है, डॉक्टर वह बन नहीं पाए थे. हम कई बार अपनी असफलता से इसी तरह पेश आते हैं. हम उसे स्वीकार करने की तरह उससे दुश्मनी निकालने पर आमादा हो जाते हैं. इससे कुछ हासिल नहीं होता, बस तनाव बढ़ता रहता है.
2. अरविंद-आरती आईटी इंजीनियर हैं. उन्हें कॉलेज के दिनों में प्रेम हुआ. दोनों में सहमति हुई कि परिवार की असहमति के बाद भी शादी करेंगे. आगे चलकर बात नहीं बनीं. अरविंद ने परिवार की बात मानी. शादी कर ली. कोई सात बरस बाद भी आरती इस ‘दर्द’ से उबर नहीं पाई हैं. वह बेहद शिक्षित, अपने काम में माहिर प्रोफेशनल हैं. रिश्ते की टूटन का असर उनके प्रोफेशन पर भी पड़ा. वह एक जगह पर सिमटकर रह गईं, क्योंकि उनके भीतर से कुछ कर पाने की इच्छा जाती रही.
डियर जिंदगी: ‘ कड़वे ’ की याद!
कुछ दिन पहले उनसे मिलना हुआ. उन्होंने कहा, 'मैं फिर से वही हो जाना चाहती हूं, जैसे अरविंद के पहले थी. लेकिन उसकी यादें मेरे अस्तित्व से मिटती ही नहीं. मैं उसके ‘रंग’ से मुक्त नहीं हो पा रही हूं.' मैंने कहा, कोई नया कैनवास चुनिए, उसमें खुद को डुबो दीजिए. जब मन उदास हो, खालीपन घेर ले, जी भरके सूरज/चांद/समंदर को देखिए. इनका सफर, मिजाज और रवैया सब कुछ सिखा देगा. जिंदगी से बड़ा रंगरेज कोई नहीं, बस उसे मौका तो दीजिए!
दर्द से उबरना भी एक उपचार है. यह एक प्रक्रिया है. अगर सही तरह से दुख से बाहर नहीं निकला जाए तो यह ताउम्र अमरबेल की तरह हमारी आत्मा पर सवार रहता है.
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