इंदिरा गांधी की इमरजेंसी से कैसे अलग हैं अमेरिका की 59 इमरजेंसी
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इंदिरा गांधी की इमरजेंसी से कैसे अलग हैं अमेरिका की 59 इमरजेंसी

हाल ही में अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने देश में इमरजेंसी लगाई है जो वहां की 59वीं इमरजेंसी है. वहीं भारत में एक ही इमरजेंसी की चर्चा होती है जो  इंदिरा गांधी ने लगाई थी. 

भारत में एक ही इमरजेंसी विवादित रही है जबकि अमेरिका में  इमरजेंसी कोई बहुत कम लगी हों ऐसा नहीं है.  (फोटो:  File/Reuters)

नई दिल्ली: संयुक्त राज्य अमेरिका में इन दिनों आपातकाल की चर्चा है. मामला ताजा है, मौजूदा है. 15 फरवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने देश में आपातकाल लगा दिया. यह संकट राजनैतिक के साथ ही संवैधानिक भी है. अमेरिका में आपातकाल कोई नई बात नहीं हैं. खुद ट्रंप का यह चौथा आपातकाल है. जबकि भारत जैसे देश में 1975 के बाद से एक ही इमरजेंसी की चर्चा होती है. भारत में इमरजेंसी का एक ही मतलब है. 

इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मैक्सिको की सीमा पर अवैध आव्रजन रोकने के लिए दीवार बनाने के मुद्दे पर इमरजेंसी लगाई है. इस मुद्दे पर अमेरिकी कांग्रेस ने राष्ट्रपति के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया जिसमें सरकार 320 किलोमीटर (200 मील) ने दीवार बनाने के लिए 5.7 बिलयन डॉलर की मांग की थी. इसी के लिए राष्ट्रपति ने अपने विशेष शक्तियों का प्रयोग कर देश में आपातकाल लगाया है. 

क्या अमेरिका में सामान्य बात है आपातकाल?
इस सवाल का जवाब सीधा नहीं है क्योंकि आपातकाल तो आखिर अपवाद स्वरूप उत्पन्न हुई विशेष परिस्थिति में ही लगाया जाता है. हर देश में आपातकाल के कई प्रकार होते हैं. अमेरिका में भी आपातकाल एक विशेष अवस्था है, विशेष स्थिति हैं जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा जो देश की के लिए खतरा बन रहा हो. अमेरिका का 1976 अधिनियम वहां के राष्ट्रपति को शक्ति प्रदान करता है कि वे कांग्रेस (अमेरिका की लोकसभा) के अनुमोदन के बिना भी सरकार को पैसा दिलवा सकते हैं. यह अधिनियम राष्ट्रपति को कुछ अतिरिक्त शक्तियां भी प्रदान करता है.

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भारत के आपातकाल से अलग क्यों
भारत में भी आपातकाल अपवाद स्वरूप ही लगता है, लेकिन भारत में एक ही आपातकाल की बात होती है. वह है 1975 में लगा आपातकाल जो कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लगाया था. हमारे भारत में ही राष्ट्रीय आपातकाल को लेकर राष्ट्रपति को संविधान से आपातकाल संबंधी शक्तियां मिली हैं. इनका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 352 से 360 तक में किया गया है. भारत में तीन वजहों से राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है. एक युद्ध के हालात, दूसरा वित्तीय आपातकाल, और तीसरा आंतरिक सुरक्षा को खतरा होने की स्थिति में लगाया गया आपातकाल. भारत में अब तक तीन आपातकाल लग चुके हैं. दो बार आपातकाल युद्ध की वजह से साल 1962 और साल 1971 में लगाए गए थे. जबकि 1975 का आपातकाल आंतरिक सुरक्षा की वजह से लगाया गया था.
 
अमेरिका में आपातकाल
अमेरिका में 30 से भी ज्यादा कारणों से आपातकाल लगाया जा सकता है. अमेरिका में 1979 से अब तक 58 आपातकाल लगाए जा चुके हैं. जिनमें 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 9/11 के हमले के बाद में देश में आपातकाल लगाया था. इसके अलावा साल 2009 में अमेरिका में स्वाइन फ्लू फैलने पर भी उस समय के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आपातकाल लगाया था. अन्य ज्यादातर आपातकाल वहां वित्तीय कारणों से लगाए जा चुके हैं. इस समय अमेरिका में 31 इमरजेंसी लागू हैं जो समय समय पर संशोधित भी होती रही हैं.  इनमें से तीन वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगा चुके हैं. 

क्यों अलग है यह अब तक के आपातकालों से 
अमेरिका में पहली बार ऐसा आपातकाल लगा है जिसके लगाने की वजह पर ही मतभेद हैं, यानि की राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा. यहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अवैध आव्रजन को राष्ट्रीय सुरक्षा का गंभीर मामला बता रहे हैं जबकि उनके विरोधी इसे ऐसा मामला ही नहीं मानते. राष्ट्रपति की रिपब्लिकन पार्टी में भी इस मामले में अंदरूनी मतभेद की बातें हो रही हैं, जबकि विरोधी पार्टी डेमोक्रेट पूरी तरह से राष्ट्रपति के खिलाफ है. डेमोक्रेट पार्टी का कांग्रेस में बहुमत है. ट्रंप इस मुद्दे को लेकर अमेरिका और मैक्सिको के बीच दीवार बनाने की जिद पर अड़े हैं जिसके लिए उनके द्वारा चाही गई रकम का कांग्रेस ने अनुमोदन नहीं किया है इसलिए ट्रंप ने आपातकाल का मुद्दा उठाया है.

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क्या अमेरिका की संवैधानिक व्यवस्था है ज्यादा आपातकाल की वजह
दरअसल अमेरिका की संवैधानिक व्यवस्था में कार्यपालिका और विधायिका के बीच टकराव की बहुत ज्यादा संभावना है. यहां विधायिका और राष्ट्रपति जो कि वहां के कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं, का चुनाव अलग-अलग होता है. यह स्थिति भारत की कार्यपालिका और विधायिका से काफी अलग है जहां विधायिका में बहुमत होने वाला दल ही सरकार बनाकर कार्यपालिका बन जाती है. ऐसे में भारत जैसे देश में हमेशा ही विधायिका में कार्यपालिका का ही बहुमत होता है. दोनों के बीच टकराव की स्थिति होने से पहले ही कार्यपालिका खत्म हो जाती है. अमेरिका में ऐसा नहीं वहां की द्विदलीय शासन व्यवस्था में अनेक बार ऐसी स्थितियां बनती हैं कि कार्यपालिका एक दल की हो जबकि विधायिका मे बहुमत विरोधी दल का हो. ऐसे में टकराव की स्थिति में अमेरिका के राष्ट्रपति के पास आपातकाल लगाने की शक्ति होती है, लेकिन यह शक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति को अपवाद स्वरूप ही यह शक्ति प्रयोग में करनी पड़ती है. अमेरिका में राष्ट्रपति के द्वारा आपातकाल लगाने का मतलब कुछ विशेष परिस्थिति में लंबी संवैधानिक प्रक्रियाओं से बचने की कवायद होता है. इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे में राष्ट्रपति बेलाम हो जाएं. आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति पर नियंत्रण की व्यवस्थाएं भी हैं. 

तीखी हो गई है राष्ट्रपति और डेमोक्रेट के बीच की लड़ाई
ट्रंप के आपातकाल लगाने से राष्ट्रपति और डेमोक्रेट के बीच की लड़ाई आर पार की हो गई है. डेमोक्रेट्स कांग्रेस में अपने बहुमत का फायदा उठाकर आपातकाल के आदेश को रोकने की तैयारी कर रहे हैं. वे इसमें सफल हो जाएंगे इसकी पूरी संभावना है, लेकिन यह जंग रूकने वाली नहीं हैं. ट्रंप के सलाहकारों ने साफ इशारा किया है कि राष्ट्रपति अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल करने में नहीं हिचकिचाएंगे. वीटो शक्ति से राष्ट्रपति कांग्रेस के फैसले को पलट सकते हैं. इसके बाद डेमोक्रेट्स संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से ही ट्रंप के आपातकाल को खारिज कर पाएंगे. ऐसा करना डेमोक्रेट्स के लिए आसान नहीं तो नामुमकिन भी नहीं होगा. 

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क्या होगा बाद में
क्या होगा अगर वीटो किए गए फैसले को संसद खारिज न पाए. यह सवाल अमेरिका में अभी से उठने लगा हैं. ऐसे में अमेरिका के संविधान की वह विशेषता सामने आएगी जिसका जिक्र अभी तक हुआ तो नहीं है लेकिन इस दिशा में काम शुरू हो भी गया है. दरअसल अमेरिकी संविधान में सर्वोच्च ने तो कार्यपालिका है न ही ब्रिटेन के संविधान की तरह विधायिका. यहां सर्वोच्चता न्यायपालिका की है. डेमोक्रेट्स अंतिम विकल्प के तौर पर मामला अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट तक ले जा सकते हैं. जिसका फैसला अंतिम होगा. डेमोक्रेट्स उम्मीद कर रहे हैं कि अगर बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच भी गई तो कोर्ट इस मामले को सुरक्षा का गंभीर मामला मानेगा ही नहीं जिसका हवाला ट्रंप दे रहे हैं ऐसे में उनकी जीत निश्चित है. हालांकि यह भी आसान नहीं है.  अब यह समय ही बताएगा कि क्या ट्रंप दीवार बनवाने की जिद को अमली जामा पहना पाएंगे या नहीं. 

शुरू हो गई है अदालती कार्रवाई 
डेमोक्रेट्स ने पहले ही राष्ट्रपति पर दबाव की रणनीति बनाना शुरू कर दी है. अमेरिका के 16 डेमोक्रेटिक शासित राज्यों ने कैलिफोर्निया के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में राष्ट्रपति के आपातकाल के फैसले को वैधानिक चुनौती दी है. ऐसे में माना जा रहा है कि देर सबेर यह मामला सुप्रीम कोर्ट जरूर जाएगा जहां जजों में रिपब्लिकन बहुमत है. कयास लगाए जा रहे हैं कि यह तय नहीं है कि मामले के सुप्रीम कोर्ट जाने पर ट्रंप हार ही जाएंगे. फिलहाल यह कहना भी जल्दबाजी ही होगी. 

अंजाम चाहे जो हो टंप के ल़ड़ाई आसान नहीं होगी. अब ट्रंप आसानी से दीवार नहीं बनवा सकेंगे. कम से कम जल्द तो नहीं. इसका सीधा असर अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों पर भी होगा. यह एक चुनावी मुद्दा भी बन जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. इतना तय है कि 2020 राष्ट्रपति चुनाव तक यह मामला ठंडा होने की संभावना नहीं है.

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