शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा ने कहा, "सरकार की प्राथमिकता 'क्वालिटी एजुकेशन' देना है और इससे कोई समझौता नहीं होगा.
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पटनाः बिहार की शिक्षा व्यवस्था को लेकर हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की गई है, जिसके बाद से ही प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े होने लगे हैं. रिपोर्ट मेंॉकहा गया है कि 14वें वित्तीय आयोग की अवधि में शिक्षा पर व्यय और कुल व्यय में तो वृद्धि हुई है, लेकिन जमीनी तौर पर उसका असर कम ही दिखाई देता है. हालांकि बिहार सरकार का दावा है कि हमेशा ही सरकार की प्राथमिकता गुणवत्तापूर्ण शिक्षा रही है और इसके लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं.
सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेस अकाउंटबिलिटी और क्राई (चाइल्डस राइट एंड यू) द्वारा पिछले महीने जारी की गई संयुक्त अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, 2014-15 और 2017-18 के बीच बिहार में स्कूली शिक्षा (कक्षा एक से 12) पर व्यय 52 फीसदी बढ़ा है, लेकिन कुल बजट की मदों में असमान वितरण के कारण इसका प्रभाव उम्मीद से कम रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूली शिक्षा बजट का सबसे ज्यादा हिस्सा (68 प्रतिशत) शिक्षकों के वेतन पर खर्च किया जाता है, जबकि अन्य क्षेत्रों में सुविधाएं बढ़ाने पर कोताही बरती जा रही है.
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इस रिपोर्ट के संदर्भ में बिहार के जानेमाने अर्थशास्त्री व पटना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे नवल किशोर चौधरी कहते हैं कि यह रिपोर्ट बिहार की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है. उनका कहना है कि रिपोर्ट इस बात को साबित करती है कि शिक्षा का बजट और बढ़ाने की जरूरत है. उनका कहना है कि शिक्षकों को वेतन देना अनिवार्य है, लेकिन अन्य सुविधाएं बढ़ाने की भी उतनी ही जरूरत है. उन्होंने यह कबूलते हुए कहा कि बिहार में शिक्षक ही प्रशिक्षित नहीं हैं, तो शिक्षा के स्तर में कैसे सुधार हो सकता है. उन्होंने कहा कि सरकार मानव संसाधन के विकास से कोसों दूर है. उनका कहना है शिक्षा के बजट में वृद्धि करने से इन समस्याओं से निपटा जा सकता है. राज्य के शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा ने हालांकि इस रिपोर्ट पर खुलकर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उन्होंने दावा किया कि सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए लगातार प्रयास कर रही है.
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उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए शिक्षा अवार्ड से सम्मानित किया है. उन्होंने कहा, "शिक्षकों की निुयक्ति, इन्फ्रास्ट्रक्च र (बुनियादी सुविधाएं), भवन निर्माण, पंचायत स्तर पर विद्यालय खोला जाना, विद्यालयों में शौचालय निर्माण सहित कई कार्य हुए हैं." शिक्षा मंत्री ने कहा, "सरकार की प्राथमिकता 'क्वालिटी एजुकेशन' देना है और इससे कोई समझौता नहीं होगा." उन्होंने स्वीकार किया कि कई स्कूलों के प्रदर्शन पर सवाल उठाए गए, जिस पर कार्रवाई की गई है. बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा गुणवत्ता में सुधार के मद्देनजर परीक्षा पैटर्न में लगातार बदलाव किए गए हैं. उन्होंने कहा कि प्रत्येक बसावट क्षेत्र में एक प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की गई है, प्रत्येक तीन किलोमीटर पर एक मध्य विद्यालय की सुविधा मुहैया कराई गई है. जल्द ही शिक्षकों की नियुक्ति भी होगी.
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उन्होेंने कहा कि बिहार में शिक्षा की व्यवस्था बहुत बदतर थी, जिसे नकारा नहीं जा सकता. नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की लगातार कोशिश की है. उन्होंने कहा कि विद्यालयों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए वर्ष 2006 में नए नियमावली का गठन कर पंचायती राज संस्थान को शिक्षकों के नियोजन का दायित्व सौंपा गया. इस दौरान लगभग चार लाख शिक्षकों का नियोजन किया गया था.
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उन्होंने माना कि बिहार के बजट में शिक्षा पर अधिक खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रहे हैं. उन्होंने कहा, "शिक्षा त्रिभुजाकारी व्यवस्था है, जिसमें छात्र, शिक्षक और अभिभावक हैं. इनके साथ वित्तीय व्यवस्था और सरकार का समन्वय है. इन सभी 'आकारों' में शिक्षा की गुणवत्ता से कोई मतलब नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षकों की शिक्षा और प्रशिक्षण पर व्यय काफी कम है, जबकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी बहुत ज्यादा है. प्राथमिक स्तर पर 39 फीसदी और माध्यमिक स्तर पर 35 फीसदी शिक्षक पेशेवर रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं है.
क्राई की क्षेत्रीय निदेशक (पूर्व) त्रिना चक्रवर्ती ने रिपोर्ट में कहा, "बजट और इसका इस्तेमाल हमारी प्राथमिकताओं को बताता है. समग्र बजट में वृद्धि के बावजूद गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के परिणाम वांछित नहीं हैं. बुनियादी सुविधाओं पर आवंटन बढ़ाना जरूरी है और इसके साथ ही उचित निगरानी से संसाधनों का प्रभावी इस्तेमाल सुनिश्चित करना जरूरी है."