कोर्ट में नियुक्त दो से अधिक बच्चों वाले स्टाफ पर होगी अनुशासनात्मक कार्रवाई, जानिए SC ने क्या कहा
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कोर्ट में नियुक्त दो से अधिक बच्चों वाले स्टाफ पर होगी अनुशासनात्मक कार्रवाई, जानिए SC ने क्या कहा

वैधानिक प्रावधानों के अनुसार 26 जनवरी 2001 के बाद पैदा हुए दो से अधिक बच्चों वाला कर्मचारी नियमों का उल्लंघन करेगा और इसे सर्विस में कदाचार माना जाएगा.

कोर्ट में नियुक्त दो से अधिक बच्चों वाले स्टाफ पर होगी अनुशासनात्मक कार्रवाई, जानिए SC ने क्या कहा

नई दिल्ली: अदालतों में नियुक्त दो से अधिक बच्चों वाले कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में जिला जज, अदालतों में नियुक्त दो से अधिक बच्चों वाले कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं. दो से अधिक बच्चे सेवा नियम 2016 का उल्लंघन है.

जुर्माने में छूट संबंधी हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा
कोर्ट ने दो से अधिक बच्चे वाले जिला अदालत के कई कर्मचारियों पर लगाए गए जुर्माने में छूट संबंधी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है. सिविल सर्विसेज रूल, 1965 के नियम 22 के उपखंड (4) के अनुसार, यदि किसी कर्मचारी के दो से अधिक बच्चे होते हैं और अगर उनमें से किसी एक बच्चे का जन्म 26 जनवरी 2001 के बाद हुआ हो तो उसे सेवा में कदाचार माना जाएगा. मध्य प्रदेश जिला अदालत प्रतिष्ठान (भर्ती एवं सेवा शर्तें) नियम, 2016 का उपरोक्त प्रावधान राज्य के सरकारी कर्मचारियों पर लागू होगा, जो हाईकोर्ट की ओर से किए जाने वाले संशोधन, बदलाव एवं अपवादों के अधीन होगा.

सर्विस में कदाचार का मामला
कोर्ट ने कहा कि राज्य न्यायपालिका के कर्मचारी 2016 के सेवा नियमों द्वारा शासित होते हैं. वैधानिक प्रावधानों के अनुसार 26 जनवरी 2001 के बाद पैदा हुए दो से अधिक बच्चों वाला कर्मचारी नियमों का उल्लंघन करेगा और इसे सर्विस में कदाचार माना जाएगा.

चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने 7 अगस्त 2019 को जारी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश में संशोधन किया जिसमें जिला जजों को वेतन वृद्धि को वापस नहीं लेने का निर्देश दिया गया था. लेकिन नियम अधिसूचित होने से पहले वे सेवा में शामिल होने पर केवल कर्मचारियों को रोकते हैं जबकि सेवा नियमों में संशोधन 2016 में किया गया जो कि जून 2019 में अधिसूचित किया गया था.

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दो इंक्रीमेंट रोकने के आदेश 
इस मामले में दो से अधिक बच्चों वाले कर्मचारियों के संचयी प्रभाव के साथ दो इंक्रीमेंट रोकने के आदेश दिए गए थे, जिसके खिलाफ कई कर्मचारियों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. हाई कोर्ट ने कर्मचारियों की वेतन वृद्धि रोकने की सजा को सेंसर में यानी कि आधिकारिक निंदा व डांट फटकार की श्रेणी में तब्दील कर दिया था.  हाईकोर्ट ने कहा कि संचयी प्रभाव वाले दो या तीन वेतन बढ़ोतरी (इंक्रीमेंट) रोकने का जुर्माना गैर आनुपातिक है और कथित कदाचार के आनुपातिकता के सिद्धांत के खिलाफ है.

जुर्माने की राशि को कम करने के फैसले में कोई संशोधन नहीं
हाई कोर्ट ने विभिन्न जिला अदालतों में तैनात कर्मचारियों द्वारा दायर 9 याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया था जिनमें कर्मचारियों पर लगाए गए जुर्माने को गलत बताया गया था.

हाई कोर्ट ने इन 9 याचिकाओं के फैसले में जुर्माना राशि को कम करने के अलावा यह भी कहा था कि जून 2019 से पहले भर्ती हुए कर्मचारियों के जिला न्यायाधीश के पास लंबित सभी मामले केवल अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ ही बंद हो जाएंगे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा जुर्माने की राशि को कम करने के फैसले में कोई संशोधन नहीं किया.

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