गांधी पुण्यतिथि
गांधी पुण्यतिथि: गांधी को समझने का काल
अमेरिकी राज्य सचिव, (विदेश मंत्री) ने कहा, 'महात्मा गांधी सारी मानव जाति की अंतरात्मा के प्रवक्ता थे.'
Jan 30,2019, 11:56 AM IST
चिन्मय मिश्र
अगर गांधी को ढंग से समझते तो घाना में उनकी प्रतिमा न हटाते
दिसंबर 2018 में घाना के एक विश्वविद्यालय से गांधी जी की मूर्ति हटाने की घटना का पूरा प्रामाणिक विश्लेषण...
Dec 27,2018, 15:43 PM IST
महात्मा गांधी
गांधी@150: गांधी जी का राम मंदिर उनके मन में ही था
आजकल ‘‘राम’’ चर्चा में हैं. राम नाम नहीं, बल्कि राम मंदिर की वजह से. क्या इसे राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ने की कोई जरूरत है? वैसे राम जन्मभूमि विवाद गांधीजी के समय भी जारी था. परन्तु उन्होंने कभी इस विषय पर टिप्पणी की हो ऐसा कोई प्रमाण संभवतः नहीं है. हां, वे बेझिझक रामराज्य की बात करते रहे और स्वराज की अपनी परिकल्पना को रामराज्य से ही परिभाषित भी करते रहे.
Dec 3,2018, 17:09 PM IST
प्रेस की स्वतंत्रता
गांधी@150: बड़े कमाल की थी पत्रकार गांधी की शख्सियत
दुनिया में छिड़ी अभिव्यक्ति की आजादी की बहस के बीच यह जानना काम का होगा कि पत्रकार के रूप में महात्मा गांधी इस चुनौती का सामना कैसे कर रहे थे.
Nov 14,2018, 19:09 PM IST
गांधी दर्शन
गांधी के विरोध की एक ही वजह है कि वे सबके हैं किसी एक के नहीं
आज सारी ओर हिंसा का बोलबाला दिखाई पड़ रहा है. बहुत से लोगों का मानना है कि अहिंसा का विचार आज कमोवेश अप्रासांगिक हो गया है.
Oct 29,2018, 18:06 PM IST
Swami Sanand
उपवासों की नाकामी के दौर में गांधी के उपवास दर्शन को समझना जरूरी है
‘‘अनशन (उपवास) का सहारा केवल प्रेमी के खिलाफ ही लिया जा सकता है, और यह उससे अधिकार लेने के लिए नहीं, बल्कि उसे सुधारने के लिए है. ठीक वैसे ही जैसे कि कोई बेटा अपने शराबी पिता के लिए अनशन करे. बम्बई और उसके बाद बारडोली के मेरे उपवास उसी तरह के थे.’’- गांधी (यंग इंडिया - 01.05.1924)
Oct 18,2018, 16:00 PM IST
गांधीजी को संसदीय लोकतंत्र तो चाहिए था, लेकिन सत्य और अहिंसा की कीमत पर नहीं
संसदीय लोकतंत्र की शुद्धि के लिए गांधी जी का शस्त्र अप्रतिम एवं बेहद मारक है. वे आजादी पूर्व जिस तरह से तंत्र से निपटने का रास्ता बता रहे थे, वह आज भी उनका ही सार्थक है.
Oct 10,2018, 18:57 PM IST
गांधी जयंती 2018
#Gandhi150: बीसवीं सदी के दो ही अविष्कार हैं महात्मा गाँधी और परमाणु बम
ऐसे अनेक उदाहरण हमें मिलते हैं, जिसमें गांधीजी ने अपने कदम वापस खीचे हैं और उसके युगांतरकारी परिणाम सामने आये हैं. इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण चौरा-चौरी कांड के बाद आन्दोलन का वापस ले लिया जाना है. यहाँ वे स्वीकारते हैं कि भारत अभी उनकी तरह से स्वतंत्रता पाने के लायक नहीं बन पाया है.
Oct 2,2018, 9:33 AM IST
धारा 377
धारा 377 के खत्म होने से हर अल्पसंख्यक तबके को मिली मौलिक अधिकारों की गारंटी
हम अतीत में झांके तो लोकतांत्रिक व्यवस्था को भारत में पहली सीधी चुनौती सन 1975 में अपातकाल के माध्यम से मिली थी.
Sep 20,2018, 18:20 PM IST
मॉब लिंचिंग
पाताल में समाती नैतिकता
पुरानी मॉब लिंचिंग (पीट-पीट कर मार डालने) की घटनाओं पर कठोर कार्रवाई और तीखी सामाजिक प्रतिक्रिया न आने की वजह से, इनकी पुरावृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है.
Sep 6,2018, 22:27 PM IST
केरल बाढ़
केरल बाढ़: क्या भगवान ही नाराज हैं? आखिर कौन जिम्मेदार है इस प्रलय के लिए...
माधव गाडगिल कहते हैं, 'केरल की तबाही मानव निर्मित है. यदि ठीक समय पर उचित कदम उठाए गए होते तो इतना विनाश नहीं होता.' वे मानते हैं कि हम एक न्यायविहीन समाज में रह रहे हैं और लचर प्रशासन हमें संचालित कर रहा है.
Aug 24,2018, 13:00 PM IST
बाल अपराध
जो बच्चे हमारे नहीं हैं
बच्चों पर केंद्रित तमाम अध्ययन उनकी शिक्षा, उनके विकास, उनके स्वास्थ्य आदि को लेकर बेहद चिंतित नजर आते हैं. उन्हें सदाशय और देशभक्त बनाने पर भी खूब शोर मचाते हैं.
Aug 2,2018, 21:16 PM IST
कबीरदास
कबीर : प्रेम न खेतों नीपजै
कबीर अपने समय की सत्त को खुली चुनौती देते हैं और गांधी अपने समय की. एक के हाथ में करघा है दूसरे के हाथ में चरखा और दोनों के बीच की 350 बरस की दूरी जैसे अपने आप समाप्त हो जाती है. दोनों ही इस संसार में रहते हुए वीतरागी हैं और कबीर कहते भी हैं.
Jun 28,2018, 18:05 PM IST
बाल अधिकार
Opinion: वंचित वर्ग के बच्चों के साथ क्यों हो रहा है सौतेला व्यवहार?
वंचित समाज के बच्चों के संदर्भ में दुनिया के सबसे ताकतवर व सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था में कोई मौलिक अंतर नहीं है.
Jun 21,2018, 23:18 PM IST
Chinmay Mishra
विचारों के 'अकाल में सारस' की बिदाई
वे तमाम ऐसे शब्दों का प्रयोग अपनी कविताओं में करते हैं, जो कि अब कमोवेश बिसरा से दिए गए हैं . वे समय और भाषा की अनंतता को एक साथ जीवंत करते नजर आते हैं. उनकी विदाई के बाद क्या कोई ऐसा कर पाएगा?
Mar 20,2018, 21:28 PM IST
Mahatma Gandhi
गांधी और गणतंत्र का वर्तमान
दुनिया का शायद ही कोई और संविधान होगा जिसका पहला शब्द ‘सामाजिक न्याय’ हो. यानी हमारे पूर्वजों का यह विश्वास था कि बिना सामाजिक न्याय स्थापित किए गणतंत्र का रथ आगे नहीं बढ़ पाएगा.
Jan 24,2018, 16:26 PM IST
Supreme Court
ब्लॉग : मुस्लिम महिलाओं को समानता दिलाने में ठोस एवं निर्णायक कदम है SC का फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम समाज में प्रचलित एक कुप्रथा ‘तलाके बिद्दत’ यानी तीन बार तलाक बोलकर किसी पति द्वारा पत्नी को दिए गए तलाक को अपरिवर्तनीय मान लेना, को अवैध ठहरा कर एक दूरगामी फैसला दिया है. हालांकि यह फैसला सर्वसम्मति से नहीं आया है और प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति खेहर एवं न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर ने इससे सहमति नहीं जतायी है और उनके अनुसार तीन तलाक मुस्लिम पर्सनल लॉ का हिस्सा है. अतएव उसे मूल अधिकारों का स्तर प्राप्त है. वहीं, न्यायमूर्ति नरिमन एवं यू.यू. ललित का कहना है कि ‘तीन तलाक एक मनमाना कृत्य है, और सन् 1937 का जो कानून इसे मान्यता प्रदान करता है वह असंवैधानिक है और इसे रद्द कर दिया है.’
Aug 22,2017, 20:27 PM IST
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