कुछ अनकहा मत रखिए, इससे रिश्ते सुंदर, स्वस्थ और मन हल्का रहेगा!
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पंकज चतुर्वेदी यही नाम था, मेरे उस दोस्त का जो आठवीं तक के स्कूल का हमसफर था. पंकज एक प्यारा, अनुशासित, सुंदर बच्चा था. जैसा कि उन दिनों में होता था, वह हमारे तनिक ‘विरोधी’ समूह में था. क्योंकि वह मेरे अभिन्न मित्र सुनील ओझा का प्रतिस्पर्धी था. जिसे मैंने नंबर एक आने का ठेका बचपन से ही दे रखा था! असल में मैं बचपन से ही परीक्षा में आने वाले नंबरों के प्रति काफी ‘सजग’ था. गांधी को कुछ-कुछ पढ़ लेने से मन में जीवन के प्रति दूसरी दिशा आकार ले रही थी. इसलिए मैं कभी नंबर के फेर में रहा ही नहीं. परीक्षा में नंबर हासिल करने की ओर बढ़ने से पहले ही मैं समझ गया था कि इसमें बड़ा तनाव है. इससे जीवन के दूसरे काम रुक सकते हैं.
इसलिए, मैंने कक्षा में नंबर एक आने का जिम्मा अपने दोस्त सुनील ओझा को दे दिया. जो बेहद मेधावी, दिलदार और मेरा प्रिय मित्र था. मैं हमेशा उसे ही कक्षा में नंबर रहने के बारे में सोचता था. हम बाकी लोग दो, तीन, चार की बातें किया करते थे, क्योंकि नंबर एक पर सुनील का आना तय था.
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मेरे पिता और रिश्तेदार हमेशा यही कहते, सब ठीक चल रहा है न! सुनील ही टॉपर है! और सुनील ने बारहवीं तक कभी दगा नहीं दिया. हमेशा टॉप करता रहा. वह कभी-कभी कहता, ‘तुम अपने टॉपर बनने के बारे में क्यों नहीं सोचते!’ मेरा हमेशा यही कहना होता कि सबसे आगे तुमको ही होना है, क्योंकि तुम्हीं इसके हकदार हो. मुझे याद है एक बार पंकज के नंबर किसी ‘छोटी’ परीक्षा में कम आ गए, तो मैंने सुनील से इस पर काफी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उसे अपने प्रदर्शन पर ध्यान देना चाहिए!
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पंकज को पता था कि सुनील से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं था. उसके बाद भी वह मेरे प्रति बेहद सहिष्णु था. जब कभी मेरा काम न पूरा होता, सहर्ष मदद करता. जबकि वह एक बड़े घर में रहता, हमारी जेब के मुकाबले उसके बाद कुछ अधिक चिल्लर होती थी. असल में पंकज उस भारतीय संस्कति की मिसाल था, जहां विरोधी को सम्मान, प्रेम और स्नेह दिया जाता था. उसकी कोई गुस्से वाली छवि दिमाग में नहीं है.
आज मैंने आपको अतीत के आंगन में कुछ ज्यादा ही दौड़ा दिया. इसकी जरूरत इसलिए पढ़ी क्योंकि जिस प्यारे पंकज का मैंने जिक्र किया, अब वह इस दुनिया में नहीं है.
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इसे अजीब संयोग कहिए कि ‘डियर जिंदगी’ में जीवन के विविध पहलुओं की चर्चा करते हुए कुछ दिन पहले मुझे अचानक पंकज की याद आ गई. उसका गोल मटोल चेहरा आंखों में उतर आया. मैंने मेरे एक दूसरे दोस्त परवेज़ खान को तुरंत याद किया और कहा कि भाई! जरा पंकज का पता लगाओ, कैसा है, अपना दोस्त.
परवेज ने ज्यादा दिन नहीं लिए, लेकिन जब उसका फोन आया तो आवाज में कुछ ठंडक, नमी थी. उसने कहा, भाई, पंकज नहीं रहा. वह अपने परिवार के साथ दादी की अस्थि विसर्जन के लिए गया था और लौटते में सड़क हादसे ने उसे हमें हमेशा के लिए छीन लिया.
मैं कई रोज सोचता रहा, काश! कुछ दिन पहले उसकी खबर ली होती. उससे बात ही एक बार हो जाती.
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जिंदगी में हम लगभग बेकार,रोजमर्रा के काम में इतने उलझे हैं कि अपने उन रिश्तों को जिनने हमें गढ़ने में भूमिका निभाई थी, बहुत पीछे छोड़ आए हैं.
पंकज के हमेशा के लिए बिछड़ जाने की सूचना मेरे लिए ‘अलार्म’ की तरह आई. मैंने उन रिश्तों के बारे में सोचना शुरू किया, जो किसी न किसी कारण से ‘होल्ड’ पर थे. जिनसे बहुत दिनों से संपर्क टूटा था, उनसे शुरू किया. जिनसे बातचीत रूक गई थी, दुबारा शुरू की. क्योंकि जीवन अनंत नहीं, सीमित है, मन में जो है, उसे अव्यक्त न रहने दें.
कुछ अनकहा मत रखिए, इससे रिश्ते सुंदर,स्वस्थ और मन हल्का रहेगा!
आशा, आप मेरा अनुरोध समझ गए होंगे!
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