डियर जिंदगी: रेगिस्तान होने से बचना!
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डियर जिंदगी: रेगिस्तान होने से बचना!

शहर में हमारे घर आंगन एक दूसरे से इतने अलग और बंटे हुए हैं कि कब वहां सुख और दुख 'हमारे' ना होकर 'मेरे और तुम्हारे' में बदल जाते हैं, हम नहीं समझ पाते.

 

डियर जिंदगी: रेगिस्तान होने से बचना!

जिनका बचपन गांव में बीता है, वह मिट्टी की महक, गमक से सुपरिचित हैं. उतने ही परिचित प्रकृति और मनुष्य से भी होते हैं. एक नजर में लोगों को देखना, पहचानना उनको सरलता से आने लगता है. गांव  मुश्किल को सहने, विपरीत परिस्थिति में खड़े रहने की शिक्षा शहर की तुलना में कहीं बेहतर तरीके से देते हैं. वैसे हम में से हर कोई कभी न कभी गांव से ही शहर आया है. इस अर्थ में शहर हमारे लिए बहुत हद तक नई चीज़ है.


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