नहीं रहे बिहार के लोगों के 'वैज्ञानिक जी'

बिहार में आर्यभट्ट के अलावा एक और भी विभूति थे जिन्होंने आइंस्टीन की थेसिस को भी चुनौती दे दी थी. वो कोई और नहीं बिहार विभूति कहे जाने वाले गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह थे. थे इसलिए क्योंकि आज उनका निधन हो गया. पटना के कुल्हड़िया कॉमप्लेक्स स्थित आवास पर तबियत खराब होने की वजह से उनका देहांत हुआ. वशिष्ठ बाबू सिजोफ्रेनिया नाम की बीमारी से पीड़ित थे. उन्होंने आइंस्टीन के सापेक्ष के सिद्धांत को चुनौती दी थी.   

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Nov 14, 2019, 08:08 PM IST
    • तलाकशुदा होने के बाद परेशान रहने लगे थे
    • समाज ने पागल बनने को मजबूर कर दिया
नहीं रहे बिहार के लोगों के 'वैज्ञानिक जी'

पटना: वशिष्ठ बाबू को सब प्यार से वैज्ञानिक जी पुकारते थे. उनके विषय में एक दिलचस्प किस्सा है कि जब अमेरिका के नासा में थोड़े समय के लिए कंप्यूटर बंद पड़ गए तो वशिष्ठ बाबू ने उसका हल दिया और कंप्यडटर ठीक होने के बाद जो कैल्कुलेशन निकाला गया वह वशिष्ठ बाबू के दिए हुए हल का हुबहु था. बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव में जन्में वशिष्ठ नारायणा सिंह ने 1962 में मैट्रिक की परीक्षा पास की. इसके बाद उन्होंने पटना साइंस कॉलेज में दाखिला लिया. वहां वे शिक्षकों की गलतियां पकड़ने के लिए मशहूर हो गए थे. 1969 में पीएचडी करने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी चले गए और उस वक्त नासा में भी काम किया. लेकिन जब मन नहीं लगा तो 1971 में वापस भारत लौट आए. वापस लौटे थे उनकी शादी कराई गई. वहां उनकी भाभी प्रभावती कहती हैं कि वशिष्ठ बाबू बड़े अजीब किश्म के थे. छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाया करते, पूरा घर सर पर उठा लेते कमरा बंद कर दिन भर किताबों की दुनिया में रहते और पूरी रात जगते. पता नहीं किस चीज की दवाइयां खाते रहते. 

तलाकशुदा होने के बाद परेशान रहने लगे थे 
वशिष्ठ बाबू के इस व्यवहार को पत्नी वंदना बहुत दिनों तक बर्दाश्त न कर पाईं और उनसे तलाक ले लिया. कहा जाता है कि वशिष्ठ नारायण सिंह इसके बाद से ही कुछ ज्यादा परेशान रहने लगे थे. 1974 में तो उन्हें एक दिल का दौरा भी पड़ा जिसके बाद उन्हें कुछ दिनों बाद रांची भर्ती कराना पड़ा. इलाज के लिए बहुत से संसाधनों की आवश्यकता पड़ती रही जिसे बहुत लंबे समय तक परिवार वाले उठा न सके. वशिष्ठ बाबू गरीब परिवार से आते हैं. वशिष्ठ बाबू के जीवन में एक ऐसा भी वक्त आया था जब वे घर छोड़ कर भाग गए थे. 1987 में वे अपने गांव जा कर रहने लगे थे लेकिन दो साल बाद एक दिन अचानक कहीं गायब हो गए. ठीक चार साल बाद 1993 में सारण के डोरीगंज में मिले थे तो उनका बहुत बुरा हाल था. 

"समाज ने पागल बनने को मजबूर कर दिया"

वशिष्ठ बाबू के विषय में उनके परिवारवाले कहते हैं कि उनके लिखे कई शोधों को उनके साथी प्रोफेसर्स ने अपने नाम से भी छपवा लिया था. इससे नाराज वशिष्ठ बाबू किसी से बात करने की बजाए खुद में ही मशगूल रहते. वशिष्ठ बाबू की मृत्यु हो गई लेकिन परिवारवालों का मानना है कि अगर उनका परिवार इतना गरीब नहीं होता तो उनका इलाज अच्छे से हो सकता था. भाभी ने तो यहां तक कह दिया था कि "भारत में अगर किसी नेता का कुत्ता बीमार हो जाए तो इलाज करने वालों की लाइन लगा दी जाती है. लेकिन हमें इनके इलाज की नहीं किताबों की चिंता है, समाज ने इन्हें पागल बनने को मजबूर कर दिया."

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