कोरोना ने हर सेक्टर में नुकसान पहुंचाया है. मूर्तिकला का व्यवसाय इससे अछूता नहीं है. महाराष्ट्र जो कि गणपति पूजा के लिए प्रसिद्ध है वहां भी मूर्तिकार इस बात से परेशान हैं कि उनका जीवन-यापन कैसे होगा, जो कि गणपति के मौके पर मूर्ति निर्माण करके चलता था,.
भाद्रपद मास में जब सूर्य कर्क राशि से सिंह राशि में प्रवेश करता है तब इस समय को सिंह संक्रांति कहते हैं. सिंह संक्रांति इस बार 17 अगस्त को है. पर्वतीय निवासी इस मौके पर घी संक्रांति मनाते हैं. इस मौके पर एक अजीब परंपरा है.
मथुरा में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मंदिर परिसर में आरती का अद्भुत दृश्य रहा. गर्भगृह में मंदिर के पुजारियों ने पूरे विधि विधान से आरती की और सभी के कल्याण के लिए आशीर्वाद मांगा. उत्सव का आयोजन करने में प्रोटोकॉल का पालन किया गया.
कोरोना काल में हालात तो यह है कि इस साल भगवान बाल रूप में आधी रात को जन्म तो लेंगे, लेकिन उनके दर्शन सुलभ नहीं होंगे. यह पहली बार होगा कि मंदिर में जब भगवान पधारेंगे तो भक्त नहीं होंगे.
मां वैष्णो देवी की पवित्र यात्रा की शुरुआत इसी महीने 16 तारीख से हो रही है. माता के भक्तों को इस पावन यात्रा का इंतजार का बहुत दिनों से था. सरकार ने यात्रा के लिए कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं.
कई बार आप व्रत उपवास की तिथि निर्धारित करते समय दुविधा में पड़ जाते हैं. क्यों वैष्णवों और स्मार्तों के लिए अलग अलग तिथि बताई जाती है. लोग समझ नहीं पाते हैं कि वह किस तिथि को व्रत करें. तो आइए आपको बताते हैं कि वैष्णवों और स्मार्तों में क्या अंतर है.
श्री कृष्ण की विशेष बात यह थी कि वे जीवन की व्यावहारिकता को अति गंभीर रूप में समझते थे, द्रौपदी का स्वयंवर , दुर्योधन को गांधारी का वरदान हो, या स्वयं शांतिदूत श्रीकृष्ण हों प्रत्येक घटना में उचित क्रोध , उचित हास , श्रेष्ठ आत्मविश्वास और प्रभावी वीरता स्वयं दिखाई दे जाती है.
हलछठ पशुधन, कृषि व्यवस्था और वन्य संपदा के प्रति नतमस्तक होने का दिन है. माताएं श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम और छह कृत्तिकाओं का पूजन कर अपनी संतान के लिए बल और आयुष्य की कामना करती हैं.
कश्मीर प्रशासन ने श्रीमाता वैष्णो देवी धाम को लेकर बड़ा फैसला लिया है. सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि 16 अगस्त से ही माता के धाम की यात्रा शुरू कर दी जाएगी, लेकिन श्रद्धालुओं को सीमित संख्या में ही प्रवेश करने की अनुमति दी जाएगी.
मंगलवार को भूमिपूजन के अन्य विधानों के क्रम में रामार्चा पूजा की गई. पांच घंटे तक चली इस पूजा को छह पुजारियों ने मिसकर कराया. वैदिक मान्यता है इस महायज्ञ को करने से मनुष्य भगवद्धाम को प्राप्त करता है और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं.
भूमि पूजन कार्यक्रम में सभी तीर्थों का जल और मिट्टी शामिल की गई है. इसके लिए देश के लगभग 2000 पावन तीर्थस्थलों की पवित्र मिट्टी और लगभग 100 पवित्र नदियों का पावन जल श्रीरामभक्तों द्वारा भूमि पूजन के निमित्त भेजा गया है.
रक्षा का यह पवित्र बंधन आज भी अपनी पवित्रता और सार्थकता को समेटे हुए हमारी कलाई में बंधा है. सावन भीगते माह की आखिरी दिन जब चंद्रदेव आकाश में पूरे खिले होते हैं, यह पर्व भारतीयता की चमक विश्व भर में बिखेर रहा होता है.
कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार को देखते हुए गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित, साधु-संत और स्थानीय निवासियों ने बुधवार 28 जुलाई से 15 अगस्त तक धाम में लॉकडाउन रखने का निर्णय लिया है. इस पूरे दौरान किसी भी बाहरी व्यक्ति को गंगोत्री धाम में प्रवेश करने पर रोक रहेगी.
धर्म गुरु मोरारी बापू ने उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए अपने व्यासपीठ से श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट को 5 करोड़ रुपये दान देने की घोषणा की है. कई संगठनों ने मंदिर के निर्माण के लिए बड़ी रकम दान करने का प्रस्ताव दिया था.
अयोध्या प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण को लेकर करोड़ों लोगों में खुशी का माहौल है. लेकिन सबसे खास बात तो ये है कि मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम पीओके से लेकर दिल्ली के अलग-अलग मंदिरों की मिट्टी से सम्पन्न किया जाएगा..
जानकारी के मुताबिक, उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश से बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए चार धाम यात्रा खोल दी है. हालांकि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए राज्य सरकार ने नियम और शर्तें भी रखी हैं.
25 जुलाई को सारा देश स्थानीय परंपरा के तहत नाग पंचमी मनाएगा और नागों की पूजा करेगा, लेकिन पूजन का आधार क्या है, विडंबना है कि अधिसंख्य लोग इससे अंजान हैं.
जम्मू-कश्मीर में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते अमरनाथ यात्रा रद्द कर दी गई है. श्रीअमरनाथ श्राइन बोर्ड ने यात्रा रद्द करने का फैसला लिया है. पहले कहा था गया था कि अमरनाथ यात्रा 21 जुलाई से शुरू होने वाली थी.
भोलेनाथ के प्रिय सावन(श्रावण) मास का प्रारंभ हो गया है. शिव ने इसी महीने में संपूर्ण सृष्टि का जहर स्वयं पीकर सभी को जीवनदान दिया. इसलिए पूरा ब्रह्मांड परमेश्वर सदाशिव को स्वच्छ जल अर्पित करके धन्यवाद देता है.
बिल्व पत्र, आक के फूल, भांग, धतूरा जैसे फल-पुष्प और पत्तियों से शिव अर्चना की जाती है. जहां आम तौर पर अन्य देवी-देवताओं को सुंदर पुष्प आकर्षित करते हैं, वहीं शिव बेल के त्रिदल से ही प्रसन्न हो जाते हैं.