माता का तीसरा रूप मां चंद्रघंटा शेर पर सवार हैं. दसों हाथों में कमल और कमडंल के अलावा अस्त-शस्त्र हैं।. माथे पर बना आधा चंद्र इनकी पहचान है. इस अर्ध चंद्र की वजह के इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है.
भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं. स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया. सहेलियों ने भी भोजन मांगा. देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा. बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया.
देवी भागवत के अनुसार सृष्टि का आदि स्वरूप ही शक्ति स्वरूप है और देवी ही इसकी प्रथम आद्या हैं. वह परमपिता ब्रह्मदेव की इच्छा शक्ति हैं, विष्णु की पालक शक्ति हैं और शिव के संहार की इच्छा में भगवती की ही शक्ति समाहित है.
Corona virus के मद्देनजर गाइडलाइंस को ध्यान में रखते हुए मंदिर को सिर्फ 5 दिन के लिए ही श्रद्धालुओं के लिए खोला गया है. इस बीच रोजाना सिर्फ 250 लोग ही पूजा-अर्चना के लिए मंदिर में दर्शन के लिए जा सकेंगे.
सदियों से चली आ रही है नवरात्र पूजन की परंपरा, लेकिन आज के बदले परिवेश में यह कितनी सार्थक रह गई है? दरअसल हम अपनी पूजा पद्धति को महज कर्मकांड के तौर पर अपनाने लगे हैं, इनमें छिपे मर्म को समझना हमारा उद्देश्य नहीं रह गया है. आज देवी शैल पुत्री ( Maa Shailputri) की पूजा है, समझिए एक समाज के तौर पर क्या हैं इस खास दिन के मायने.
इस बार की नवरात्रि पर एक विनाशकारी योग बन रहा है. जगदंबा घोड़े पर सवार होकर पधार रही हैं. यह युद्ध का स्पष्ट संकेत है. शायद इसीलिए दुनिया भर में कई स्थानों पर सेनाएं एक दूसरे पर हथियार ताने खड़ी हैं. एक गलती विश्वयुद्ध की शुरुआत कर सकती है.
मां के आगमन पर कलश घट स्थापना के साथ उनका पूजन प्रारंभ हो जाएगा. कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 17 अक्टूबर 2020 को सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर है. यदि किसी इस समय घटस्थापना नहीं कर पाते हैं तो सुबह 11 बजकर 02 मिनट से 11 बजकर 49 मिनट के बीच भी इसे कर सकते हैं.
17 अक्टूबर को घट स्थापना के साथ मां अम्बे की आराधना शुरू हो जाएगी. देवी का वाहन सिंह है, लेकिन यह तभी उनका वाहन है जब वे युद्ध रत होती हैं. भक्तों के पास आने के लिए मां भगवती अलग-अलग वाहनों का चुनाव करती हैं. इस बार माता अश्व रूढ़ा हैं.
पौराणिक मान्यता है कि अग्नि की ऊर्जा सृष्टि में तीन रूपों में दिखाई देती है. यह ब्रह्मांड में विद्युत है. ग्रहमंडल में सूर्य है और पृथ्वी पर ज्वाला रूप में स्थापित है. एक सूक्ति ‘सूर्याशं संभवो दीप:’ में कहा गया है कि दीपक की उत्पत्ति सूर्य के अंश से हुई है. इसलिए दीपक का प्रकाश इतना पवित्र है कि मांगलिक कार्यों से लेकर भगवान की आरती तक इसका प्रयोग अनिवार्य है.
भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में अनोखी कथा है. जब समस्त ब्रह्मांड के स्वामी लीला करने के लिए युद्धभूमि छोड़कर भाग गए. लेकिन इसके पीछे भी आध्यात्मिक रहस्य मौजूद है.
गृह मंत्रालय ने Unlock 5 की गाइडलाइंस जारी कर दी हैं. इसके तहत स्कूल, सिनेमाघर और मन्दिर खोलने की अनुमति दे दी गयी है लेकिन शारीरिक दूरी और सार्वजनिक जगहों ओर मास्क का प्रयोग अनिवार्य है.
दीपक जलाना सनातन धर्म की बेहद अहम परंपरा है. हर पूजा-पाठ और अनुष्ठान में दीपक जलाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि किस अवसर पर कौन सा दीपक जलाया जाना चाहिए.
भगवान श्रीराम को यह विशेष घंटा तमिलनाडु की लीगल राइट काउंसिल की ओर से बुधवार को भेंट किया गया. वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुकी बुलेट रानी के नाम से प्रसिद्ध राजलक्ष्मी माडा रामरथ चला कर घंटे को लकर अयोध्या पहुंची हैं
IRCTC ने MATA VAISHNO DEVI YATRA नाम से टूर पैकेज लॉन्च किया है. खास बात है कि "Aastha Circuit Special Tourist Train" के तहत ये टूर पैकेज दिया जाएगा. यह ट्रेन 29.10.20 को राजगीर से सुबह 11 बजे चलाई जाएगी.
बिहार के सारण जिले में स्थित सोनपुर में हरिहरनाथ का अति प्राचीन मंदिर है. यहां हरि (विष्णु) और हर (शिव) की प्रतिमा एक साथ स्थापित है. यहां सोमवार और कार्तिक मास में श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं.
श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर बिड़ला श्रृंखला का सबसे प्रथम मंदिर है, अतः इसे बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1933 से प्रारंभ होकर सन् 1938 तक हुआ, मंदिर का उद्घाटन राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने किया था.