डियर जिंदगी : ‘दुखी’ रहने का निर्णय!
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डियर जिंदगी : ‘दुखी’ रहने का निर्णय!

एक बार दुखी रहने का निर्णय लेते ही हम ‘निर्दोष’ दुखी होते जाते हैं. यानी बिना किसी के ‘दोष’ के. रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातों, चीजों में हम दुख तलाशने निकल जाते हैं.

डियर जिंदगी : ‘दुखी’ रहने का निर्णय!

बच्‍चे के जन्‍म के समय सबका ध्‍यान इस बात में रहता है कि ‘बच्‍चा, रोया कि नहीं.’ अगर किसी कारण से वह स्‍वाभाविक रूप से नहीं रो पाता, तो डॉक्‍टर उसे रुलाने की कोशिश करते हैं. ऐसा इसलिए क्‍योंकि गर्भ में बच्‍चे की सांसे गर्भनाल के माध्यम से सुचारू रूप से चलती रहती हैं, लेकिन बाहर आने के बाद उसे सांस लेने का स्‍वयं से प्रयास शुरू करना होता है. डॉक्‍टर इसलिए रुलाते हैं ताकि उसके फेफड़े सक्रिय हो जाएं और स्‍वांस नली का रास्‍ता खुल जाए. तो इस तरह आंसू हमारे जीवन का आधार बनते हैं.


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